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कर्नाटक
म मन्दिर
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दोनों मोर दो गुफाएं हैं। अन्दर के प्रांगण के मध्य एक पट्टदलक में दस मन्दिर हैं जो ध्यान देने योग्य हैं। मण्डप है । उसमें सिंहासन पर वृषभनाथ की मूर्ति शोभित परन्तु उनमे एक ही मन्दिर जैन मन्दिर है। वल्लिगाये है। अन्दर के प्रागण के मण्डप के एक पोर पार्श्वनाथ मे भी ऐठोले, पट्टदकल के समान ही प्रमुख है। यह शिवएक खम्भा खड़ा था जो अब नीचे गिर पडा है। ऊपरी मोग्गा जिला शिकाम्पूिर तालू का एक गांव है। प्राचीन मंजिल में बाहर दो छोटी गुफाए प्रामने सामने हैं । एक काल मे यह बडा नगर था । यहाँ पर ब्रह्मा, विष्णु, शिव दालान, बड़ी ड्योढ़ी तथा गर्भगृह है। इन सभी गफामो तथा जैन एवं बौद्ध धर्मों से सम्बन्धित पांच मठ व तीन मे जैन मतिया खुदी हुई है। गर्भगृह के द्वार का प्रायुर्वेदाश्रम थे । अब यहाँ जैन मन्दिर नहीं दिखाई देते चौखटा नक्काशीदार है। उसके मागे दो छोटे खम्भे है। हैं । पर गांव के अन्दर व बाहर अनेक जैन-मूर्तियां पड़ी उन्हें बजाने पर प्रत्येक से भी अलग-अलग ध्वनियाँ निक- दिखाई देती है। यहा की इमारतें होयसल शैली की है। लती है जेसे हलेबीड़ के खम्भो के बजाने पर होता है। इस गाव को बेलगावे, बल्लिगावे, बेलिगावि, बेलिगावे, ऐसा लगता है मानो इसके प्रागे की ड्योड़ी किसी समय बल्लिग्राम, बल्लिपुर प्रादि नामों से पुकारा जाता था। वर्णचित्रो से अलंकृत थी। आज भी हम धुए से काले
पृक्कोर्ट के समीप के पाठवी शताब्दी के जैन महाबने उन चित्रों को देख सकते है ।
लयो मे हम अभी भी सुन्दर भित्तिचित्रों को देख सकते जगन्नाथ सभ दो मजिल वाला गुफा मन्दिर है। है। वहाँ पर दीवारें. खम्भे व छतों पर हर जगह चित्र नीचे तीन गुफाए है तथा ऊपर एक बड़ी व छोटी गुफा हो चित्र है। उनमे कमल सरोवर, सोत्साह नाट्य करने है। इनमें भी जैन मतियां खुदी खुदी हुई है। प्राय. छत वाली ललनाए, ऋद्ध भैसे, हसो की पक्तियाँ, राजदम्पत्ति वर्णचित्रो से प्रल कृत रही होगी। छोटा कलाम, कलाम प्रादि के सन्दर चित्र है। यहाँ पर चित्रकारों ने हरा, की नकल पर बना है। गुफा में से १३० फीट लम्बा, पीना, लाल तथा नीले रग का प्रयोग किया है। परि. ८० फोट चौड़ा क.ट कर इम मन्दिर को बनाया गया शुद्ध व सुन्दर रेखा विन्यास इन चित्रों को सुन्दरता के है। १० वर्गफुट मूवमण्डा, ३६ वर्गफीट की गोढ़ो लिए मुख्य कारण है । विभिन्न रंगों के सयोजन की परितथा १२ वगफीट गर्भगृह इसमे खुदे है। परन्तु लगता है पक्व कला को हम यहाँ पा सकेंगे। इसका पूर्ण निर्माण नही हुपा है। नरसिंह प्रथम (ई० सन् ११४२-७३) के समय में
शिल्पियो ने बेलगाव बकापुर व लवकडे के मन्दिगें (ई. सन् ११४५ मे) चोलसमुद्र की त्रिकूट वसदि
के द्वारों पर अपनी कुशलता का सुन्दर परिचय दिया (बसदि-जैन मन्दिर) निर्मित की गई। द्वितीय बल्लाल
है। कर्नाटक शैली के मन्दिर मूर्तियों के भण्डार ही हैं। के समय मे (ई. सन् १९७३-१२२०) श्रवण बेलगोल मे
स्थापत्य कला के शिक्षार्थी के लिए ये मन्दिर प्रमूल्य अक्कन बमदि (बड़ी बहन का जैन मन्दिर) शान्तिनाथ
सामग्री प्रदान करते है। इन मन्दिरों की छतें प्रेक्षकको बमदि, वदणि के स्थित शान्तिनाथ वसदि, प्रासोकरे की
चकित कर देती हैं। द्राविड शैली में ऐसा नहीं है। सरसकट बसदि प्रादि का निर्माण किया गया। माना
इनके विन्याम, प्राकार प्रादि मे बड़ी विविधता है। जा सकता है कि विजयनगर साम्राज्य के प्रारम्भ मे
शिल्पी का मामध्यं यहाँ परिलक्षित है। दीवार के बाहरी द्राविड़ शैली का होयसल शैली में मेल हुमा तथा ई० सन्
भाग मे छोटे-छोटे भागो मे भी अनेक देवी-देवतामों १३०० तक शुद्ध चालुक्य होयसल रीति समाप्त हो गई की मूर्तियां है जो वास्तुशास्त्र के बिलकुल अनुरूप हैं। थी। ई. सन् पांचवीं शताब्दी में कर्नाटक पर शासन एस रधाम
ऐसे रघ्रों में जहाँ छोटी उगली तक डालना सम्भव नहीं करने वाले कदम्ब राजामों द्वारा निर्मित तालगुन्द का
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है, सुन्दर कारीगरी को देखकर हम कल्पना तक नही प्रणवेश्वर मन्दिर, हलसी स्थित जैन बसदि प्रत्यन्त पुगने कर सकत ।
से कर सकते कि वे किन उपकरणों का प्रयोग करते थे। हैं। मूडिगर तालूके के अंगहि ग्राम की मल्लिनाथ बसदि हलेबुडी की एक बसदि तो वास्तुशिल्प की दृष्टि से विश्व बड़ी प्राचीन है।
के प्रापचयों में गिना जाने योग्य है। वहां के काले खम्भो