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साहित्य-समीक्षा
१.पावती पूजा मिच्यास्व है-लेखक श्री रतन- परिशिष्टों से ग्रन्थ की उपयोगिता अधिक बढ़ गई है। लाल जी कटारिया केकड़ी । पृष्ठ २८ मूल्य २५ पैसा। अनुसन्धाता प्रेमियों के लिए ग्रन्थ बहुत उपयोगी है ।
श्री मिलापचन्द जी कटारिया जैन ग्रन्थमाला का इसके लिए लेखक और प्रकाशक दोनों ही धन्यवाद के प्रथम पुष्प । इसमें अनेक प्रमाणों के माधार पर पद्मावती पात्र हैं। देवी की पूजा को मिथ्यात्व बतलाया गया है। पं० रतन
३. गीत वीतराग प्रवन्ध-श्री अभिनव पण्डितालाल जी जैन समाज के सुयोग्य विद्वान हैं। उनके समी
चार्य । सम्पादक डा. मा. ने. उपाध्ये एम. ए. डी. लिट क्षात्मक लेख सुन्दर पोर जैनधर्म की मूल माम्नाय के
प्राध्यापक जैन विद्या पौर प्राकृत, मैसूर विश्वविद्यालय, संरक्षक होते हैं।
मैसूर । प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ वी. ४५-४७, कनाट २. अपभ्रंश भाषा मोर साहित्य की शोषप्रवृतियां- प्लेस, नई दिल्ली-१ पत्र सं०७७, मूल्य सजिल्द प्रति का लेखक डा. देवेन्द्र कुमार जैन शास्त्री साहित्याचार्य नीमच। ३) रुपया। प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ ३६२०/२१ नेताजी सुभाष
प्रस्तुत कृति जयदेवकृत गीत गोविन्द की पति मार्ग देहली-६ । पृष्ठ संख्या २०७, मूल्य चौदह रुपया।
पर लिखी गई हैं जो ललित एवं गेय है। इसके कर्ता प्रस्तुत पुस्तक पांच अध्यायों में विभक्त है उनमें से अभिनव पण्डिताचार्य हैं। इस गीत वीतराग प्रबन्ध का प्रथम दो प्रध्यायों में प्राच्य विद्यापों के अध्ययन अनु- मूलाधार जिनसेन के प्रादिपुराण की कथा वस्तु है। सन्धान के सन्दर्भ मे एक महत्त्वपूर्ण कृति है । इसमे लेखक इसमें प्रादिनाथ तीर्थकर का सम्पूर्ण चरित्र पूर्वभवों से ने सन् १९३६ से १९७१ तक के प्रकाशित ८०० शोष- लेकर मोक्षप्राप्ति तक का निबद्ध है। इसका सम्पादन निवन्ध, पुस्तकों तथा प्रवन्धों का विवरण प्रकाशन के सुन्दर हुमा है । डा. उपाध्ये ने अग्रेजी प्रस्तावना मे ग्रन्थ काल कम से दिया है। तृतीय अध्याय में 'अपभ्रश के को विशिष्टता का दिग्दर्शन कराया है। पुस्तक विविध हस्तलिखित अन्य' शीर्षक में ग्रन्थ भण्डारों में उपलब्ध रागों में गाई जा सकती है। यह पुस्तक गांगेयवशी राजलगभग एक हजार पाण्डुलिपियों का विवरण दिया है। पुत्र देवराज के अनुरोध से रची गयी है। ग्रन्थकार द्राविड़ मौर चतुर्थ अध्याय में अपभ्रंश के प्रकाशित प्रप्रकाशित देशस्थ सिंहपुर के निवासी थे। उनका जन्म सिंहउपलब्थ साहित्य का विवरण लेखक क्रम से दिया गया है पुर में हुमा था। वे कुन्दकुन्दान्वयदेशीगण के विद्वान जिसमें डेढ़ सौ लेखकों की लगभग तीन सौ रचनामों के प्राचार्य थे। मोर श्रवण वेलगुल मठ के अध्यक्ष थे। सन्दर्भ की सूचना है। पोर पांचवें अध्याय में अपभ्रंश के कवि ने इस ग्रन्थ की रचना शक १३२१ (सन् १३६६) पज्ञात एवं अप्रकाशित ग्रन्थों के चंश दिये गए हैं। तीन में की थी।
-परमानन्दन