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________________ २०६, वर्ष २५, कि०५ अनेकान्त विवादास्पद पावागिरि-ऊन को पावागिरि सिद्ध- जो मूर्तियाँ और शिलालेख यहाँ मिले है, वे सब प्रायः क्षेत्र मानने में जो कारण कार दिये है, कुछ विद्वान इन बल्लाल के समय के अथवा पश्चात्काल के हैं, बल्लाल कारणों को विशेष महत्व नहीं देना चाहते । पुरातत्त्व से पूर्व का कोई लेख, मूर्ति प्रथवा मन्दिर नहीं मिला सामग्री और चरण तो उन स्थानो पर भी प्राप्त हुए है, इससे यह अनुम न लगाया जा सकता है कि जो सिद्धक्षेत्र नही माने जाते है । इसी प्रकार निर्वाण काड बल्लाल से पहले उस स्थान को तीर्थ के रूप में के ऋमित वर्णन को कोई गम्भीर कारण नहीं माना जा मान्यता नही थी; बल्लाल ने तीर्थ क्षेत्र होने के सकता । निर्वाण काण्ड मे क्रम का कोई ध्यान नहीं रक्खा कारण यहाँ मन्दिरों का निर्माण नहीं कराया था। गया। इसके अतिरिक्त इन कारणों के विरुद्ध कई तर्क अन्य किसी कारण से कराया था। यदि तीर्थभूमि हैं । निर्वाण काण्ड की कई प्राचीन प्रतियों मे 'पावागिरि होने के कारण उपते यहाँ मंदिरों का निर्माण कराया पर सिहरे' यह गाथा नहीं मिलती, लगता है यह गाथा होता तो उसे यहाँ वैष्णव मन्दिर बनवाने की क्या पावविवादास्पद रही है । कुछ लोग इसे निवाण काण्ड का श्यकता थी? बल्लाल पपने जीवन में मन्दिरों का ही मल गाथा मानते हैं और कुछ लोग इसे प्रक्षिप्त मानते है। निर्माण करा सका । मनिपा की प्रतिष्ठा तो उसके बाद मे यह बात भी प्राश्चर्यजनक है कि वर्तमान मे ऊन में हुई। जो जैन मूर्तियों अब तक भू गर्भ से प्राप्त हुई है। उपलब्ध किसी शिलालेख, मन्दिर या मूर्ति पर पावागिरि वे सवत् १२१८, १२५२ और १२६३ की है। ये सब का नाम नही मिलता और न यहाँ चेलना अथवा चलना बल्लाल के भी बाद की है । इस स्थान का नाम नदी ही है। यहाँ जो नदी वर्तमान में है। उसे लोगा चिरूड़ कभी पावा रहा हो, ऐसा कोई प्रमाण भी नही मिलता। कहते हैं और सरकारी कागजातों में इस नदी का नाम इन समस्त तर्कों के बावजूद हमारा एक निवेदन है चन्देरी पाया जाता है । चेलना का चिरूड़ या चन्देरी के कि यदि वास्तविक पावागिरि क्षेत्र वर्तमान ऊन न होकर रूप मे कैसे अपभ्रश हो गया, इसकी खोज अब तक नही कोई अन्य स्थान है, जब तक उसके सम्बन्ध में निश्-ि हो सकी है। चत प्रमाण उपलब्ध न हों, तब तक संदेह पोर सम्भावएक बात और भी ध्यान देने योग्य है । मालव नरेशे नामो केवन पर वर्तमान क्षेत्र को अमान्य कर देने की बात बल्लाल ने यहाँ ६६ मन्दिरों का निर्माण कराया था। को गम्भीरता के साथ नही लिया जा सकता। पक्ष-विपक्ष उपयुक्त किवदन्ती के अनुसार उसने इन मन्दिरों का के तर्क उपस्थित करने मे हमारा प्राशय शोध छात्रों और निर्माण व्याधि से मुक्त होने औरदबा हुआ धन प्राप्त होने विद्वानों के समक्ष तथ्य उपस्थित करना है । जिससे पावा. पर उससे ही कराया था। यदि यह किवदन्ती निराधार गिरि सिद्धक्षेत्र वस्तुत: कहाँ है ? इसका निर्णय किया है, यह भी मान लिया जाय तब भी उसने यहाँ पर तीर्थ- जा सके । क्षेत्र होने के कारण इन मन्दिरों का निर्माण कराया था। क्या पवा क्षेत्र पावा गिरि है ?-- पवा क्षेत्र झांसी यह बात विश्वासपूर्वक कहना कठिन है। इन 86 मन्दिरों जिले में झांमी और ललितपुर के मध्य में ताल में कितने जैन मन्दिर थे और कितने वैष्णव मन्दिर यह बहट से १३ कि. मी. दूर है। यह क्षेत्र घने उल्लेख किसी शिलालेख प्रादि में देखने में नहीं पाया। जंगलो में दो पहाड़ियों के बीच में स्थित है। क्षेत्र का किन्तु वर्तमान में जो ११ मन्दिर बचे हुए मिलते है, उन प्राकृतिक सौदर्य प्रत्यन्त मनोरम है । एक ओर देतबन्दी मे मन्दिर वैष्णव हैं और २ मन्दिर जैन हैं । इससे यह बहती है, दूसरी मोर बेलना। चारों भोर पहाड़ियों और अनुमान लगाना अनुपयुक्त न होगा कि वैष्णव मन्दिरों इन सबके बीच में क्षेत्र है। उत्तर की मोर जो नदी बहती की संख्या जैन मन्दिरों की संख्या से अधिक रही होगी। है. उसे नाला कहा जाता है। इसके कई नाम हैं । नाले इन मन्दिरों के अतिरिक्त इस भू भाग मे जो भग्नावशेष को बांध के पास 'बेला नाला' कहते है और दूसरे बांध बिखरे पडे है. वे उन्ही ६ मन्दिरों के प्रतीत होते हैं। के पास इसका नाम 'बैला ताल' पड़ता है। यह ताल
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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