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________________ चाणक्य २१५ स्वभाव के कारण युवराज धननन्द उससे रुष्ट हो गया। के लक्षण दीख पडे । पूछ ताछ से ज्ञात हुमा कि यह वही मोर उसने चाणक्य का अपमान किया, और उसे अग्रामन बालक है जिसकी माता का दोहला शान्त किया था। से शिखा पकड कर उतरवा दिया। इस अपमान से । तरवा दिया। इस अपमान से प्रतएव वह उस बालक को साथ लेकर चल पड़ा। और चाणक्य भाग बबूला हो गया। उसने उमी ममय नन्दवश कई वर्ष नक उसे राज्योचित शस्त्र और शास्त्र विद्या की का सान्वयनाश करने की कठोर प्रतिज्ञा की'। अपने शिक्षा देकर निपुण बना दिया। और धीरे-धीरे उसने जन्म समय मे माधुणों द्वारा की गई भविष्यवाणी का उसके कमाधी व भी जटा दिये। स्मरण कर परिव्राजक के वेष मे वह एक ऐसे व्यक्ति की ३२६ ई० पूर्व सिकन्दर का जब भारत पर प्राक्रमण खोज मे निकल पड़ा, जो गजत्व के गुणो से युक्त हो। हया पौर विदेशी यवनों के भारत पर होने वाले प्राधि हिमालय की तराई मे पिप्पलीवन के मोरियो का पत्य मे देशमन चाणक्य के हृदय को बड़ी चोट लगी। एक गणतत्र था। ये लोग व्रात्य क्षत्री थे, और जनधर्म किन वह विश्वजिना सिकन्दर की प्रसिद्धि से प्रभावित को मानते थे । एक दिन घमत घाम चाणक्य इसी ग्राम भी उपा। प्रतमने चन्द्रगप्त को सलाह दो कि वह में गलैचा, प्रो. गांव के मोयंवजी मुखिया के यहाँ ठहग। यनानियो को सैनिक पद्धति, सैन्य सचालन मोर युद्ध उस मुखिया का पुत्री गर्भवती थी, उसे उसी समय चन्द्र कौशल का पक्ष पनुभव करे। चन्द्र गुप्त यूनानी शिविर पान करने का दोहना उत्पन्न हुपा था। चाणक्य ने मे चना गया। पोर गपचर होने के सन्देह में बन्दी हो कहा उत्पन्न होने वाले शिशु पर मेरा अधिकार रहेगा, गया। और सम्राट के सामने उपस्थित किया गया । इस शर्त पर युक्ति से वह दाहला शान्त कर दिया । और उसकी निर्भीकता से प्रसन्न होकर सम्राट् ने उसे मुक्त वहाँ से चल दिया। कुछ समय पश्चात् उस लड़की ने कर दिया और पुरस्कार भी दिया। चन्द्रगुप्त ने अभीष्ट एक सुन्दर तेजम्बी पुत्र का जन्म दिया। दाहले के प्राचार मैनिक जानकारी प्राप्त की। और सम्राट् सिकन्दर के पर उसका नाम चन्द्रगुप्त रखा गया। ये घटनाए भारत स बाहर निकलने ही पजाब के वाहीकों को मम्भवत: ३४५ ई० पूर्व महई। उभा कर यूनानी सत्ता के खिलाफ विद्रोह कर दिया। विशाल राज्य के अधिपनि नन्दों का समूल विनाश न नन्दों का समूल विनाश और ई० पूर्व ३२३ में चाणक्य के निर्देशानुसार अपना करना हमी-खेल नही था। चाणक्य इस तथ्य से परिचित एक छोटा मा राज्य मगध साम्राज्य की सीमा पर स्थाथा, किन्तु दृढ प्रतिज था और बडे धैर्य के साथ उसकी पित कर लिया। प्रौर ई० पूर्व ३२१ में चन्द्रगुप्त और तय्यारी मे सलग्न रहा। पाठ-दश वर्ष बाद वह फिर जब । चाणक्य न छोटी सी सना के साथ छपवेष में पाटलीपुत्र उसी ग्राम मे प्राया, तब उसे ग्राम के कुछ बालक खेलते तब उसे ग्राम के कुछ बालक खेलते पहुँच कर गजधानी पर पाक मण कर दिया । परन्तु नन्द हुए मिले। उनमे एक तेजस्वी बालक राजा बना हुआ की असीम सैन्य शक्ति के सामने उनकी कूट नीति सफल था और अन्य बालकों पर शासन कर रहा था। चाणक्य न हो सकी। और वे दोनो प्राण बचाकर वहां से भागे। कुछ देर तक उन बालकों के कौतुक को देखता रहा। नन्द की सेना ने पीछा भी किया, पौर बाल-बाल बचकर पश्चात् उसने उस बालक से वार्तालाप किया । वह उसकी किसी तरह प्राणो की रक्षा कर सके। तुरत बुद्धि, वीरता, साहस पोर तेजस्विता को देख कर एक दिन एक वृद्धा के झापड़े के बाहर खड़े हुए इन बड़ा प्रसन्न हमा । वह सामुद्रिक शास्त्र का भी ज्ञाता था, दोनों ने उस बद्धा को अपनी सन्तान को डाँटने के मिस प्रतएव उसे बालक के सामुद्रिक चिन्हों में सम्राट् बनने यह कहते हुए सुना कि चाणक्य प्रधीर और मूर्ख है। ३. कोशेन भृत्यश्च निबद्ध मूल, उसने सीमा प्रान्तो को प्राधीन किये बिना ही साम्राज्य पुत्रश्च मित्रश्च विवृद्ध शाखम् । के केन्द्र पर धावा बोल कर बड़ी भारी भूल की है, उसी उत्पाटघ नन्दं परिवर्तयामि, तरह तू भी कर रहा है। इससे चाणक्य को अपनी भूल महादुम वायुरिवोग्रतेजः।। -सुखबोषा का परिज्ञान हुमा। और फिर उन दोनों ने नये उत्साह
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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