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________________ २०० वर्ष २५, कि०५ प्रनकान्त प्रतिमा न०५-- भगवान महावीर को सवा दो फुट दोनों मन्दिरों में एक है चौवारा डेरा और दूसरा है नहाल अवगाहना वाली पद्मासन प्रतिमा । वर्ण सिलहटी। इसकी प्रवार का डेरा। तीसरा मन्दिर ग्वालेश्वर मन्दिर के नाम चरण चौकी पर लेख है जो इस प्रकार पढ़ा गया है- से प्रसिद्ध है जो धर्मशाला से दो फलांग दूर पहाड़ पर ___ "प्राचार्य श्री प्रभाचद प्रणमति नित्य सं० १२५२ माघ अवस्थित है । इनका सक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैसुदी ५ खो चित्रकूटान्वये साधु वाला भार्या शाल्ह तथा चौवारा डेरा-यह मन्दिर सड़क पर दिगम्बर जैन मदोदरी सुत गोल्ह रतन भालू प्रणमति नित्यं ।" धर्मशाला के पीछे पूर्वाभिमुख अर्धभग्न दशा में विद्य इन मतियों के साथ जो चरण मिले थे, वे लगभग मान है। इस मन्दिर के मध्य में एक सभा मण्डप बना दस इञ्च लम्बे है। उन पर कोई लेख नही है। हमा है तथा पूर्व, दक्षिण और उत्तर की पोर अर्घमंडप धर्मशाला के पीछे जो मूर्ति निकली थी, वह भगवान बने हुए है । सभा मडप के चारों पाधार स्तम्भ कला के संभवनाय की है, जो प्रत्यन्त मनोज्ञ है। इसकी प्रवगाहना उत्कृष्ट नमूनो मे से है। उत्तरी दीवाल पर एक वस्तु लगभग एक गज है। तथा इसके पासन पर सं० १२१८ ऐसी बनी हुई है जिसकी मोर सहज ही ध्यान भाषित का लेख प्रकित है जो दो पंक्तियों में है। हो जाता है और इससे प्राचीन देवनागरी लिपि पर पहाड़ पर ग्वालेश्वर के मदिर मे शान्तिनाय कुन्थु- महत्वपूर्ण प्रकाश पडता है। यह है सर्पबन्ध । एक सपोनाथ भोर मरहनाथ की तीन खड्गासन मूर्तिया है कृति कुण्डलाकार बनी हुई है, जिस पर देवनागरी लिपि भगवान शान्तिनाथ की १२॥ फुट ऊंची है कुन्थुनाथ के वर्ण और घातमो के परस्मैपद और प्रात्मनेपद के की ८ फुट और अरहनाथ की भी ८ फुट उंची प्रति प्रत्यय बने हुए हैं सम्भवतः प्राचीनकाल में मन्दिर के इस माएँ हैं। भगवान कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर निम्नलिखित भागका उपयोग एक पाठशाला के रूप के किया जाता था। लेख पढ़ा जा सकता है बालकों को खेल-खिलौनों के माध्यम से उस काल में संवत् १२६३ जेष्ठ बदी १३ गुरी.........प्राचार्य शिक्षण दिया जाता था, इस प्रकार सर्प वन्ध से तत्कालीन श्री यशकीर्ति प्रणमति । शिक्षण पद्धति की ओर संकेत करता है सर्प वन्ध के इसी प्रकार प्ररहनाथ की प्रतिमा पर यह लेख प्रकित निकट ही दो छोटे लेख भी अकित हैं। जिनमे मालवा के परमारवंशी राजा उदयादित्य का उल्लेख है। इसी देवा संवत् १२६३ जेष्ठ वदी १३ गुणोसिन्धी पं. तरंग लय के द्वार पर वि० सं० १३३२ का शिलापट लगा हुमा सिंह जीत सिंह प्रणमति । था, जिसमें लेख था तथा एक धर्मचक्र बनाएमा था। इन शिलाफलकों पर इन प्रतिमानों के दोनों ओर उसके दोनों पोर सिंह और हाथी बने हुए थे। यह पाजइन्द्र यक्ष-यक्षिगी हैं । इन मूर्तियों की संरचना-शैली और कल इन्दौर संग्रहालय में सुरक्षित है। इस मन्दिर का शिल्प विधान प्रत्यन्त उत्कृष्ट कोटि का है। शिखर और उसमें की गई तक्षण कला नयनाभिराम है। क्षेत्र पर अब तक जो पुरातत्त्व सामग्री-मूर्तियां नहाल भवार का डेरा-यह मन्दिर सड़क मोर चरण, शिलालेख प्रादि उपलब्ध हुए हैं, वे प्रायः १२-१३ चौवारा डेरा के बीच मे है। इस मन्दिरके पास-पास नहाल वीं पाताब्दी के हैं। उपलब्ध सामग्री के प्रतिरिक्त भी लोगोंकी बस्ती है, इसलिए इसका नामनहालमवा का डेरा बहुत से मन्दिरों के भग्नावशेष इधर-उधर बिखरे पड़े पड़ गया है । मन्दिर के मध्य में एक मण्डप बना हुआ है, हैं । यदि खुदाई की जाय तो यहाँ प्रौर भी प्राचीन सामग्री जिसमें पाठ स्तम्भ बने हुए हैं। मण्डप में चार द्वार हैं। मिलने की सम्भावना है। पूर्व और पश्चिम के द्वारों से बाहर जाने की सीढ़ियां बनी ___ मन्दिरों का परिचय -क्षेत्र पर तीन मन्दिर प्राचीन हई। एक द्वार से गर्भ गृह में जाने का मार्ग है । इसके हैं-सड़क के पास ग्राम में दो मन्दिर हैं। इन दोनों जैन पर का शिखर सम्भवतः टूट गया है। यह मन्दिर बहुत लापक्ष अत्यन्त समृद्ध और समुन्नत है । इन विशाल और भव्य बना हमा है पौर ऊन के मन्दिरों में
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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