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पावागिरि-ऊन
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उपयुक्त विवरण से कई बातों पर प्रकाश पडता है। खेडला के निकट हप्रा था। अब्दुल रहमान का विवाह (१) मालवराज वल्लाल परमार वंश का राजा नहीं हो रहा था। तभी लडाई छिड़ गई। वह दूल्हे के वेश था। (२) मालवा मोर अवन्ती मे वल्लाल नाम के दो मे ही लड़ा। इस युद्ध मे दोनो मारे गये । राजा नहीं थे, किन्त प्रवन्ति भी मालवा में थी पार इम ऐतिहासिक तथ्य से यह सिद्ध हो जाता है कि वल्लाल चालक्य-होयसल राजानों ने मिलकर परमार नरेश का ऐलवंशी था। इसके पूर्वजों का शासन ऐलिचपुर में था। मार कर उसके स्थान पर बल्लाल को राजा बनाया था। वल्याण के चालुक्य जगदेकमल्ल और होयसल नरसिंह प्रथम (३) होयसल वशी वल्लाल द्वितीय कुमारपाल की मृत्यु ने परमार राजा जयवर्मन के विरुद्ध सन ११३८ के लगभग (सन् १९७२) के पश्चात् सन् ११७३ म राजसिहासन आक्रमण करके उसे राज्यच्युत कर दिया और अपने पर बैठा था। मालवराज वल्लाल की मृत्यु उससे पहले विश्वस्त राजा बल्लाल को ऐन्नि चपुर से बुला कर मालवा ही हो चुकी थी, क्योंकि कुमारपाल के सामन्त यशोधवल का राज्य सौप दिया और सन् ११४३ मे चोलुक्य कुमारने युद्ध में उसे मारा था । इसलिए यह सम्भावना भी
पाल की प्राज्ञा से चन्द्रावती नरेश विक्रमसिंह के भतीजे ममाप्त हो जाती है कि प्रशस्तियो और लेखों में जिस परमारवशी यशोधवल ने बल्लाल पर आक्रमण करके युद्ध मालवराज बल्लाल का उल्लेख पाया है, वह होयसल ।
मे उसका वध कर दिया और उसका सिर कुमारपाल के वंशी वल्लाल द्वितीय हो सकता है।
महलो के द्वार पर टाग दिया। इस प्रकार बल्लाल मालवा इन निष्कर्षों के प्रकाश मे हम यह स्वीकार कर सकते है। पर प्रायः ५-७ साल तक ही शासन कर पाया। किन्तु हर मन्दिरो का निर्माता मालवराज वल्लाल था। 'पज्जूपण चरिय' मे बल्लाल को सपाद लक्ष के अधिपति तब एक प्रश्न शेष रह जाता है कि अगर यह मालवराज अर्णोराज के लिए काल स्वरूप बताया है। इससे प्रतीत वल्लाल परमार या होयसन नही था तो फिर यह किस
होता है कि बल्लाल अत्यन्त वीर और साहसी था और वंश से सम्बन्धित था ?
उसने अल्पकाल मे ही अपने प्रभाव का विस्तार कर इस सम्बन्ध में खेरला गाँव (जिला वैतूल) से प्राप्त
लिया था। शिलालेख से कुछ समाधान मिल सकता है। यह शिला
___ हमे यह अवश्य स्वीकार करना पड़ेगा कि बल्लाल लेख शक स. १०७६ (ई. सन् ११५७) का है। इस
प्रतापी नरेश था। साथ ही उसका व्यक्तित्व विवादास्पद शिलालेख में राजा नृसिंह-वल्लाल-जंतशाल ऐसी
भी था । विभिन्न शिलालेखों और ग्रन्थों में उसके सम्बराज-परम्परा दी हुई है । यह शिलालेख खण्डित है, प्रतः
न्ध में एकमत्य नही मिलता । 'पज्जुण्ण चरिय' मे उसे यह पूरा नही पढा जा सकता है । एक और भी लेख यहाँ
रणघोरी का पुत्र बताया है तो खेरला के शिलालेख में प्राप्त हुप्रा है । यह लेख शक सं० १०६४ (ई. सन्
नसिंह का। सोमप्रभ प्राचार्य ने "कुमार पाल प्रबोष" में ११७२) का है। इस समय जैतपाल राजा राज्य कर
कुमार पाल नरेश के सेनाध्यक्ष काकभट को बल्लाल का रहा था। इस लेख का प्रारम्भ 'जिनानुसिद्धिः' पद से ।
वध करने वाला बताया है तो लूणवसति, अचलेश्वर और हमा है। इससे लगता है कि ये राजा जन थ । किन्तु जारी गांव के शिलालेखों में बल्लाल के सहार कर्ता का जैतपाल को मराठी के प्राद्य कवि मुकुन्दराज ने वैदिक
नाम यशोधवल दिया है । इस प्रकार के मतभेदों के कारण धर्म का उपदेश देकर उसे वेदानुयायी बना लिया था। मौर कही भी उसके वश का उल्लेख न होने के कारण
होत तशी राजा श्रीपाल के वंशज थे। इतिहासकारों में भी वल्लाल को लेकर भारी मतभेद पाये खेरला ग्राम श्रीपाल राजा के प्राधीन था। राजा श्रीपाल जाते है । ऐसी स्थिति में किसी भी शिलालेख , के साथ महमूद गजनवी (सन् ६६६ से १०२७) के भाजे प्राचीन ग्रंथ की विश्वसनीयता मे सदेह न कर प्रम्दल रहमान का यद्धहमा था। 'तवारीख-ए-अमजदिया' उनमे सामञ्जस्य स्थापित करने का हमे के अनुसार यह युद्ध ई० सन् १००१ में एलिचपुर और तभी सत्य पकड़ में प्रा सकता है।