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________________ तत्त्वार्थाधिगमभाष्यकार द्वारा स्वीकृत परमाणु का स्वरूप : एक अध्ययन सनमत कुमार जैन, एम. ए. तत्त्वार्थाषिगम भाष्यकार द्वारा स्वीकृत परमाणु के परन्तु परमाणु में शब्द धादि नहीं होते प्रतएव तत्त्वार्थस्वरूप का अध्ययन करने से पूर्व जैन दर्शन माम्य पर- सूत्रकार को पुद्गल का स्वरूप दो सूत्रो में सूत्रित करना माणु का सैद्धान्तिक स्वरूप सार रूप में समझ लेना पड़ा। चाहिए। प्रब तत्त्वार्थ-भाष्यकार द्वारा परमाणु विवेचना पर (१) परमाणु पुद्गल का शुद्ध द्रव्य है। यह एक दृष्टिपात किया जावे-इन्होने परमाणु को बन्धन रहित प्रदेशी है। यदि परमाणु को कम से कम एक प्रदेश वाला बतलाया है जो उचित ही है। क्योंकि यदि परमाणु को नहीं माना जाता तो इसका प्रभाव हो जाता फलतः बन्धन सहित माना जावे तो वह परमाणु नही हो सकता, संसार की सारी प्रक्रिया ही समाप्त हो जाती। वह स्कन्ध कहलाने लगेगा। (२) परमाणु प्रत्यन्त सूक्ष्म है । सर्वार्थसिद्धिकार ने इसके साथ ही माथ माष्य में इन्होने एक कारिका मस्ख को दो रूपों में विभाजित किया है-एक प्रापे- 'उक्तञ्च" करके उद्धृत की है जो कि हरिभद्र सूरि के क्षिक सूक्ष्मत्व प्रौर दूसरा अन्त्य सूक्ष्मत्व, प्रापेक्षिक सूक्मत्व प्रसार किसी धाय को कमतर्गत बेल, पावला पोर बेर को उदाहरण बनाया है विवाद तथा उलझने मस्तिष्क में बहुत समय से उलझ क्योंकि बाद वाला पूर्व वाले से सूक्ष्म है तथा प्रात्य सूक्ष्मत्व रही हैं। भागे की विवेचना करने से पूर्व ही बता देना के अन्तगत परमाणु का लिया ह' क्याकि परमाणु पुषमता चाहता है कि श्वेताम्बर परम्परा में तत्त्वार्थाधिगम मूत्रकी वह स्थिति है, जिससे अन्य कोई सूक्ष्म नही। इस कार तथा भाष्यकार एक ही व्यक्ति माने गये है जबकि प्रकार परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म होने से स्वय मादि है, स्वयं दिगम्बर परम्परा यह मानने को तैयार नहीं है। कारिका मध्य है और स्वय अम्त है। प्रादि, मध्य प्रौर पन्त को पर गहन दृष्टि डालने के उपरान्त निष्कर्ष यही निकलता स्थिति उसके एक प्रदेश में ही विलय हो गई है। कि सत्रकार और भाष्यकार नटी (३) परमाणु में स्पर्श, रस, गन्ध पौर वर्ण होते हैं, कारिका के अनुसार परमाणु का स्वरूप इस प्रकार शब्द बन्धादि नहीं । शब्द बन्धादि वाला तो स्कन्ध होता बनता है-(१) परमाणु कारण ही होता है, (२) वह है। तो क्या स्कन्ध में स्पर्शादि नहीं होते ? होते हैं। मन्तिम होता है, (३) वह सूक्ष्म होता है, (४) वह नित्य १. प्रदेशमात्रमा विस्पर्शादिपर्यायप्रसवसामयेंनाण्यन्ते होता है, (५) वह एक गन्ध, एक रस, एक वर्ण और दो स्पर्श वाला होता है, (६) वह कार्य लिंग होता है मर्थात् शब्द्यन्त इत्यणव: स. सि. ५२२५ कार्य के द्वारा अनुमित होता है। २. सौषम्यं द्विविधं, अन्त्यमापेक्षिक च। तत्रात्यं पर. . माणुनाम् । प्रापेक्षिक विल्वामलकवदरादीनाम् ।" ५. स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः ५॥२३, स. सि. १२४ शब्दबन्ध...५२४ ३. न ह्मणोरल्पीयानन्योऽस्ति" वही श२५ ६. कारणमेव तदन्त्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । ४. अत्तादि अत्तमझ प्रत्तंत व इंदिये गेज्झ । एकरसगन्धवर्णो द्विस्पर्शः कार्य लिङ्गश्च ॥ जं दब अविभागी तं परमाणु विप्राणाहि ।। त. भा.५२२५ उद्धत स. सि. ५२२५, नियम सा. गा. २६ ७.त. भा. की हरिभद्रमूरि रचित टीका ५।२५
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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