________________
भारतवर्षीय दि० जैन परिषद् के स्वर्ण जयन्ती अधिवेशन पर : प्रसिद्ध उद्योगपति साहू शान्तिप्रसाद जी जैन का
उद्घाटन भाषण
प्रिय अध्यक्ष, स्वागताध्यक्ष, बहिनो और भाइयो, थी। सेठ मेवाराम जी, पण्डित प्यारेलाल जी, न्याय
भारतवषीय दिगम्बर जैन परिषद के प्राज का यह दिवाकर पं० पन्नालाल जी आदि ने तत्वचर्चा और स्वा. स्वर्ण जयन्ती उत्सव हमे पिछले ५० वर्ष में जैन समाज में ध्याय की ओर ध्यान आकर्षित किया और जगह-जगह जो उतार-चढ़ाव हुए है, उन्हें प्रवलोकन करने का और शास्त्र-स्वाध्याय और तत्वचर्चा की प्रणाली को बल मिला। उन पर सोचने पौर विचारने तथा समाज को आगे किस साथ-साथ मे बैरिस्टर जुगमन्दरलाल जी, वैरिस्टर चम्पत. दिशा में बढ़ना है, इस पर निश्चय करने का अवसर राय जी, प० अजितप्रसाद जी, श्रद्धेय ब्र० शीतल प्रसाद देता है।
जी आदि ने जैनतत्वों को नवीन ढंग से अंग्रेजी भाषा में करीव १०० वर्ष पहले श्री राजाराम मोहन राय ने अनुवादित किया। प० पन्नालाल जी बाकलीवाल, बा. इस देश की सामाजिक व्यवस्था को एक नया मोड़ दिया। सूरजभानु वकील, प० नाथू गम जी प्रेमी प्रादि ने जैन इसी समय उत्तर भारत में स्वामी दयानन्द हुए और हिन्दू सिद्धान्तों को जन साधारण तक पहुँचाने के लिए सरल धार्मिक परम्परा मे एक नया रूप लाये। श्री दादा भाई भाषा का उपयोग किया। १९वी सदी में यातायात के नौरो जी ने राजनैतिक क्षेत्र में एक नया विचारधारा का साधन बढ़ चुके थे और समाज में तीर्थयात्रा के लिए परम्परा डालने का प्रयत्न किया। इन नयी चेतना से
भक्तजनों की संख्या बढ़ी। तीर्थ की व्यवस्था सुधारने के जैन समाज अछूता नहीं रहा।
लिए सेठ जम्बू प्रसाद जी, सेठ देवीसहाय जी, सर सेठ वीसवीं सदी के प्रारम्भ मे स्वनामधन्य राजा लक्ष्मण
हुक्मचन्द जी, श्री रतनचन्द जी जरीवाले आदि ने तीर्थोदास जी, डिप्टी चम्पतराय जी और सेठ देवकुमार जो द्वार का बीड़ा उठाया। समाज-उत्थान की ये सब परम्प- . यादि महानभावों ने समाज-धर्म-सेवा के लिए महासभा रायें उत्साहपूर्वक महासभा के नियत्रण में करीब २५-३० की नीव डाली। महासभा ने सस्कृत अध्ययन के लिए वर्ष तक चलती रही। और अंग्रेजी अध्ययन के लिए जहाँ पर राज्य के मुख्य
महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से हिन्दुस्तान पाये विश्वविद्यालय थे, वहाँ पर होस्टल बनाने की पद्धति और प्रछतोद्धार, नारी-जागरण और देश को विदेशी अपनायी । पण्डित गोपालदास जी वरया, म्यायाचायं ब्र० शासन से मुक्त करने के लिए एक नया प्रोग्राम उन्होंने गणेश प्रसाद जी वर्णी, वावा भागीरथ जी वर्णी ने विद्या- देश को दिया। इसका असर जैन समाज पर भी होना लयो को निर्मित किया और सेठ माणिकचन्द्र जी प्रादि ने था। श्री अर्जनलाल मेत्री श्री नेगोडारण जी होस्टल वनवाने की प्रथा डाला। नारानशक्षा मश्रामता लाल जी और अनेक ने गांधी जी के नेतृत्व को मानकर मगन बहिन,. चन्दा बाई आदि ने विशेष उत्साह उनके विचार और कार्य में हाथ बटाया। इसका प्रसर दिखाया और प्रेरणा दी। ब्रिटिश मोर मुस्लिम प्रभुत्व जैन समाज की कार्यप्रणाली पर होना भी स्वाभाविक था। के लम्बे दौरान के कारण समाज में तस्वचर्चा और स्वा- १९३२ में ही महासभा के दिल्ली अधिवेशन में समाजध्याय की मोर रुचि करीब-करीब समाप्त जैसी हो गयी सुधार को प्रगति किस तेजी से हो इसमें मतभिन्नता हो