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________________ पावागिरि-ऊन मौर वह जैन स्तूपो के प्राचार पर की गई प्रतीत होती है। ११ मन्दिर अर्ध भग्न दशा मे खडे हैं । इनके अतिरिक्त अनेक मन्दिरो के भग्नावशेष इधर-उधर बिखरे हुए है। क्षेत्र का विकास -मन्दिरो का जीर्णोद्धार कार्य यह पुरातत्व विभाग के अन्तर्गत है। तत्कालीन होकर सरकार में क्षत्र के स्वामित्व का अधिकार ___ इस स्थान पर इतने अधिक मन्दिरो के निर्माण को प्राप्त होने पर दि० ५।१०।३५ को प्रारम्भ किया गया देखकर लगता है कि इस स्थान का किसी काल में अवश्य था । इसके फलस्वरूप प्राचीन मन्दिरो का जीर्णो सास्कृतिक महत्त्व रहा है। द्वार हो चुका है। जीर्णोद्धार के अतिरिक्त नवीन निर्माण कार्य भी हग्रा है। सड़क के किनारे एक विशाल धर्मशाला व्यवस्था-क्षेत्र की व्यवस्था "श्री दिगम्बर जैन बन गई है। उममे बडवाहा निवासिनी सेठानी वेमरबाई मिद्धक्षेत्र पावागिरि सरक्षिणी कमेटी द्वारा होती है, की पोर से एक भव्य मन्दिर का निर्माण हो चका है। जिसका निर्वाचन तीन वर्ष पश्चात् होता है । यहाँ प्राय इम मन्दिर में मुल नायक भगवान महावीर की प्रतिमा के साधन यात्रियों द्वाम दिया गया दान. मन किराया है जो पद्मासन है और सवत् १२५२ की है। हम प्रति- पोर ध्रुव कोष की ब्याज है। रिक्त ७ पाषाण की, ५ धातु की प्रतिमाएँ तथा ३ चरण- वाषिक मेला- यहाँ पर पहले फाल्गुन सुदी ५ से १० चिन्ह विराजमान है। यहा एक ऐसा यत्र भी विराजमान तक वाषिक मेला भरता था। किन्तु अब कुछ वर्षों से वह है, जिसमे सम्पूर्ण तत्त्वार्थसूत्र प्रति है। बद हो गया है। सवत् १९९३ म यहा पच कल्याणक पहाड के मन्दिर के मामने एक मुन्दर मानस्तम्भ बन विम्ब प्रनष्ठा हुई थी । सवत् १९६४ मे महावीर चैत्याचुका है। इसमें चार मूर्तियाँ विराजमान है । इस प्रकार लय का वदा-प्रनिष्ठा हई थी। दोनो हा वष यहाँ जनता नीचे और ऊपर के मन्दिरो में प्राचीन और नवीन कुल का उल्लखनीय उपस्थित रहा है। ४० प्रतिम ए है जिनम ३३ पाषाण की है, ७ घातु की क्षेत्र पर संस्थाएँ- इस समय क्षेत्र पर निहाल चन्द है । इनके अतिरिक्त ६ यत्र है। भवन, मिडिल स्कूल, शान्तिनाथ प्रोषधालय प्रोर दिगम्बर क्षत्र पर शिखरबन्द ३ मन्दिर है और ५ चैत्यालय जैन उदासीन प्राथम नामक सस्थाएँ है । अनेकान्त के ग्राहक बनें 'अनेकान्त' पुराना ख्यातिप्राप्त शोध-पत्र है। अनेक विद्वानों और समाज के प्रतिष्टित व्यक्तियों का अभिमत है कि वह निरन्तर प्रकाशित होता रहे। ऐसा तभी हो सकता है जब उसमे घाटा न हो और इसके लिए ग्राहक संख्या का बढ़ाना अनिवार्य है। हम विद्वानों, प्रोफेसरों, विद्यार्थियों, सेठियों, शिक्षा-सस्थाओं, संस्कृत विद्यालयों, कालेजों, विश्वविद्यालयों और जैन श्रत की प्रभावना में श्रद्धा रखने वालों से निवेदन करते हैं कि वे 'अनेकान्त' के ग्राहक स्वयं बने और दूसरों को बनावें। और इस तरह जैन संस्कृति के प्रचार एवं प्रसार में सहयोग प्रदान करें। इतनी महगाई में भी उसके मूल्य में कोई वद्धि नहीं की गई, मूल्य वही ६) रुपया है। विद्वानों एवं शोधकार्य मंलग्न महानुभावों से निवेदन है कि वे योग्य लेखों तथा शोधपूर्ण निबन्धों के संक्षिप्त विवरण पत्र में प्रकाशनार्थ भेजने की कृपा करें। -व्यवस्थापक 'अनेकान्त'
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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