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________________ बम धर्म एवं यज्ञोपवीत प्रकार का माभूषण है जिसमें एक से लेकर ग्यारह सूत्र हैं क्या वे व्रती हो ही नहीं सकती? वे व्रती हो हो सकते है। प्रतः उन्होने बतियों को उनकी प्रतिमानों सकती है किन्तु पहनती नहीं हैं। इसलिए उक्त मान्यता की संख्या के अनुसार उतनी ही सूत्र-सख्या का व्रत सूत्र का समर्थन होता है कि व्रत सूत्र या यज्ञोपवीत वतीने दिया। लिए अनिवार्य नही है। भरत द्वारा प्रदत्त यह 'व्रत सूत्र' प्राजकल खाली (ख) मादि पुराण के ३वें पर्व मे भरत चक्रवतीने धागे का यज्ञोपवीत नही हो सकता। भरत ने अपने पास व्रतियों का सम्मान कर उन्हे पूजाविधि का उपदेश दिया। पागत व्रतियों का सम्मान किया, इसका मतलब यह नहीं उन्होंने इन क्रियानों का माघार 'श्रावकाध्याय सबसे है कि सभी उत्तरवर्ती व्रतधारी स्वतः इस मामूषण व्रत- उल्लिखित कथन बताया है। सत्र को धारण करे। जो स्वयं अपना सम्मान दूसरों इन कियात्रों को तीन मुख्य भागों में विभक्त किया द्वारा दिया जाता है वही मूल्यवान है, जो स्वयं अपना गया है-५३ गर्भावय क्रियाएं, ४५ दीक्षान्वय क्रियाए सम्मान करता है वह अपना प्रदर्शन करता है एवं उप- एवं ७ कीविय क्रियाए है। हास का पात्र बनता है। भारतीय जनता ने तिलक को गभन्विय क्रियानों में गर्भ से लेकर समाधिमरण, तद्'लोकमान्य' एवं गांधी जी को महात्मा की उपाधि दी परान्त इन्द्र पदवी एवं स्वर्ग निवास, फिर पुनः मनुष्य भव इसका मतलब यह नहीं कि उनके लड़के या अनुयायो प्राप्त कर चक्रवर्ती पद की प्राप्ति एवं राज्य लाभ तथा भी स्वयं इस उणधि को लगाने लगें। सेना में अनेक वीर अंत में मात्र तमगे प्रादि से सम्मानित किए जाते हैं, उनकी संतान क्रियायों का वर्णन है। इनमे नामों में टी एन अगर उन तमगों का उपभोग करने लगे, तो हंसोही का भली प्रकार बोध हो जाता हैहोगी। कोई कहे कि भरत द्वारा सम्मान वशानुगतिक १.माधान, २. प्रीति, ३. सुप्रीति, ४.ति, ५. मोद, था इसलिए अब भी धारण किया जा सकता है उन्होंने ६.प्रियोद्भव,७. नामकर्म, ८. बहिर्यान, ६.निषद्या १०.प्राऐसा कोई उल्लेख नहीं किया कि प्रत्येक व्रती इसे धारण सन, ११. व्युष्टि, १२. केशवाय, १३. लिपि सख्यान संग्रह, करे । यदि वे उल्लेख कर देते तो वह श्रावक के लिए १४. उपनीति, १५. प्रतचर्या, १६. व्रतावतरण, १७. विवाह विधेय नहीं हो जाता, क्योकि उस समय वे स्वयं छद्मस्थ १८. वर्णलाभ, १६. कुलचर्या, २०, गृहीशिता, २१.प्र. थे । यदि व्रतधारी गृहस्थ इसे 'व्रत-सूत्र' को अनिवार्य शान्ति, २२. गृहत्याग, दीक्षाद्य, २३: जिन रूपता, रूप से धारण करें तो क्या महाव्रती मा किसा 'महाव्रत- २५. मौनाध्ययन वृत्तत्व २६. तीथंकृत भावना, २७. गुरुसूत्र' को धारण करें ? स्थानाभ्युपगम, गणोपग्रहण, २६. स्वगुरुसंस्थान सक्रांति, वस्तुतः भरत अपने धन का दानादिक में सदुपयोग ३०. निसंगत्वात्मभावना, ३१. योग निर्वाण संप्राति, ३२. करना चाहते थे और उन्होंने व्रतियों (श्रावकों) को इस योग निर्वाण साधन, इंद्रोपपाद, ३४. अभिषेक, ३५. विधि प्रकार धनादि से सम्मानित किया था। उन्होंने यह व्रत दान, ३६. सुखोदय, ३७. इन्द्रत्याग, ३८. अवतार, सूत्र श्रावक के लिए अनिवार्य कही नहीं बताया। मतः ३६. हिरण्योत्कृष्ट जन्मता, ४०. मन्दरेन्द्राभिषेक, ४१. इस प्रसंग के माधार पर प्रती श्रावक या मुनियों के लिए गुरुपूजोयलम्यन, ४२. यौवराज्य, ४३. स्वराज्य, ४४.चक्र यसोपवीत पहनना अनिवार्य सिद्ध नहीं होता। व्रती लाभ, ४५. दिग्विजय, ४६. चक्राभिषेक, ४७. साम्राज्य, स्त्रियां भी होती हैं, महाव्रती पुरुष भी होते हैं, किन्तु ४८. निष्क्रान्ति, ४६. योग सन्मह, ५०. माहिन्त्य, ५१. उनके लिए तो इसके समर्थक भी विधेय रूप में नहीं तद्विहार, ५२. योग त्याग और ५३. प्रन निवृत्ति । (५५ बताते । इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह व्रत सूत्र से ६३ श्लोक सर्ग ३८)। (या खींच-तान कर यज्ञोपवीत भी) व्रती का चिन्ह नहीं दीक्षान्वय क्रिया-व्रत ग्रहण करने के लिए उन्मुख है क्योंकि प्रती स्त्रियां कभी यज्ञोपवीत पहनती ही नहीं हुए पुरुष की प्रवृत्ति दीक्षा कही जाती है और उस दीक्षा
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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