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० भारतीय दि० जैन विद्वत् परिषद् के शिवपुरी में सम्पन्न रजत जयन्ती उत्सव पर
डा० दरबारीलाल जी कोठिया का अध्यक्षीय भाषण
धर्मीक रेम्योऽस्तु स्याद्वादिभ्यो नमोनमः । ऋषभादिमहावीरान्तेभ्यः स्वाये || - मट्टाकस सुरेव वयस्य १ वन्दनीय त्यागीगण, समादरणीय स्वागताध्यक्ष तथा स्वागत समिति के सदस्यगण, सम्मान्य विद्वद्वृन्य, साधर्मो बन्धुमो धौर वात्सल्यमूर्ति धर्म बहिनो !
इस पावन भी महावीरजनन्यचकस्यागक प्रतिष्ठा महोत्सव के मङ्गलमय भवसर पर अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद के बारहवें रजत जयन्तीअधिवेशन का आपने मुझे अध्यक्ष चुना, इसके लिए भाषका प्रत्यन्त कृतज्ञ है । लगता है कि आपने मेरी कमियों की भोर दृष्टिपात नहीं किया और केवल स्नेहवश इस दायित्वपूर्ण पद पर बिठा दिया है। इसे मैं आप सबका आशीर्वाद मानकर स्वीकार कर रहा हूँ । विश्वास है इस जोखमभरे पद के निर्वहण में आप सभी का पूरा सहयोग मिलेगा ।
दिवंगत संयमियों और विद्वानों को श्रद्धाञ्जलि :
पिछला अधिवेशन सन् १९६८ मे सागर ( म०प्र० ) में और नैमित्तिक अधिवेशन] सन् १९७० में खतौली ( उ० प्र० ) में हुआ था। इन पांच वर्षो में हमारे बीच से अनेक पूज्य संयमियों तथा प्रतिष्ठित विद्वानों का वियोग हो गया है । उनके वियोग से समाज की महती क्षति हुई है। सममियों में पूर्णसागर जी महाराज और क्षु० दयासागर जी महाराज की स्मृति प्रमिट रहेगी । पूर्णसागर जी महाराज ने दि० जैन संस्कृति घौर तत्त्वज्ञान के संरक्षण एवं सम्यग्ज्ञान के हेतु दिल्ली में दिगम्बर जैन केन्द्रीय महासमिति की स्थापना मे प्रथक प्रयत्न किया और उसके प्रवर्तन में निरन्तर अनेक वर्षों तक शक्तिदान किया था। क्षु० दयासागर जी महाराज बहुत ही अच्छे वक्ता, लेखक और विचारक थे। लोक
हित के लिए उनके हृदय में अपार करुणा थी। वियुक्त विद्वानों में घन्तिम क्षण तक वाङ्मय सेवा में निरत, इतिहास लेखक, महान्य-समीक्षक पण्डित युगल किशोर जी मुख्तार 'युगवीर' सरसावा, सिद्धान्तमहोदि तर्करत्न, न्यायाचार्य पण्डित माणिकचन्द्र जी कौन्य फिरोजाबाद (उ० प्र०), महामनस्वी, सूक्ष्मचिन्तक पण्डित चैनसुखदास जी न्यायतीचं जयपुर (राज.), सिद्धा ममंश पण्डित इन्द्रलाल जी शास्त्री जयपुर, प्रत्यन्त नैष्ठिक सहृदय पण्डित प्रजित कुमार जी शास्त्री दिल्ली, यावज्जीवन समाजसेवी महोपदेशक पण्डित मक्खनलाल जी प्रचारक दिल्ली, जैन संघ मथुरा के यशस्वी प्रचारक पण्डित इन्द्रचन्द्र जी शास्त्री मथुरा भोर सदा समाजसेवातो पति रामशान जीएम० ए० दमोह (म०
प्र० ) समाज के अनुपम विद्वत्न थे। इन मनीषियों ने अपने विचारों, लेख, भाषणों और ग्रन्थों द्वारा समाज की जड़ता को दूर कर ज्ञानदान के स्तुत्य प्रयास किये है हम इन वियुक्त पूज्य संयमियों और सारस्वतों के प्रति कृतज्ञ - भाव से नम्र श्रद्धाञ्जलि उनकी स्मृतिस्वरूप प्रति करते हैं।
पिछले अधिवेशन और कार्यो पर एक विहङ्गम दृष्टि
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विद्वत्परिषद के जन्म से ही मेरा इससे सम्बन्ध रहा है। इसके जन्म की महत्त्वपूर्ण घटना है । सन् १६४४ में कलकत्ता में वीरशासन- महोत्सव का विशाल आयोजन था । इस प्रायोजन के कार्यक्रमों मे अग्रेजी भाषा के विशेषज्ञों को ही प्राथमिकता दी गई थी । प्रायोजन में सम्मिलित समाज के विद्वानों का योगदान नहीं लिया गया था। यद्यपि वहाँ बहुसंख्यक सून्य विद्वान थे। इससे विद्वानों के स्वाभिमान को चोट पहुँची। उधर हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में आयोजित अखिल भार तीय प्राच्य विद्यासम्मेलन के जैन विद्या विभाग से पठित भाषण में कुछ ऐसी स्थापनाएं की गई थीं, जो दिगम्बर