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प्रसिव उद्योगपति साहू शान्तिप्रसाद जी बैन का उद्घाटन भाषण
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बनाएं, तो हमारे देश के धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक वीर शासन का उद्देश्य प्राणिमात्र की हित कामना और प्रार्थिक क्षेत्र की कटुता और वमनस्य दूर हो जाये। पौर उद्धार कार्य था, इसीलिए युग परिवर्तक भगवान
भगवान महावीर का दृष्टिकोण सब दिशामों में महावीर ने अपना धर्मोपदेश उस भाषा में दिया, जो सर्ववैज्ञानिक था, इसलिए समाज के जीवन में प्रचलित रूढ़ि- साधारण की बोली थी। तत्कालीन धार्मिक जगत में इस वाद के विरुद्ध उनका वज्र निर्घोष हुआ।
बात ने ही एक क्रान्ति उतान्न कर दी। भगवान को वीर भगवान की मौलिक और वैज्ञानिक चिन्तनधारा मानवधर्म का उपदेश देना था, इसलिए यह प्रावश्यक था का उत्कृष्ट प्रमाण इस बात से मिलता है कि उन्होंने अन्य कि वह धर्म के चिरन्तन सिद्धान्तो को ऐसी भाषा में कहें, संस्कृतियों की परम्परागत इस विचारधारा का निराकरण जो लोगों की समझ मे माये और हृदय मे स्थान बनाये। किया कि यह जगत ईश्वर ने बनाया है और इसका शासन इसलिए प्रभु ने उस समय की प्रचलित बोली अर्धमागधी ईश्वर उसी तरह करता है, जिस तरह कोई राजा अपने में अपना उपदेश दिया। अर्धमागधी वोली में माघे शब्द देश का। माधुनिक विज्ञान भी प्राज इस निश्चय की मोर मगध देश की बोली के थे और शेष शब्द दूसरे गणतन्त्रों पहुँचा है कि ससार के प्रनादि द्रव्यों का विकास की भाषामों के। इसी वीर परम्परा को अपनाकर ही और ह्रास केवल द्रव्य की पर्यायों की अदला-बदली जैन प्राचार्यो, जैन कवियों और लेखको ने भारत की का खेल है, जो वस्तु के परिवर्तनशील स्वभाव के विभिन्न भाषाओं में अमर लोकसाहित्य रचा है। माज कारण होता है । ज्युलियन हक्सले जो माज के बहुत बड़े जब कि हम देश के लिए एक भाषा का निर्माण करना वैज्ञानिक और प्राणिशास्त्र के विद्वान हैं अपना मत स्पष्ट चाहते हैं, हमे वीर के पराक्रम, उनकी सूझ और उनके लिखते हैं :
उदाहरण से शिक्षा लेनी चाहिए । वीर भगवान की प्रघं. ___ "इस विश्व पर शासन करने बाला कौन या क्या" मागधी उस समय की हिन्दुस्तानी थी, जो वोलचाल का है ? जहाँ तक हमारी दृष्टि जाती है, हम यही देखते हैं माध्यम तो थी ही, साहित्य का भी सफल माध्यम वनी। कि विश्व का नियन्त्रण स्वयं अपनी ही शक्ति से हो रहा माज यदि हम सार्वजनिक सुघार, शिक्षा पोर उन्नति है। और वास्तव में बात तो यह है कि विश्व का सादृश्य चाहते हैं, तो हमे वीर के पदचिह्नों पर चलकर देश के देश और उसके शासक के साथ बैठना नितान्त भ्रमपूर्ण हैं। लिए एक भाषा-हिन्दुस्तानी-गढ़नी होगी और उसमे
भगवान महावीर ने निर्वाण के लिए जिन सात तत्त्वों उपयोगी साहित्य की सृष्टि करनी होगी। जन-साहित्य ने का श्रद्धान और ज्ञान प्रावश्यक बतलाया और प्राचरण के सदा ही समय की प्रचलित वोली का माध्वम स्वीकार जो नियम बनाये, वे मानव जीवन के मूल माघार | किया है, इसलिए संस्कृत, प्राकृत, शौरसेनी, अपभ्रंश, भगवान ने मनुष्य का भाग्य मनुष्य के हाथ में सौंपा है, कन्नड़, तामिल, गुजरातो प्रादि प्रान्तीय तथा सार्वजनिक उसे मोक्ष प्राप्ति के लिए अपने ही साधनों पर प्रवलम्बित भाषामों में उच्चकोटि का विपुल जैन-साहित्य मिलता है। होना सिखाया है।
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हमें पाज भी अपनी साहित्यिक प्रतिभा की ज्योति प्रक्षण्ण जैन दर्शन का ध्येय केवल यही है कि मादमी अपने बनाये रखनी चाहिए और हिन्दी, बंगाली, पुषरातो, मराठी, को पहचाने, अपनी प्रात्मा के स्वभाव और सुख को प्राप्त तामिल, तेलगू मादि भाषामों के साहित्य को अपनी करे। कर्मवन्ध को रोकने मौर काटने का उपाय शुद्ध संस्कृति के योगदान से समृद्ध करना चाहिए। पाचरण, संयम और तप है। जैन दर्शन का जीवन सूत्र वीर शासन ने जहां धार्मिक क्षेत्र में अहिंसा स्यावाद
पौर मात्मानुभूति की महत्ता बता कर धर्म को सुबोध 'माणं पयासयं, सोहमो तबो, संयमो यमुत्तियरो।' भोर सार्वजनिक बनाया तथा सामाजिक क्षेत्र में समता,
ज्ञान प्रकाशक है, चित्त शोषम करता है और संयम शुद्धता और स्वतन्त्रता का प्रचार किया, वहाँ राजनैतिक रक्षा करता है।
क्षेत्र में लोककल्याण की भावना को प्रोत्साहित किया है।