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________________ २१०, वर्ष २५, कि०५ अनेकान्त सर्वश्रेष्ठ गिना जाता है। प्राजकल इस मन्दिर में कोई किये जाने के प्रमाण मिलते हैं। प्रचलपुर और खेरला प्रतिमा विराजमान नही है । यहाँ की दो प्रतिमाए इन्दौर का शासक श्रीपाल नरेश जिसका उल्लेख ऊपर किया जा म्यूजियम में पहुंच गई है। उनमे शान्तिनाथ भगवान की चुका है-सम्भवत: इन्ही रामखेत का शिष्य था। यदि प्रतिमा पर स० १२४२ माघ सुदी ७ प्रकित है। दूमगै यह ग्वालेश्वर मन्दिर इसी वाल गोविन्द का बनाया हुमा प्रतिमा पर लेख तो है किन्तु वह प्रस्पष्ट है । सम्भवत: सिद्ध हो जाता है तो ऊन का इतिहास वल्लाल से प्रायः वह भी इसके समकालीन होगी। सौ वष प्राचीन सिद्ध हो सकता है। किन्तु अभी इस सम्बन्ध में कोई निश्चित मत प्रगट करना जल्दबाजी होगी। कहते है, इस मन्दिर मे पहले एक सिंह रहा करता था। हो सकता है, निर्जन और एकान्त इम वन प्रदेश में बने हुए इस पार्वत्य मन्दिर को अपने लिए सुरक्षित और सुविधाजनक समझकर वनराज ने इमे अपना अड्डा बना लिया हो। इस मन्दिर की रचना शैली नहाल प्रवार डंग मदिर से बहुत कुछ मिलती-जुलती है। शिखर का मामलक और उष्णीश जीर्णप्राय है किन्तु शेष भाग अखण्डित है । इमको छतों मे अत्यन्त कलापूर्ण कमल बने हुए है जा छहसात शताब्दियों के काटन प्राघात सहकर प्राज भी सजीव से प्रतीत होते है। मन्दिर के मध्य मे सभा मण्डप बना हुपा है। तीन द्वार है. जिनके सिग्दलो पर पद्यामन मूर्तियां बनी हुई है। इसका गर्भ गृह सभामण्डप से दस फुट नीचा है । नीचे पहुँचने के लिए दस सीढियाँ बनी हुई है। गर्भ गृह मे तीन विशाल प्रतिमाएं खड्गासन मुद्रा में विराजमान हैं। ये तीनो प्रतिमाएं भगवान शान्तिनाथ, भगवान कुन्थुनाथ और भगवान अरहनाथ की प्रतीत होती हैं। इन मूर्तियों के अभिषेक के लिए दोनो पोर सीढियां बनी हुई है । सभा मण्डप की वेदी मे १४ प्राचीन श्री ग्वालेश्वर जिन भवन के अन्दर निमित तीन प्रतिमाए विराजमान है तथा ६ प्रतिमाए नवीन विराजतीर्थकर भगवानों की खड्गासन मूर्तियां मान की गई है। भगवान सम्भवनाथ की ३ फुट ऊची ग्वालेश्वर मन्दिर -पहाड पर जो विशाल मन्दिर मुख्य प्रतिमा है। बना हमा है, वह ग्वालेश्वर मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मन्दिर मे मूलनायक भगवान शान्तिनाथ की सम्भवतः यह मन्दिर किसी वाल नामक व्यक्ति ने बन- तिमा. पत: इसे पब शान्तिनाथ मन्दिर भी कहा वाया था, इसीलिए इसका नाम ग्वालेश्वर मन्दिर प्रसिद्ध जाता है। इसी मन्दिर को पावागिरि सिद्ध क्षेत्र कहा हो गया । सिरपुर में एक मन्दिर मे शिलालेख मिला था। जाता है। उसमे रामखेत के शिष्य ग्वाल गोविन्द का नाम मिलता इस मन्दिर को देखने से एक बात की मोर विशेष है उदयपुर केशरिया में भी ग्वाल गोविन्द द्वारा प्रतिष्ठा रूप से ध्यान जाता है । इसके शिखर की रचना अनूठी है
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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