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पावागिरि-कन
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मन्त्री तेजपाल के माबू स्थित लणवसति' के लेख मे
ऊन के एक शिव मन्दिर मे एक शिलालेख है। उस ब
का है-मालवराज बल्लाल का वध में बल्लाल देव का नाम पाया है। भोज प्रबन्ध का कर्ता करने वाले का नाम यशोधवल दिया है। इसका समर्थन भी एक बल्लाल था। ऊन नगर के बसाने वाले बल्लाल अचलेश्वर मन्दिर के शिलालेख से भी होता है।
से भोज Fagar से भोज प्रबन्ध का कर्ता बल्लाल भिन्न था या दोनों
- बोधवल का वि० सं०१२०२ का एक शिलालेख एक ही व्यक्ति थे। यह भी एक प्रश्न है। ऊन को बसाने मजारी गांव से मिला है, जिसमे 'प्रमारवंशोद्भव महा- वाला बल्लाल निश्चय ही एक राजा था और उसका एक मण्डलेश्वर श्री यशोधवल राज्ये' इस वाक्य द्वारा यशोध- सामन्त
सामन्त भुल्लण ब्राह्मण वाड का शासक था जैसा कि नको महामण्डलेश्वर और परमार वंश का बताया है। 'पज्जण्ण चरित्र' की प्रशस्ति से पता चलता है। सम्भव यज राजा कुमारपाल का माडलिक राजा था और पाबू में है, इस राजा ने ही भोज प्रबन्ध की रचना की हो । प्रभी राज्य करता था। स० १२२० का उसके पुत्र धारावर्ष
एक समस्या शेष है, जिसका समाधान प्रावश्यक है। का एक लेख मिला है। इससे अनुमान लगाया जा सकता वरनाल को कुमार पाल चरित प्रन्थों, शिलालेखों और है कि यशोधवल का देहान्त इससे पूर्व हो गया होगा।
प्रशस्तियो मे सर्वत्र मालव राज लिखा है क्या मालवा मे मालवा के परमार राजा यशोवर्मा को गुर्जर नरेश उज्जयिनी भी शामिल सिद्ध राज जयसिंह ने पराजित करके मालवा पर अधि- श्री लक्ष्मीशंकर व्यास ने "चौलुक्य कुमारपाल" कार कर लिया था । यशोवर्मा के पश्चात् मालवाधिपति नामक ग्रंथ लिखा है। उसमे उन्होने बल्लाल नामक दो का विरुद बल्लालदेव के साथ लगा हुआ मिलता है। राजामों का उल्लेख किया है एक उज्जयिनी राज बल्लाल किन्तु परमार वशावली मे वल्लाल नामक कोई व्यक्ति तथा सो मालan
तथा दूसरे मालवराज वल्लाल । तथा यह भी लिखा है नही मिलता। तब प्रश्न उठता है कि यह वल्लाल किस कि उज्जयिनी राज बल्लाल ने मालवराज वल्लाल से वश का था।
सनिक अभिसन्धि कर ली। वल्लाल की मत्यु के सम्बन्ध में कई प्रशस्तियों मोर इस ग्रथ के प्रामुख लेखक डॉ० राजबली पाण्डेय ने लेखों में उल्लेख मिलता है । बड़नगर में कुमार पाल की भी चोलक्य कुमारपाल के विरुद्ध उज्जयिनी के राजा एक प्रशस्ति मिलती है । उसके १५वे श्लोक मे बताया है बल्लाल द्वारा अभियान करने का उल्लेख किया है। कि बल्लाल को जीत कर उसका मस्तक कुमार पाल के
इन इतिहासकारों के मत में उज्जयिनी और मालवा महलो के द्वार पर लटका दिया। इस प्रशस्ति का काल
के राजामों के नाम वल्लाल थे। दोनो समकालीन थे सं० १२०८ है और कुमार पाल के राज्याभिषेक का काल
और दोनों की परस्पर सुरक्षा सन्धि थी। इन विद्वानो की सं० १२०० है। अतः इस बीच मे ही बल्लाल की मृत्यु
इस मान्यता का प्राचार क्या है ? यह स्पष्ट नहीं हो होनी सम्भव है।
सका। गेट कंटरवति कीतिलहरी लिप्तामताशद्य ते । प्राचार्य सोमप्रभ, प्राचार्य हेमचन्द्र और प्राचार्य मोस रप्रद्युम्नवशो यशोधवल इत्यासीत्तनूजस्ततः॥ तिलक सूरि के कुमारपाल सम्बन्धी चरित ग्रथो मे बल्लाल यश्चौलुक्य कुमारपाल नपतिः प्रत्यथितामागत ।। को मालवराज लिखा है। तथा यह भी स्पष्ट लिखा है मत्त्वा सत्त्वरमेव मालवपति बल्लालमालघवान् ॥ कि बल्लाल के ऊपर चढ़ाई करने वाले सेनापति ने शत्र
अर्थात् परमार वशी रामदेव के अत्यन्त यश- का सिर छेद करके कुमारपाल की विजय पताका उज्जस्वी कामजेता यशोषवल नामक पुत्र हुमा । चोलुक्य यिनी के राजमहल पर फहरा दी। उदयपुर (भेलसा) मे वंशी कुमारपाल के शत्रु मालवपति बल्लाल को कुमारपाल के दो लेख सं० १२२० और १२२२ के मिले माता जानकर इसी ने उसको मारा।
है। उनमें कुमारपाल को प्रवन्तिनाथ कहा गया है। ३. भारत के प्राचीन राजवश, भाग १, पृ० ७६-७७। मालवराज वल्लाल को मार कर कुमारपास प्रवंतिनाथ