________________
वीर सेवा मन्दिर के कुछ प्रकाशन
परमानन्द जैन शास्त्री
श्रीपुर पार्श्वनाथ स्तोत्र-प्राचार्य विद्यानन्द की जिन बिम्ब, बिन्ध्यगिरि के जिन चैत्यालय, मेदपाट अपूर्व कृति है । यह स्तोत्र स्वामी समन्तभद्र के देवागम (मेवाड़) देशस्थ नागफणी ग्राम के मल्लि जिनेश्वर, (माप्तमीमांसा) स्तोत्र जैसा सुन्दर, महत्त्वपूर्ण पोर दार्श. मालव देश के मंगल पुरस्थ अभिनन्दन जिन इत्यादि निक है। इसमें स्तुतिकार ने 'देवागम' स्तोत्र की शैली अनेक जिन बिम्बो के लोक-विश्रुत अतिशयों का उल्लेख को अपनाया है। इसके प्रत्येक पद्य की रचना बड़ी गमीर किया है। इस प्रकार यह शासन चतुस्त्रिशिका जहाँ और सात्विक है। यह सम्पूर्ण स्तोत्र भक्ति मौर तर्क से दिगम्बर शासन के प्रभाव की प्रकाशिका है, वहाँ साथ मे परिपूर्ण है । इसका हिन्दी अनुवाद न्यायाचार्य प० इतिहास प्रेमियो के लिए इतिहासानुसन्धान की कितनी दरबारीलाल जी कोठिया ने किया है। साथ में विस्तृत ही महत्त्वपूर्ण सामग्री लिए हुए है। इसका अनुवाद व प्रस्तावना दी गई है जिसमें स्तोत्र गत विशेषताओं को सम्पादन ५० दरबारीलाल जी कोठिया न्यायाचार्य ने प्रकट करते हुए स्तोत्रकार के समयादि पर प्रकाश डाला। किया है। प्रस्तावना मे महत्त्व की बातों पर प्रकाश डाला गया है । मूल्य ७५ पैसा है।
__ गया है। प्रत्येक सरस्वती भण्डार और स्वाध्याय प्रेमी शासनचतुस्चिशिका-पं. बाशाधर जी के सम- को इसकी एक प्रति अवश्य मंगाकर रखना चाहिए। कालिक, तेरहवीं शताब्दी के महाविद्वान् मदनकोति यति- सरसाधु-स्मरण-मंगलपाठ-श्री जुगलकिशोर जी पति की रचना है। इसमें अनेक सिद्ध क्षेत्रों और प्रति
मुख्तार द्वारा संकलित भगवान महावीर और उनके शय क्षेत्रों पर स्थित जिन बिम्बों के प्रतिशयो, माहात्म्यो पश्चादर्ती २१ महान् प्राचार्यों के, अनेक प्राचार्यों तथा पौर प्रभावों के प्रदर्शन द्वारा यह बतलाया है कि दिगम्बर विद्वानों द्वारा किये गये १३७ पुण्य स्मरणों का यह महत्वशासन अपनी निर्ग्रन्थता, अनेकान्त वादिता प्रादि विशेष- पूर्ण संग्रह है। साथ में उन सबका हिन्दी अनुवाद भी तामों के कारण सर्व प्रकार से जयकार के योग्य है और दिया गया है। इस पुस्तक के पाठ से अपने महान् उसके लोक में बड़े ही प्रभाव और प्रतिशय रहे हैं । इस भाचार्यों के प्रति भक्ति मोर श्रद्धा जागृत होती है । तथा रचना में उन्होंने कैलाश-स्थित ऋषभदेव का जिन बिम्ब, प्राचार्यों का कितना ही इतिहास सामने पा जाता है। पदिनपुर के बाहुबली, श्रीपुर के पावं नाथ, होलागिरि पुष्ट चिकना कागज और सुन्दर टाइप । मूल्य ५० के शंखजिन, धारा के पार्श्वनाथ, वृहत्पुर के वृहद्देव, पैसा । जनपुर के (जनवरी) के गोम्मट स्वामी, पूर्व दिशा के माचार्य प्रभाचन्द्र का तत्स्वार्थ सूत्र-यह अन्य भाकार पाश्वं जिनेश्वर, विश्वसेन द्वारा समुद्र से निकाले गये मे छोटा होने पर भी उमास्वाति के तत्त्वार्य सूत्र की तरह शान्तिजिन, उत्तर दिशा के जिन बिम्ब, सम्मेद शिखर के दश अध्यायों में विभक्त है । मूल विषय भी इसका सूत्र जी बीस तीर्थकर, पुष्पपुर के पुष्पदन्त, नागबह के नाग- के समान मोक्षमार्ग का प्रतिपादक है। और क्रम भी हृदेश्वर जिन, पश्चिम समुद्र तट के चन्द्रप्रभ जिन, पावा- प्रायः एक जैसा है-कहीं-कहीं पर थोड़ी सी कुछ विशेके वीर-जिन, गिरनार के नेमिनाथ, चम्पापुर के वासुपूज्य, षता अवश्य पाई जाती है। एक प्रकार से इसे सस्वार्थनर्मदा के जल से मभिषिक्त शान्ति जिनेश्वर, केशोराय- सूत्र का ही संक्षिप्त संस्करण कहा जा सकता है। विद्यापाटन (माशारम्य) के मुनि सुव्रत जिन, विपुलगिरि के पियों पौर स्वाध्याय प्रेमियों को कंठस्थ करने योग्य है।