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________________ २०४, वर्ष २५, कि०५ प्रकान्त कहलाया। इसका तात्पर्य ही यह है कि मालवराज बल्लाल पराजित भी हुआ। चौलुक्य नरेश जयसिंह सिद्धराज के पौर उज्जयिनी का बल्लाल ये दो पृथक् व्यक्ति नहीं थे। हाथों भी उसे करारी पराजय उठानी पड़ी और इसमें दोनों एक थे। वह कंद भी हो गया। वह बाद में छूट गया, किन्तु पर. यहाँ हम संक्षेप मे मालवा के परमारो और गुजरात मार राज्य की चूलें तक इससे हिल गई। के चालुक्य राजाओं का क्रमबद्ध इतिहास' दे रहे है। नरवर्मन का पत्र यशोवर्मन सन ११३३ में गद्दी पर इससे अनेक शकाओं का समाधान हो जाता है। बंठा । परमार राज्य विखर गया था। देवास में विजय र सिन्धुराज ने मालवा मे परमारों का पाल ने अपना राज्य जमा लिया। चन्देल मदनवर्मन ने राज्य सुदृढ़ किया । सिन्धुराज का पुत्र भोज सन् १००० भेलसा पर , भेलसा पर अधिकार कर लिया। फिर चौलुक्य जयसिंह में मालवा की गद्दी पर बैठा। उसने अपना राज्य सिद्धराज ने पनः मालवा पर प्राक्रमण करके उसे बन्दी चित्तौड. बाँस वाडा, डगरपुर, भेलसा, खानदेश, कोकण बना लिया और सम्पूर्ण मालवा पर अधिकार करके उसे और गोदावरी के ऊपरी मूहानों तक विस्तृत कर लिया। अपने राज्य में मिला लिया और 'प्रवन्तिनाथ' विरुद माश उज्जैन और माण्ड उसी के अधिकार में थे। उसके धारण किया । सन ११३८ तक मालवा जयसिंह के पधिराज्यकाल में ही सन् १०४२ मे चोलुक्य जयसिंह कार मे रहा । इसके पश्चात् सम्भवतः यशोवर्मन के पुत्र के पत्र सोमेश्वर प्रथम ने मालवा पर कुछ समय के लिए जयवर्मन ने जयसिंह चौलुक्य के शासन के अन्तिम दिनों प्रधिकार कर लिया । भोज की मृत्यु के बाद सन् १०५५ मे मालवा को स्वतन्त्र कर लिया। किन्तु वह अधिक में मालवा कलचरि और चालुक्यों के हाथ में चला गया। समय तक मालवा पर अपना अधिकार नही रख सका। भोज का उत्तराधिकारी जयसिंह हुमा । उसने दक्षिण के कल्याण के चालुक्य जगदेकमाल और होयसल नरसिंह विक्रमादित्य षष्टम की सहायता से पुनः एक बार प्रथम ने मालवा पर आक्रमण किया, उसकी शक्ति नष्ट मालवा पर अधिकार कर लिया। सोमेश्वर द्वितीय ने कर दी और उस देश की राजगद्दी पर 'वल्लाल' नामक पनकवार मालवा पर चढ़ाई करके जयसिह को मार एक व्यक्ति को बैठा दिया। इस घटना के कुछ समय दिया और मालवा पर अधिकार कर लिया। जयसिंह की पश्चात् सन् ११४३ मे चोलुक्य कुमारपाल ने बल्लाल को मत्य होने पर भोज के भाई उदयादित्य ने चाहमान राजगद्दी से उखाड फेका और भेलसा तक सारा मालवा विग्रहराज ततीय की सहायता से पुन: मालवा पर अधिकार अपने राज्य में मिला लिया। कर लिया। सन् १०८० और १०८६ के उदयादित्य के लगभग बीस वर्ष तक मालवा गुजरात के राज्य का शिलालेखों के अनुसार उसकी राज्य-सीमाएं दक्षिण में भाग रहा । इस अवधि मे परमार वश के राजा गुजरात निमाड़ जिला, उत्तर में झालावाड़ स्टेट, पूर्व मे भेलसा नरेश के सामन्त बनकर भोपाल, निमाड़ जिला होशंगातक थीं। सन् ११०४ के लेख के अनुसार उसके बाद बाद और खानदेश का शासन चलाते रहे। इन्हें 'महाक्रमशः उसके दो पुत्र-लक्ष्मदेव और नरवर्मन गद्दी पर कुमार' कहा जाता था। बारहवीं शताब्दी के सातवें बठे। शतक मे परमार जयवर्मन के पुत्र विंध्यवर्मन ने चौलुक्य ___नरवर्मन मालवा की गद्दी पर सन् १०६४ मे बैठा। मूलराज द्वितीय को पराजित करके मालवा पर अधिकार नरवर्मन चन्देल और शाकम्भरी के राजामों से दो बार कर लिया। किन्तु विध्यवर्मन शान्तिपूर्वक राज्य नहीं 1. The Paramaras of Malwa (XI), The कर पाया। होयसलो और यादवो ने उसे चंन से नहीं Chaulukyas of Gujrat, (XII) by D.C.Gan- बैठने दिया, वे मालवा पर निरन्तर प्राकमण करते रहे। guly, in The Struggle for Empire, Vol. V, सन् १९६० के लगभग चोलो की सहायता से विध्यवर्मन p.p.66-81, Bhartiya Vidya Bhawan, Bom- ने होयसल राज्य पर प्राक्रमण कर दिया किन्त होयसल bay. नरेश वल्लाल द्वितीय ने उसे भगा दिया।"
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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