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पावागिरि-ऊन
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बहुत बड़ा है । प्रागे पहाड की परिक्रमा करता हुआ यह पावागिरि क्षेत्र पर उपलब्ध पुरातत्त्व सामग्री-गावानाला 'बैलोना' नाम से पुकारा जाता है । किन्तु थोड़ा गिरि क्षेत्र ऊन के सम्बन्ध में होल्कर राज्य के और आगे चल कर इसे 'बेनना' कहते है।
गजेटियर' मे उन ग्राम के सम्बन्ध मे विवरण प्रकाक्षेत्र पर एक भोयरा है, जिसमे ६ तीथंकर मूर्तियां
शित हुया था उसमे लिखा है--"यह एक छोटा सा
शत हुआ है। कुछ मतियां बावडी की खदाई में भी निकली थी। गाँव है । इसकी एक मात्र विशेषता प्राचीन जैन मन्दिरों एक मूर्ति की चरण चौकी पर प्रतिष्ठा-काल संवत् २६६
के भग्नावशेषों में निहित है । ये १२वी शताब्दी के हैं, उत्कीर्ण है । किन्तु मूर्ति को रचना शैली से यह संवत्
उनमे से एक मन्दिर मे घार के एक परमार राजा का १२६६ प्रतीत होता है इस लेख मे 'पवा' शब्द भी लिखा
एक लेख भी मिला है। हुपा है । जिससे प्रतीत होता है कि मूर्ति की प्रतिष्ठा यही
प्रसिद्ध पुरातत्त्व वेत्ता श्री राखाल दास बनर्जी के पर हुई थी।
मतानुसार खज राहो के पश्चात् मध्य भारत मे ऊन के इस क्षेत्र के अधिकारियो की मान्यता है कि यह
मलावा और कोई स्थान नही है जहा इतने प्राचीन देवाक्षत्र बहुत प्राचीन है तथा यही पावागिरि क्षेत्र है, यही लय अब तक सुरक्षित अथवा अर्व रक्षित दशा मे विद्यसे स्वर्णभद्र आदि चार मुनि मुक्त हुए थे । बेलना नदी ही वस्तुतः चेलना नदी है । चेलना का रूप बदलते २ बेलना
प्रारम्भ में यहाँ पुजारी को पांच प्रतिमाएं और एक नाम पड़ गया । अपनी इसी मान्यता की बदौलत ये
चरण युगल मिले थे। कुछ समय पश्चात् धर्मशाला के लोग अब पवा को पाबागिरि कहने लगे है।
पीछे जमीन खोदते समय एक प्रतिमा और चरण निकले
थे। इनके प्रतिक्ति चौवारा डेरा न० २ नामक जैन __इसमें सन्देह नही कि पावा और पवा, चेलना और
मंदिर मे बारहवी शताब्दी की दो तीर्थकर मूर्तियां थी। वेलना इनमें शब्द-साम्य है । किन्तु विचारणीय बात यह
जो इन्दौर नवरत्न मंदिर (पुरातत्त्व सग्रह लय) में पहुँचा है कि जिस मूर्ति की चरण-चौकी पर पवा शब्द उत्कीर्ण
दी गई हैं । इस मदिर के सिर दल पर वि० स०१३३२ मिलता है, उससे लगता है कि सवत् २६६ (ई. सन्
का दो पक्तियो का एक लेख था, वह भी इंदौर संग्रहा२४२ मे, अथवा १२६६ (ई० सन् १२४२' में भी इस
लय में सुरक्षित है। क्षेत्र को पवा कहा जाता था, पावा नही । बेलना नदी के जो विभिन्न नाम मिलते हैं, जैसे बैलानाला, बैलाताल
जो fच मतियां प्रारम्भ मे भूगर्भ से उत्खनन के फलबैलोना बेलना उन नामों में तो परस्पर साम्य है और
स्वरूप निकली थी उनका विवरण इस प्रकार है- . बैलानाला का ही रूप बदलते-बदलते बेलना पड़ गया है,
प्रतिमा नं० १-प्रतिमा खड्गासन, प्रवगहना एक किन्तु चेलना या चलना के साथ उनका कोई साम्य नहीं पर
फुट दस इञ्च । दोनों भोर इन्द्र । ऊपर की ओर दो देव पौर विश्वासपूर्वक यह नहीं कहा जा सकता कि चेलना
तथा दो पद्मासन तथा एक खड्गासन प्रतिमा।
प्रतिमा न०२-खड्गासन, अवगाहना एक फुट दस अथवा चलना का रूप बिगड़ने-बिगडते वेलना पड़ गया।
इञ्च । शेष पहली प्रतिमा के समान । इसके अतिरिक्त यह बात भी विचारणीय है कि १६-१३
प्रतिमा न० ३ -- खड्गासन, प्रवगाहना एक फुट दस वीं शताब्दी से पूर्व कोई लेख, मूर्ति अथवा मन्दिर यहाँ उपलब्ध नही जिसमें स्पष्ट पावा का समल्लेख मिलता
इच। इधर-उधर दो इन्द्र । ऊपर दो देव तथा दो तीर्थहो। इसलिए केवल सम्भावना अथवा सन्देह के बल पर
कर प्रतिमाएँ । एक पद्मासन, दूसरी खड्गासन । इसे पावागिरि और सिद्ध क्षेत्र मानना क्या उचित
प्रतिमा न० ४-खड्गासन, एक चमरवाहक । यह हो सकता है, इसके लिए कुछ ठोस माघार खोजने होंगे।
शिलाफलक लगभग डेढ फुट का है। वर्तमान कल्पनामो के सहारे अधिक दूर तक नही चला 1 The Indore State Gazetter, Vol, I. Text by जा सकता।
__L.C. Dhariwal M.A. L.L.B., p. 669.