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काष्ठासंघ-एक पुनरीक्षण
ग० विद्याधर जोहरापुरकर
सन् १९५८ में हमने काष्ठासंध के चार गच्छों सेन (सं० १०५५) महासेन तथा विजयकीति (सं० ११. के प्राचार्यों का इतिहास संकलित करते समय यह ४५) । इस प्रकार का जो नया उल्लेख प्राप्त हुपा है सध्य स्पष्ट किया था कि इन चार गच्छों के पहले स्व. वह महाराष्ट्र के पश्चिम खान देश जिले के सुलतानपुर तन्त्र संघों के रूप में अस्तित्व रहा था तथा इसके ग्राम से मिला है । स. १२६ (? यह प्रक अस्पष्ट है) बाद में वे काष्ठासंघ के अन्तर्गत गच्छों के रूप में सम्मि- (सन् ११५४ के पास-पास)के इस मूर्ति लेख में पुन्नाट गुरुलित हए। तत्पश्चात् इसी तथ्य को स्पष्ट करने वाले कुल के प्राचार्य अमृतचन्द्र के शिष्य विजयकीर्ति का नाम कुछ और शिलालेख हमारे प्रवलोकन में पाये जिनका विव. मिलता है, इसमें भी काष्ठासघ का नामोल्लेख नही है।' रण यहाँ दिया जा रहा है।
तीसरा गच्छ वागट (या वागड) पहले दो स्थानों काष्ठासंघ के अन्तर्गत सम्मिलित होने के पहले माथुर पर उल्लिखित मिला था जिनमें सुरसेन (स० १०५१) गच्छ माथुर संघके रूप में उल्लिखित हुमा हैं । इसका प्रमाण तथा यश: कीति इन प्राचार्यों के नाम प्राप्त हुए थे। इस हमारे पहले प्रध्ययन में संकलित हैं। जिनमें प्राचार्य प्रमित प्रकार एक अन्य लेख मजमेर संग्रहालय से प्राप्त हुमा गति (सं० १०५०-७३), छत्रसेन (११६६), गुणभद्र है। स. १०६१ के इस मूर्ति लेख में वागट संघ के धर्म(सं०१२२६), ललितकीर्ति (स० १२३४) तथा अमर. सेन प्राचार्य का नाम मिलता है । इसमें भी काष्ठासंघ कीति (सं०१२४४-४७) के उल्लेख है। अब जो नये का नामोल्लेख नही है।' काष्ठासघ के गच्छ के रूप में शिलालेख इसी प्रकार के प्राप्त हुए हैं उनका विवरण इस
बागडगच्छ का कोई उल्लेख हमारे अवलोकन मे नही प्रकार है। नाखून ग्राम से प्राप्त लेख जो स० १२१६ का
मा पाया है। है तथा अजमेर के संग्रहालय में है प्राचार्य चारूकीति
चौथा गच्छ नन्दी तट पहले स्वतन्त्र रहा। इसके कोई द्वारा स्थापित सरस्वती मूर्ति के पाद पीठ पर है। इनकी
प्रमाण पहले अध्ययन के समय हमें नहीं मिले थे । अब परम्परा को माथुर संघ कहा गया है-काष्ठासंघका
एक ऐसा प्रमाण मिला है। मध्य प्रदेश के मन्दसौर जिले नामोल्लेख नहीं है। इसी संग्रहालय का एक अन्य लेख
के वैखर ग्राम से प्राप्त इस मूर्ति लेख में नदियड सप के सं० १२३१ का है जो बघेरा ग्राम से प्राप्त हुमा है।
प्राचार्य शुभकीति और विमलकीर्ति के नाम हैं । लेख में इसमें माथुर संघ के धावक दूलाक का नाम है पार्श्वनाथ
समय निर्देश नहीं है, लिपि के आधार पर यह दसवीं मूति के पाद पीठ के इस लेख में भी काष्ठासंघ का नामो
शताब्दी का माना गया है । इसमें भी काष्ठासंघ का नामोस्लेख नहीं है।
ल्लेख नहीं है। दूसरा पच्छ पुन्नाट या लाडवागड काष्ठासंघ में माने के
उपयुक्त विवरण से काष्ठासंघ के चारों गच्छ पहले
स्वतन्त्र संघों के रूप में थे यह निष्कर्ष और स्पष्ट हो पहले स्वतन्त्र संघ के रूप में था। इसके प्रमाण हमारे पहले अध्ययन में इन प्राचार्यों के उस्लेखों द्वारा संकलित
हो जाता है । काष्ठासघ का पहला शिलालेखीय उल्लेख है-जिनसेन (शक ७०५), हरिषेण (शक ८५३), जय
पाचार्य देवसेन का है जो दूबकुण्ड के संवत् ११५२ के
लेख में है। १. भट्टारक सम्प्रदाय (जीवराज ग्रंथमाला, शोलापुर) पृ. २१०।
३.४.जैन शिलालेख संग्रह भा.५ पृष्ठ ४६ तथा २५ । २.जन शिलालेख संग्रह भा०५ (भारतीय ज्ञानपीठ. .जैन शिलालेख संग्रह भा०४०७२। दिल्ली) पृ०४७ तथा ४६।
६.जन शिलालेख संग्रह भा०२ पृष्ठ ३५२ ।