SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पावागिरि-ऊन श्री बलभद्र जैन · क्षेत्र की अवस्थिति-श्री पावागिरि सिद्ध क्षेत्र है। यह मध्य प्रदेश के जिला खरगोन में ऊन नामक स्थान से दो फलाँग पर स्थित है। ऊन एक छोटा सा कस्बा है जिसकी प्राबादी लगभग २००० है । यहाँ पर पोस्ट ग्राफिस पुलिस थाना, दवाखाना, माध्यमिक स्कूल धादि हैं । यहाँ माने के लिए खण्डवा १०४ कि० मी०, इन्दौर १५४ कि० मी०, सनावद ८३ कि० मी० और महू १३१ कि०मी० निकटवर्ती रेलवे स्टेशन है। खण्डवा पोर सनावद होकर पाने वाले यात्रियों को खरगोन होकर मोर इन्दौर या महू से श्राने वाले यात्रियों को जुलवान्या होकर वस द्वारा ऊन उतरना पड़ता है । खरगोन यहाँ से केवल ६८ कि० मी० है । खरगोन से जुलवान्या जाने वाली सड़क पर किनारे ही दिगम्बर जैन धर्मशालाब हुई है। धर्मशाला के पावागिरि सिद्धक्षेत्र केवल दो फर्लांग दूर है। सिद्धक्षेत्र पावागिरि के पूर्व भाग में पिकड़ नदी बहती है, पश्चिम में कमल तलाई (तालाब) है। इसमें कमल के फूल खिलते हैं। उत्तर में ऊन ग्राम है । दक्षिण दिशा में एक कुण्ड बना है, जिसे नारायण कुण्ड कहा जाता है। वैष्णव लोग इसे तीर्थं मानते हैं । इस क्षेत्र के पश्चिम में सगिरि बावनगजा जी घोर उत्तर में सिद्धवरकूट क्षेत्र है । सिद्धक्षेत्र प्राकृत निर्वाणकाण्ड में इस क्षेत्र के सम्बन्ध में इस प्रकार उल्लेख है :पावागिरिवर सिहरे भद्दा मुनिवरा पढ चलणाईतडग्गे मियाण गया णमो तेखि ||१३|| ॥१३॥ अर्थात् पावागिरि के शिखर पर चलना नदी के तट पर सुवर्णभद्र प्रावि चार मुनीश्वर निर्वाण को प्राप्त हुए । इस गाथा के अनुसार यह सिद्धक्षेत्र चलना नदी के तट पर अवस्थित था। संस्कृत निर्वाण भक्ति में नदी का - नाम न देकर केवल इतना ही उल्लेख कर दिया है'नद्यास्तटे जितरिपुश्च सुवर्णभद्रः' अर्थात् कर्म शत्रुओं को जीतने वाले सुवर्णभद्र नदी के तट पर मुक्त हुए । निर्वाण काण्ड में पावागिरि दो बताये हैं। उपर्युक्त पावागिरि के अतिरिक्त भी एक प्रौर पावागिरि है, जहां से राम के दो पुत्र भोर लाट नरेन्द्र श्रादि पाँच करोड़ मुनि मुक्त हुए। यह पागिरि बौदा ४५ कि०मी० दूर चापानेर के पास है और इसे पावागढ़ कहा जाता है। क्योंकि यहां बहुत विशाल पहाड़ी किला है । इस किले के कारण पावा को पावगढ़ कहने लगे हैं । चलना नदी कौन सी है, इस विषय में विवाद है । जिन्होंने ऊन के निकट पावागिरि की स्थिति मानी है, वे ऊन के निकट बहने वाली चिरुड़ को ही चलना नदी मानते हैं। उनके मत से खेलना का पेटक, चेटक का चिरट, चिरट का विरूढ़ हो गया। उनके निकट पायानिरि मानने का एक तर्क यह दिया जाता है : 'निर्वाण काण्ड में निमान स्थित सिद्धक्षेत्रों की वंदना का क्रम इस प्रकार है- (१) रेवा नदी के दोनों तटों के मुक्त होने वाले रावण के पुत्र घोर साढ़े पांच कोटि मुनियो की निर्वाण स्थली । (२) रेवा नदी के तट पर पश्चिम दिशा में सिद्धवरकूट क्षेत्र जहाँ से दो की दस कामकुमार और साढ़े तीन करोड़ मुनियों ने मुक्ति लाभ किया । (३) बड़वानी नगर के दक्षिण मे चूलगिरि के शिखर से इन्द्रजीत और कुम्भकर्ण मुक्त हुए। ( ४ ) चलना नदी के तट पर पावागिरि के शिखर पर सुवर्णभद्र पादि चार मुनियों को निर्वाण हुआ । उपर्युक्त क्रम में सिद्धवरकूट बड़वानी फिर पानागिरि है। इस क्रम से यह संगति बैठाई गई है कि ये दोनों तीर्थ निकटवर्ती है। इसलिए पावागिरि बढ़वानी
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy