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जैन साहित्य, दर्शन व इतिहास में अनुसंधान की आवश्यकता
वर्तमान काल के विज्ञानयुग होने के कारण जैसे वैज्ञानिक प्राविष्कार नई खोजो के परिणाम हुए है पोर वैज्ञानिक अध्ययन का महत्त्व बढ़ा है बसे ही शिक्षण क्षेत्र में भी अनमन्धानात्मक शिक्षण निर तर महत्त्व एव बृद्धि को प्राप्त करता जा रहा है। जैन साहिय, दर्शन व इतिहास में भी अनसन्धान की विशेष प्रावश्यकता है जैन शिक्षण संस्थानों में जो अध्ययन अध्यापन को ब्यवस्था है वह के बल म ग्रन्थो के पठनपाठन तक ही सीमित है यही कारण है कि इन क्षेत्रो मे अनसन्धानात्मक कार्य नहीं हो सका है और जैनधर्म का जितना प्रचार देश-विदेश मे होना चाहिए नहीं हो पाया है। छापे के सुलभ साधन वाले इस जमाने में भी प्रनेकानेक जैन ग्रन्थ अप्रकाशित अवस्था में पड़े हैं और निरन्तर क्षीणता को प्राप्त होते जा रहें है। अनेक ऐसे ग्रन्थ व विषय है जिन पर शोषपूर्ण काय हो 'सकता है । जैनधर्म मे स्वीकृत ६ द्रयों में प्रत्येक द्रब्य पर अनुसन्धारात्मक ग्रयो को प्रावश्यकता है।
जीव द्रव्य के सम्बन्ध मे प्रचलित सभी धर्मो व दर्शनों का दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए उसके असली स्वरूप पर प्रकाश डाला जा सकता है । जोव के अवादि निधनत्व का सिद्ध कर प्रात्न कल्याण के माग को प्रदर्शित किया जा सकता है । जैनधर्म मे जीव को स्वयं कर्ता व भोक्ता बतलाया है भगवद्गीता को यह उक्ति
प्रात्मैव प्रात्मनो बन्धुः प्रात्मैव रिपुगत्मनः । मनुष्य स्वयं ही अच्छे प्राचरण को रखने से अपना कल्याण करने वाला मित्र तथा पाप कार्य में निरत रहने से अपना अहित करने वाला शत्रु है। इसी तथ्य पर प्रकाश डालनी है। वैज्ञानिक लोग भौतिक पदार्थों के अनुसन्धान में जैसे सफल हुए है से हो वे प्रात्मतत्त्व के अनुसन्धान में प्रवत्त है। भारतीय दार्शनिकों का यह पुनीत कर्तव्य है कि वे अपने ऋषियो, महषियो, गणधरो एवं तीर्थंकरों द्वारा कथित प्रात्मतत्त्व के यथार्थ स्वरूप को प्रकाश मे लाकर लोगो को धर्म और कर्तव्य का सच्चा भान कराये। जीवद्रव्य की तरह अन्य पुदगल, धर्म, अधर्म प्राकाश व काल द्रव्य भी अनसन्धानात्मक अध्ययन को अपेक्षा रखती हैं।
हर्ष की बात है कि राजधानी में स्थित वीर सेवा मन्दिर, जो पिछले एक बड़े लम्बे समय से अपने प्रका. शित ग्रन्थों, लेखो प्रावि से देश, धर्म एवं समाज की सेवा करता पा रहा है, उसमें एक अनसाधान कक्ष की स्थापना की गई है। यहाँ अनसन्धान के उपयुक्त साहित्य सामग्री व अन्य साधन एकत्रित किए जा रहे है। जो सज्जन जनधर्म व वर्शन तथा इतिहास से सम्बन्धित अनुसन्धान कार्य कर रहे है वे अपने निब.धो, लेखो प्रादि को इ । सस्था के प्रसिद्ध पत्र "अनेकान्त" में प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं।
वीर सेवा मन्दिर के विशाल सरस्वती भवन का भी नवीनीकरण हो रहा है। जिससे कि ग्रन्थो का अधिकाधिक उपयोग हो सके। वीर सेवा मन्दिर सस्था का एक प्रकाशन विभाग भी है इसके द्वारा अनक ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ है। ये ग्रन्थ विक्री के लिए भी रखे गये हैं। जिन विद्वानो ने भिन्न भिन्न विषयो पर अनुसन्धान कार्य कर जो निबन्ध, ग्रन्थ तैयार किये हैं उनको एक-एक प्रति यहां पुस्तकालय मे रहने से राजधानी मे रहने वाले तथा अनुसन्धानात्मक अध्ययन की इच्छा से यहां पाने वाले लोग भी उनसे लाभ उठा सकते है। प्राशा है इस प्रकार के अनुसन्धानात्मक ग्रन्थ प्रस्तुत करने वाले विद्वान राखक अपने-अपने ग्रन्यो की एक-एक प्रति सस्था के सरस्वती भवन में भेजने को कृपा करेगें। तथा अपने खोजपूर्ण निबन्धों को "अनेकान्त" पत्र में प्रकाशनाथं भेजने का प्रयत्न करेंगे।
निवेदक :
'अनेकान्त" वीर सेवा मन्दिर, २१, दरियागंज, दिल्ली-६