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"शिवपुरी में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा"
सन्मत कुमार जैन एम. ए. मध्य प्रदेश के ग्वालियर संभाग का एक प्रसिद्ध जिला वर्षावधि में मनाये जाने वाले 'भगवान महावीर का 'शिवपरी' प्राचीन नगर है। इसका प्राचीन नाम 'सीपरी' २५००वा निर्वाणोत्सव' के सम्दर्भ में नमी 7 m. है। स्व. माधवराज सिन्धिया ने इसे शिवपुरी का नाम तीय रूप है। जिनालय में मलनायक भगवान महावीर विद्या शिवपुरी और उसके पास-पास के कोलारस की ममोश एवं हृदयहारिणी विशाल प्रतिमा स्थापित की प्रादि स्थान जैन संस्कृति के केन्द्र रहे हैं। प्राज भी है । प्रघखुले नेत्र, नासा दृष्टि, पद्मासन प्रतिमा किस सहृदय
सामादि स्थानों में १२वी और १३वीं शताब्दी की को अपनी पोर सहज प्राकृष्ट नहीं कर लेगी ! उत्सव मे मातियो विद्यमान है। उन स्थानों में 'पाणाशाह' की इसी प्रतिबिम्ब की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हो रही है। धार्मिक वृत्ति का परिचय मिलता है। वर्तमान में यहाँ प्रकृति को सुरम्य स्थली मे स्थित विस्तृत जिनालय के जिलाधीश ने एक 'पुरातत्व सांस्कृतिक म्यूजियम' को अत्यन्त सुन्दर है । उस जिनालय के सामने मनुष्यों के मान माना की जिसमे जन मौर जनेतर प्राचीन कला- रोग को हरण करने वाला मानस्तम्भ बनाया गया है। हतियों को स्थापित किया गया है, जो दर्शनीय है । इस वस्तुतः जिनेन्द्र भगवान का सान्निध्य ही उस स्तम्भ में प्रकार वैदिक मोर जैन संस्कृति के यहां विपुल स्थल मान रोग को art
मान रोग को हरण करने की शक्ति प्रदान करता है। विमान । शिवपूरी प्रतीत की गौरवमयी गाथाओं को सजीव प्रतिमा की शक्ति ही मानियों के दम्भ को मोम अपने हृदय में संजोये हुए बैठी है। पर्यटकों का मन की तरह पिघला देती है। मन्दिर में मानस्तम्भ बनाने मानस इसके प्राचीन पोर कलात्मक दृश्यों का अवलोकन की परम्परा दक्षिण भारत की है अब उत्तर भारत में भी कर झम उठता है और तीर्थयात्रियों का मस्तक श्रद्धा से उसी परम्परा का अनुसरण होने लगा है। इसके पतिविनत हो जाता है।
रिक्त प्रवचन मण्डप, स्वाध्याय कक्ष, छात्रावास, बाल इसी शिवपुरी के इतिहास में कई सौ वर्ष बाद एक पाठशाला और एक विश्रान्ति गृह इस बात का प्रतीक है सांस्कृतिक महोत्सव होने जा रहा है । कब ? माघ शुक्ला कि निर्माणकर्ता की दृष्टि प्रत्यन्त उदार और विवेक पूर्ण १ से १३, विक्रम सं० २०२६, वीर निर्वाण सं० २४६६, है, साथ ही साथ यदि एक नि:शुल्क पोषधालय का भी दिनांक ११ से १५ फरवरी १९७३ को। जिस उत्सव कक्ष बन जाता तो कहना ही क्या था। का नाम संस्कार 'श्रीजिनेन्द्र पञ्चकल्याणक बिम्ब प्रतिष्ठा
माज के इस भौतिक युग में अपना नाम और यश महोत्सव' किया गया है।
कौन नहीं चाहता। परन्तु अपने को मनाम मोर प्रज्ञात १८वीं शताब्दी के प्रारम्भ में शिवपुरी वाणगंगा के रखने की इच्छा वाले, शिवपुरी के जाने-माने सम्पन्न निकट मोहनदास खण्डेलवाल ने श्री पार्श्वनाथ प्रादि २४ विचारक श्री नेमीचन्द्र जी गोंद वाले तथा उनके परिवार तीर्थकरों तथा महादेव विश्वनाथ की मूर्तियों को स्थापित वालों ने उक्त जिनालय आदि का निर्माण कराया है जो कर प्रतिष्ठा करवायी थी, यह भी एक महान कार्य है उनकी माथिक उदारता का परिचायक है । अब उन्ही के जिसमें जैन तथा जनेतरों दोनों को समान दृष्टि से देखा द्वारा प्रतिष्ठा कार्य होने जा रहा है, इसके साथ ही साथ गया है जिसके कारण उसे सिंघई पदवी से उल्लिखित विद्वत्परिषद् मादि सस्थानों के अधिवेशन भी सम्पन्न होगे। किया गया है।
१८वीं शताब्दीके सिंघई मोहनदास खण्डेलवालके बाद पंचकल्याणक महोत्सव तो समय-समय पर होते ही २०वीं शताब्दी के नेमीचन्द्र गोंद वालों ने जो कार्य किया रहते हैं परन्तु अन्य पंचकल्याणक महोत्सवों से इसकी कुछ है वह शिवपुरी के इतिहास में पुनर्जागृति का प्रतीक है। भिन्नता तथा विशेषता है। बनने वाला नव्य-भव्य जिना
पाठकों के लिये शिवपुरी और उसके मास-पास के लय 'श्री महावीर-जिनालय' के नाम से बना है मोर जो प्रदेशों में विखरी हई जैन संस्कृति के अवशेषों को भी मागामी १३ नवम्बर १९७४ से १५ नवम्बर १९७५ की देखने का सुमवर मिलेगा।