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________________ बोर सेवा मन्दिर के कुछ प्रकाशन २२१ इसके दशों प्रध्यायों के सूत्रों की संख्या १०७ है। प्रारभ उनके विचारों का प्रसार करने की दृष्टि से मुख्तार सा० मे मुख्तार साहब की खोजपूर्ण प्रस्तावना, मूल सूत्र पाठ ने इस पुस्तक को लिखा है। इसमें 'स्व पर-बैरी कोन', पोर हिन्दी अनुवाद है। ऐसे उपयोगी ग्रन्थ का मूल्य वीतराग की पूजा क्यों, वीतराग से प्रार्थना क्यो मोर पच्चीस पंसा है। पाप-पुण्य की व्यवस्था क्यों इन चार विषयों की मार्मिक अनित्य भावना-माचार्य पद्मनन्दि विरचित 'मनित्य चर्चा प्रत्यन्त सरल ढंग से की गई है। पूस्तक स्वाध्याय पचाशत्' नाम की कृति का मुख्तार सा. द्वारा हिन्दी में एव सर्व साधारण में प्रचार के योग्य है । मूल्य २० पैसा । किये गये पद्यानुवाद और गद्यानुवाद के साथ यह सुन्दर महावीर जिन पूजा-इसमें महावीर की पूजा दी सस्करण प्रकाशित किया गया है । इसके नित्य पाठ करने गई है। और जयमाला में भ. महावीर के तत्त्वज्ञान का से पाठक का हृदय हर्ष-विषाद की दलदल में प्रौर मोह भी अच्छा समावेश किया गया है। इस पूजन को पढ़ते क फन्दे में नही फंसता है। प्रत्येक भाई को इसका पाठहए पजक का हृदय प्रानन्द और भक्ति से प्रात्म-विभार करना चाहिए । मूल्य पच्चीस पैसा । हो जाता है । मूल्य २० पैसा । अनेकान्त रस लहरी-अनेकान्त जैसे गूढ गम्भीर बाबली जिनपूजा-भरत चक्रवर्ती को तीनों युद्धों विषय को मुरूनार सा० ने ऐसे मनोरंजक ढंग से सरल मे जीतने के पश्चात् संसार का त्याग करने वाले बाहुवली शब्दा में समझाया है, जिससे बच्चे तक भी उसके मर्म के उत्कृष्ट त्याग और तपस्या से प्रभावित होकर मुख्तार को प्रासानी से समझ सके। प्रध्यापक और विद्यार्थी के साहब ने अत्यन्त भक्ति के साथ इस पूजा को लिखा है । बीच बात-चीत के रूप में इस पुस्तक को लिखा गया है। इसकी जयमाल पढ़ते हुए भरत बाहुबली का दृश्य सन्मुख पुस्तक प्रत्येक तत्त्व प्रेमी को अवश्य मगा कर पढना उपस्थित हो जाता है और तपस्वी बाहुवली मूर्तिमान चाहिए और प्रचारार्थ वितरण करना चाहिए। मूल्य सामने खडे प्रतीत होते हैं। यह पूजा प्रत्येक भाई के पच्चीस पैसा। मित्य करने योग्य है। पार्ट पेपर पर छपी है। मूल्य महावीर का सर्वोदय तीर्थ-भ० महावीर का २५ पैसा । शासनरूप तीर्थ ही सर्व प्राणियों का उवय अर्थात कल्याण परिग्रह का प्रायश्चित्त-परिग्रह का संचय पाप है, का कारण और दुःख संहारक है। यह बात मुख्तार सा० और उसका परित्याग दान या पण्य नहीं, किन्तु प्रायने बड़े ही सरल ढग से प्रमाणों के साथ प्रस्तुत पस्तक में श्चित्तमात्र है। इस बात को मुख्तार सा० ने अनुपम ढग दिखाई है । पन्त में सर्वोदय तीर्थ के १२० सुवर्ण सत्र से दर्शाया है। पुस्तक सर्वसाधारण मे वितरण योग्य है । देकर इसकी उपयोगिता शतगुणी कर दी है। जैन शासन मूल्य १० पैसा। के प्रचार के लिए यह बहुत उपयोगी है। मूल्य बीस सेवाधर्म-लोग पहिसा, सत्य, शोच प्रादि अनेक पंसा है। घों से परिचित हैं; किन्तु सेवाधर्म से वे प्रायः प्रपरिसमन्तभद्र-विचार-दीपिका-दूसरी शताब्दी के पति- चित हैं । भोर भनेक लोग सेवा करने को धर्म नहीं तीय विद्वान समन्तभद्र स्वामी हुए हैं। जिनके विषय में समझते हैं। ऐसे लोगों के सम्बोधनार्थ ही यह पुस्तक शिलालेख में लिखा मिलता है कि उन्होंने अपने समय में लिखी गई है। इसे पढ़कर मनुष्य सहज ही में सेवाभावी वीर शासन को हजार गुणी वृद्धि की है। लोकहितार्थ हो जायगा । मूल्य १० पैसा।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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