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________________ २००, २५, कि.५ अनेकान्त नगर के निकट होना चाहिए। इस स्थान के अतिरिक्त उत्खनन में प्राप्त हुए थे। प्रतः यह निश्चय किया गया अन्य कोई स्थान नहीं है, जिसे पावागिरि क्षेत्र माना जा कि परण-चिन्ह सिद्धक्षेत्र पर विराजमान होते थे। अत: सके। ऊन के निकट प्राचीन मन्दिर और मूर्तियां मिली यह स्थान सिद्धक्षेत्र होना चाहिए । यह सिद्धक्षेत्र पावा. हैं, जिनका काल ईसवी सन् की ११-१२वीं शताब्दी तक गिरि हो सकता है, जिसका उल्लेख निर्वाण काण्ड में है। वहीं प्राचीन चरण चिन्ह भी उपलब्ध हैए हैं । सिद्ध किया गया है। क्षेत्रों पर चरण चिन्ह विराजमान करने की परम्परा रही कुछ दिनों पश्चात् अपने इस निर्णय की पुष्टि इन्दौर है। इन सब तर्कसंगत कारणों से ऊन के निकटवर्ती स्थान मादि कई स्थानों के विद्वानों को ऊन बुलाकर उनसे करा को पावागिरि सिद्धक्षेत्र मानना सुसंगत है।" ली गई और इस स्थान को पावागिरि सिद्ध क्षेत्र घोषित उत्खनन द्वारा जन मतियों की प्राप्ति-बात उन कर दिया गया। दिनों की है जब ऊन में प्राचीन जैन मन्दिर जीर्ण-शीर्ण सरकार द्वारा जैन समाज को अधिकार-ऊन में दशा में खड़े हुए थे, तब तक इसकी प्रसिद्धि तीर्थ क्षेत्र पावागिरि सिद्धक्षेत्र की स्थापना और उसका उद्घाटन के रूप में नहीं हुई थी और यहां कोई यात्री नहीं माता कर दिया गया । किन्तु मन्दिर, मूर्तियों पर सरकार का था । यहाँ के जीर्ण मंदिर और मन्दिरों के भग्नावशेष तत्का- अधिकार था। प्रतः अधिकार प्राप्ति के लिए सर सेठ लीन होल्कर रियासत के पुरातत्व विभाग के अधिकार में हुकमचन्द्र जी ने तत्कालीन होल्कर रियासत के महाथे। उन दिनों सेठ मोहीलाल जी वड़वानीऔर सेठ हरसुख राज श्री यशवन्त होल्कर की सेवा में प्रार्थना-पत्र दिया जी सुसारी ने सागर निवासी श्री चेतनलाल पुजारी को मौर यह क्षेत्र दिगम्बर जैन समाज को देने का अनुरोध ऊन के मन्दिरों के प्रक्षाल-पूजन और सफाई के लिए किया। काफी प्रयत्नो के पश्चात् हुजूर श्री शंकर के नियुक्त किया। कुछ समय के बाद प्राषाढ वदी ८ संवत् प्रादेश न० २६४ दिनांक २६८।३५ के अनुसार सर सेठ १९९१ को पुजारी को एक अद्भुत स्वप्न माया । स्वप्न साहब को अधिकार पत्र प्राप्त हुमा, जिसके अनुसार में उनसे कोई कह रहा था-'अमुक स्थान पर जिनेन्द्र दिगम्बर जैन समाज को यह अधिकार प्रदान किया गया भगवान की मूर्तियाँ हैं, तुम उनको खोदो तो दर्शन . कि उन में नई खोजी हुई मूर्तियों पर उसका प्रषिहोगा।' कार रहेगा, ऊन के ग्वालेश्वर मन्दिर में इन्हें विराजमान प्रातःकाल नियमानुसार पुजारी मन्दिर मे प्रक्षाल- किया जा सकता है और अपने व्यय से दिगम्बर जैन पूजा के लिए गया। उससे निवृत्त होने पर जब वह मन्दिर का जीर्णोद्धार करा सकती है । बशर्ते (१) जीर्णोवापिस पाने लगा, तब उसे रात्रि में देखे हुए स्वप्न का स्मरण द्वार का कार्य इन्दौर म्यूजियम के क्यूरेटर के परामर्श से हो पाया। खण्डहरों के बीच में स्वप्न में देखा हुमा स्थान से किया जाय, जिससे इस प्राचीन स्मारक का पूराता. उसे दीख पड़ा । उसने उस स्थान से कुछ मिट्टी हटाई त्विक महत्व प्रौर कलात्मक वैशिष्ट्य नष्ट न हो । (२) ही थी कि मूर्ति का सिर दिखाई पड़ा । तब उत्साहित मूर्तियां ऊन से अन्यत्र नही ले जाई जायेंगी। (३) ऊन होकर मजदूरों से उस स्थान को खुदवाया । फलतः भग- के प्राचीन स्सारकों का स्वमित्व सरकार का होगा।' वान् महावीर को एक सुन्दर प्रतिमा निकली। इसके मतिरिक्त चरण चिन्ह और चार अन्य तीर्थकरी की मूर्तियां 1. From, 1/C. Curator निकलीं। पुजारी ने ये सब मूर्तियां अपनी कुटिया में रख The Museum लीं और यह समाचार निकटवर्ती नगरों में भिजवा दिया। Indore समाचार मिलते ही सुसारी, बड़वानी, लोनारा प्रादि To, St. Seth Harsukhlalji, स्थानों अनेक प्रतिष्ठित सज्जन पधारे । उन्होंने भाकर Leader Digamber Jain Community मूतियों का प्रक्षाल मौर पूजन किया। चरण-चिन्ह भी Susari
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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