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________________ १९४२१ कि.. पनेकान चक्र कथा) है। यह रचना संस्कृत का पचानुवाद मात्र ता पर वरष षिक रश गए, हम सत्तरा बहत्तर भए। है । शिर भी सरस है। पौर दोहा, चोपाई सोरठा, बुद्धि बुद्धि बालक सम माहि, बूढो बारे सब कहि ताहि । अदिल्ल मादि छन्दों के १३५४ पचों में रखा गया है। ता पर लाल विनोदी बाऊ, भोग बेत में बहुत लगाउं । उसको प्रशस्ति में कवि ने अपना परिचय अंकित करते . कोविद लोग हंसंगे मोहि, तातै कविजन विनउं तोहि ।३४ हुए लिखा है कि अब मेरा तीसरापन मा गया है उसमें जाति वानिये मगरवार, गोत पठारह में सरवार । बुद्धि कहां तक स्थिर रह सकती है ? 'साठे को नाठा' गर्ग गोत अदुवंश प्रधान, मनरव चुल मुझ मल्लि महान । सभी कहते हैं। इस तरह . पेरी उम्र सत्तर वर्ष की हो परदादे को मउन नाम, कुल मंडन हमो सो धाम । गई है। प्रशस्ति में अपना परिचर अंकित किया है। दादो पारस तासु समान, यथा नाम वैसो गुण जान ॥३६ उसमें प्रथ के रचना काल प्रादि पर प्रकाश पड़ता है। बरगहमल्ल तात मुझ तनों, शील शिरोमनि सुदर्शन मनो। जिसे कवि ने सं० १७५० मे पोरगजेब के राज्य काल में ताको अनुज विनोदीलाल, में यह रचना रचो विशाल ।३७ बना कर समाप्त किया है। वह प्रथस्ति इस प्रकार है :संवत सत्रह से पंचास, रोज उवारी पाहण मास । संवत सत्रह से पंचास, वेज उजारी अंगहन मास । रविवासर पाई शुभधरी, ता बिमा सम्परमहरी।२० रवि वासर पाई शुभधरी, ता दिन कया संपूरन भई॥ करी चोपाई बनाय, विपिडा मिलाय। चौथी रचना राजुलपच्चीसी है, जिसमें नेमिनाथ कहूं पडिल्ल सोरठा परेपभिशय बोट बिस्तरे ॥२१ पौर राजमति का वर्णन है। पांचवीं रचना 'नेमिनाथ या विषिसों रचना विस्तरी, संस्काकी मैं भाषा करो। व्याहला' है, जो कवि की छोटी-सी सरस कृति है। इसमें मैं अपनी मति कीनी नाहि,पंप पुरातन भाषी छांह ॥२२ नेमिनाय की बरात का चित्रण किया गया है। पशुनवरंग शाह वली राज, पालमगीर साहि शिरतान। पक्षियों को बाड़े में बन्द देखकर और उनकी करुण पुकार पालमगीर कहावे सोह, बाहि लाब पालम की होह।२३ सुनकर हिंसा से भयभीत हो वैराग्य ग्रहण किया। और बीन वार बिल्मीपति साहि, ताकी उपमा बाहि। भौतिक सुखों का परित्याग कर मानव कल्याण के लिए पैगम्बर सम जग में भयो, केरसमामि उपाधियों गयो।२४ उनका तपस्या के लिए चला जाना सच्चा पुरुषार्थ है । कवि राजनीति जा के सब होप, माफिक सेर कही है सोह। ने वर की वेष-भूषा का वर्णन निम्न पद्य में किया है :ऐसो भयो म हो है और, पाति साहि सहित सिरमोर।२५ मौर परो सिर दुलह के कर कंकण बंध वई कस डोरी। भयो चकत्ता वंश उद्योत, साह प्रकम्बर को पर पोत। कंडल कानन में झलके प्रतिभाल में लाल विराजति रोरी जहांगीर को पोतावली, साहिजहां सुत प्रगट्यो बली।२६ मोतिन की लड़ शोभित है छवि देखि लज वनिता सब गोरी नाम-जास को नौरंग साहि, मोर साहि सब जाहि। 'लालविनोदी' के साहिब के मुख देखनको दुनिया उठ बोरी ताको कविजन देह प्रसीस, दिन-दिन तेज बजगदीशा२७ नेमिनाथ की विरक्तिका चित्रण निम्न पदो में क्रिया हैजाके राम महा सुख पाय, कीनी कथा विचित्र बनाय। नेमि उदास भये जब से कर जोड़ के सिद्ध का नाम लियो है नाम कथा सिरिपाल विनोद, पढ़त सुनत सब होय प्रमोद। अम्बर भूषण शर दिये शिर मोर उतारि के डार वियो है . सिलवक व्रत की यह कपा, कोनी मैं मतिसाया । प धरो मुनि का जबही तवही चदिके गिरिनारि गयो है जो सुबुद्धि उपजी कुछ मोह, तंसी वरन सुमाई तोह ॥२६ 'लाल विनोदो' के साहिब ने तहां पंच महावत योग लयो है छंद भंग प्रक्षर होय, ताहि सम्मारि सुकवि जन लोय। छठी रचना फूलमाल पच्चीसी है, जिसमें २६ पद्य है। तुमको हो है पुण्य पार, शुद्ध प्रगट संसार ३० सातवीं रचना नेमिनाथ बारहमासा है, सूचियों में तातै तुमसौं विनती करों, बार-बार तुम पाान परी। अनेक पंद भी मापके बताये हुए हैं, मिलते हैं, पर वे मेरे जो नहि चूक सम्वार जानि, ताको भी बिनवर को मानि देखने में नहीं माये । मापकी सभी रचनाएं सम्बोधक पौर तीसरो पन मेरो भयो माय, तातेंवृद्धिकहां ठहराय। सुरुचिपूर्ण हैं । कवि की अन्य रचनाए मम्वेषणीय है। साठो बुद्धि नाठो सब कहे, वाकवत सबबग में पह।३२
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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