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________________ हम सुखी कैसे बनें ? मथुरादास जैन एम. ए., साहित्याचार्य मनुष्य के सुखदुःख का कारण बहुत अंशों में उसकी "बोये पेड़ बबूल के प्राम कहां ते खाय । बबूल के पेड़ प्रवत्तियाँ होता है । वह जैसा व्यवहार करता है तदनुकूल वोकर कोई ग्राम के फल की प्राप्ति नहीं कर सकता। फल पाता है। अच्छे व्यवहार भोर माचरण के परिणाम हमे अपना व्यवहार ठीक रखना चाहिए, ऐसा करने से प्रच्छे होते हैं। “कर भला होगा भला" का मत्र हमें हो देश में खुशहाली प्रायेगी । जब तक देश से बेईमानी, यही सिखाता है कि हम दूसरों के साथ अन्याय का व्यव- रिश्वतखोरी, स्वार्थान्धता, गरीबों की उपेक्षा, ये बुराइयां द्वार न करें। "प्रात्मनः प्रतिकूलानि परेषा न समाचरेत्" न हटेंगी देश समृद्धिशाली नहीं हो सकता । इनके हटने में की नीति पर जो पमल करते हैं वे सदा दूसरों के प्रिय ही प्रत्येक मनुष्य का सुख है और देश की उन्नति है। व स्नेहभाजन रहते हैं। __ उन्नत देशों की मुख्य-मुख्य बातें ये ही होती है कि __ ऐसा होने पर भी मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं देशवासियों में प्राध्यात्मिक, व्यावसायिक, वैज्ञानिक, और इस तरह हम सबो के सुखदुःख एक दूसरे से सम्ब- साहित्यिक प्रादि विषयोंका पूर्ण ज्ञान हो । इनके होने से ही न्धित रहते हैं। जिस तरह हमारा अन्यायपूर्ण व्यवहार देश में सम्पत्ति की वृद्धि हो सकती है और देश की गरीबी दूसरे को दुःखी करता है उसी तरह दूसरे का प्रन्यायपूर्ण दूर हो सकती है। इसके साथ ही प्रत्येक देशवाशी में व्यवहार हमारे दुःख का कारण बन जाता है। नैतिक, चारित्रिक बल का होना भी परमावश्यक है। इन माज भारत के स्वतन्त्र होने पर भी भारत की जनता गुणो के प्रभाव में देश कभी ख्याति, विश्वासपात्रता एव का बहत बड़ा भाग सुखी नही है। देश की १५ अगस्त प्रामाणिकता को प्राप्त नही कर सकता । पशुबल, घन एवं सन ४७ की स्थिति से प्राज सन् १९७३ की स्थिति का वैभव की बढ़ोतरी एकान्तरूप से देश को समुन्नत बनाने जब हम मिलान करते हैं तो भले ही देश की पराधीनता वाली नहीं होती। देश तभी समुन्नत बनता है जब उसके के बन्धनों के टूटने से देश उन्नत हुमा है उद्योग बढ़ा है, निवासियों की सात्विक वृत्तिया वृद्धि को प्राप्त करती हैं। राष्ट. समाज व जनता को प्रतिदिन के व्यवहार को सम्राट अशोक का जीवन यदि कलिङ्ग विजय तक ही वस्तयों के निर्माण में देश के प्रात्मनिर्भर होने से राष्ट्र सीमित रहता तो देश के इतिहास में अशोक को जो गौरव की आर्थिक क्षमता बढ़ी है लेकिन सभी क्षेत्रो मे महगाई प्राप्त है वह न होता । इस गौरव के बीज तो अशोक के के उग्ररूप धारण कर लेने से साधारण जनता के दु.ख जीवन मे सात्त्विक वृत्ति के जगने से ही प्राप्त हुए। देश घटने के स्थान पर कई गुने बढ़ गये हैं। साधारण जनता में जब स्वार्थान्धता, लोलुपता, कामुकता ईर्ष्यालुता बढ़ को दृष्टि दूर तक नहीं जाती वह तो नित्यप्रति के कार्यों जाती हैं तो देश कमजोर हो जाता है। और उसे तब से अपने सुखदुःख का निर्णय करती है । जनता के इस बड़े किसी भी मुसीबत का शिकार बनने में देर नही लगती।' हुए दुःख का कारण देश में सच्चरित्रता (सच्चापन) की हमारे देश में परतन्त्रता का पदार्पण जब जब हुमा फिर कमी ही है। जब मनुष्य के हृदय में स्वार्थ भावना चाहे बह परतन्त्रता मुस्लिम साम्राज्य जन्य हो या ब्रिटिश बढ़ जाती है तो वह दूसरो के सुखदुःख के प्रति उदासीन साम्राज्य जन्य उसका कारण देश की कमजोरी ही थी। हो जाता है। अन्याय के मार्ग में कदम रखना उसे अन्याय कमजोरी देश को स्वतन्त्रता की रक्षा में प्रशक्त बना देती नही लगता । पाज देश की नैतिकता में इतनी गिरावट भा है। प्रतः हमें इस बात का सदा ध्यान रखना चाहिए कि गई है कि मनुष्य दूसरों के सुखदुःख की तरफ पांखें मूंद- देश कमजोर न हो। वे बुराईयां, (बेईमानी, रिश्वतखोरी, कर केवल अपने सुखदुःख का ही ध्यान रखने लगा है। स्वार्थान्धता मादि) जो देश को खोखला कर देती हैं यह नैतिक गिरावट हट जाय तो देश की बहुत कुछ मुसी- उनका मूलोच्छेद बिनाश ही देश को सुखी और गौरवपूर्ण बतें हल हो जाय। मनुष्य को सोचना चाहिए कि- बना सकता है।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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