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जन संस्कृति के प्रतीक मौर्यकालीम अभिलेख
स्वभाविक हो इसके विपरीत बौदाधर्माभुयनायी लेख अशोक के पूर्वजो से ही सम्बन्धित प्रतीत होता है। अशोक द्वारा मांस भक्षणका निषेध भस्वाभाविक सा प्रतीत पचम अभिलेख में वमं वृद्धि हेतु भाई-बहिनों तथा होता है क्योंकि बौद्धधर्म मे मांस भक्षण का निषध नहीं, सम्बन्धियों के अन्तःपुर, राज्य कर्मचारियों के बीच पोर है। प्रत: यह अभिलेख प्रशोक की अपेक्षा उसके पूर्वजों से प्रजाजनों में धर्म महामात्र नियुक्त करने का उल्लेख है... कहीं अधिक सम्बन्धित प्रतीत होता है।
बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार अशोक ने राज्याभिषेक से पूर्व ही चतर्थ अभिलेख का प्रमुख विषय "हस्ति दर्शन, अपने समस्त भाई बहिनों का वध कर डाला था। प्रतः विमान दर्शन. अग्नि स्कन्ध दर्शन तथा अन्य दिव्य प्रद- भाई-बहिनों में यहाँ धर्म महामात्र नियक्त करनेवाला शंनों द्वारा जनता में धर्म की रुचि उत्पन्न करना है।" अभिलेख अशोक का नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त परन्तु इनका भी प्रशोक तथा बौद्ध धर्म के साथ सम्बन्ध यह भी विचारणीय है कि प्रशोक ने धर्म प्रचाराला प्रतीत नहीं होता । क्योंकि भगवान बौद्ध का प्रतीक होने में अपने पुत्र भोर पुत्री को बौद्ध भिक्षक और भिक्षणी से हस्तिदर्शन के अतिरिक्त अन्य प्रदर्शनों की बौद्धधर्म से बना कर भेजा। तिब्बत मादि देशों में भी इसके निमित कोई संगति नही बंटती। इसके विपरीत इन समस्त प्रद- भिक्षक भेजे गये । फिर यह बात समझ मे नही पाती र्शनों का जैनधर्म के साथ सीधा सम्बन्ध है । तीर्थकर जब भारत में ही यह कार्य धर्म महामात्रो से क्यो कराया गर्भ में पाते हैं, तो उनकी माता १६ स्वप्न देखती है गया, जबकि यह सर्वविदित है कि ग्रह-त्यागीपोरन जिनमें हस्ति, विमान तथा मग्नि स्कंध भी है। श्वेतांबर प्त भिक्षुओं का जनता पर धर्म के सम्मान मन्दिरो में धातु के बने हए इन स्वप्नों की पयूषण पर्व मधिक प्रभाव पड़ता है उसका शतांश भी जाना तथा अन्य धार्मिक उत्सवो में प्रदर्शन की भी परम्परा है। महामात्रों का नही पड़ सकता है। वास्तविक इस प्रकार इन दिव्य प्रदर्शनों का बौद्धधर्म की अपेक्षा जैन- ये धर्म महामात्र और कोई नहीं वरन र धर्म से कहीं अधिक सम्बन्ध है।
चाणक्य के परामर्श से नियुक्त किया गया था। कोटिल्य
अर्थशास्त्र में इस प्रकार की चर व्यवस्था का स्पष्ट ____ इस अभिलेख में इस बात का भी उल्लेख है "सैकड़ों
उल्लेख है।' वर्षों से कही अधिक समय से श्रमणों मोर ब्राह्मणों के
द्वितीय, तृतीय तथा छठवें से बारहवें अभिलेखों का प्रति अनुचित व्यवहार हो रहा था। देवाना प्रियदर्शी के
विषय लोकोपकारी कार्य प्रतिवेदन दान तथा महिमा आदि धर्मानुशासनमें उनके प्रति उचित व्यवहारमे वृद्धि हुई है।"
से संबधित है। इनकी संगति किसी के साथ भी बैठाई इसका भी अशोक के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। क्योंकि
आ सकती है। परन्तु त्रयोदश अभिलेख अशोक का है अशोक के पूर्वज चन्द्रगुप्त और बिन्दुसार जैनधर्मानुयायी
पौर वह उसका प्रथम अभिलेख ही हो सकता है। प्रतः थे । चाणक्य ब्राह्मण चन्द्रगुप्त का गुरु तथा राज्य का
निष्कर्ष निकलता है कि इससे पहले के बारह अभिलेख महामन्त्री था । अतः इनके राज्य में श्रमणों और ब्राह्मणों
प्रशोक के पूर्वजों के ही हैं। के प्रति अनुचित व्यवहार का प्रश्न ही नहीं उठता। इसके
प्रियदर्शी-शका-रूपनाय प्रादि ग्यारह भभिलेखों के विपरीत चन्द्रगुप्त से पूर्व मगध मे नन्दों का राज्य था।
आधार पर प्रियदर्शी अशोक का उपनाम है। उपयुक्त उन्होने १६० वर्ष तक राज्य किया । नन्द राजा शुद्ध और अत्याचारी थे। प्रतः इनके राज्य में श्रमणों और ब्राह्मणों वाणत बारह मभिलेखों में भी प्रियदर्शी का जलेला
प्रतः ये सभी चतुर्दश अभिलेख अशोक के ही होने चाहिए। के प्रति अनुचित व्यवहार होना कोई असाधारण बात
समाधान-प्रियदर्शी प्रशोक का उपनाम नहीं है। नहीं थी । चाणक्य का तो महापदमनन्द ने अपमान भी किया था चन्द्रगुप्त के सम्राट होते ही स्थिति में परि- याद एसा हाता ता गुजरा और मास्की अभिलेखों में वर्तन हुमा और परिणाम स्वरूप श्रमणों और ब्राह्मणों के
शेष पृ० १७६] प्रति उचित व्यवहार में वृद्धि हुई । इस प्रकार यह ममि. १. कोटिल्य अर्थशास्त्र पु० ३६, ४.।