________________
शिवपुरी महिमा
२१३
निर्जन गिरि कंदर खोह भरे, विचरण करती वन बालायें। शृंगार भरी गगनागन को, छती प्रिय पवत मालायें । यह नरवर गढ़ है निकट यहीं, नल दमयंती की केलि थलो। वीरबा प्रदेश प्रसिद्ध यही, होते आये रणवीर यहा ।।७।।
शुभ मिद्ध भूमि जहा पावन हो. चलिये सोनागिर वंदन को। जिन चंदनाथ को तपोभूमि, भव भव के पाप निकंदन को। जिन के दर्शन अरु वदन गे. तन मन हो जाते हैं पावन । वह मुक्ति थान अभिराम गये, मुनि साढ़े पांच कराड़ यहा ।।८।। गोपाचल पर्वत पून्यथली, जिन विम्ब विशाल सूहाते हैं। जिनके दर्शन पर वंदन से, कृत कृत्य धन्य हो जाते है। नप मानसिंह को रगथली, कीति कलधौत सनातन है। वापो अरु कूप सरोवर है, अमृत मय जिनमें नार यहा ।।६।। कविलासनगर कोलारस है, गढ़ कोट द्वार चहं अोर बने। कुशवाह नपति के रगमहल, जिससे थे सुन्दर कोति सने । जिनमदिर अतिशय क्षत्र यहा, जिनविम्ब विशाल सुहावन है। शुभ स्वग लोक से वदन को, पातो देवो को भीर यहा ।।१०।। प्रावो दर्शन करले चलके, यह तीर्थ क्षेत्र पचराई है। चौरासी की शोभा सुन्दर, अतिरूप राशिधर पाई है। थूवन जी के मदिर विशाल, मन भावन वैभवशाली हैं।
चंदेरी की प्राचीन कला, हरती जन मन की पीर यहां ।।११।। शिवपुरी की भूमि पुरातन है, नतनता की छवि छाई है। श्री वार जिनालय भवन कला, नव रूपराशि धर पाई है। यह मानस्तभ गगनचुबी, कचनमय कलग शिखर सोहे। रवि किरण प्रभा देती, बरसाता चन्द्र सुधा के सीर यहा ।।१२।।
पावन विध्याचल अंचल है, वहती मृदु मंद समीर यहा ।।