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________________ मालव भूमि के प्राचीन स्थलबती घरों और मकानकी दिवालों तक में उपयोग कर डाला है। सकता है। मैं तो इतिहास का विद्वान भी नहीं हूँ। याज भी जैन समाजकी स्थिति पर वे प्रासू बहा रही हैं। समाज के विद्वानों को इस तरफ ध्यान देना चाहिए इन्ही सब स्थितियों को देख कर मालवा प्रांतीय दिग. हमारी हार्दिक इच्छा है कि "मालव देश मे जैनधर्म पर जैन सभाने एक पुरातत्व संग्रहालय को जन्म दिया। लेकिन कोई विधान् शोध ग्रन्थ लिखें। हम हर तरह से सहयोग उसके वरिष्ठ अधिकारियों की दृष्टि में इसका कोई महत्व देने के लिए तैयार हैं।" नहीं मांका गया-प्रौर उमने प्र.नी सहायता बन्द कर बदनावर से प्राप्त मति शिलालेखों की नकल दी। तब उज्जैन के सुप्रसिद्ध धनी सेट लालचन्द जी (१) सं० १२१६ जेष्ठ सुदी ५ वुधे भाचार्य कुमारसेन साहब सेठी और उज्जैन के सामाजिक कार्यकर्तामों का चंद्रकीति वर्धमान पुरान्वये साधु वाहिव्यः सुत माल्हा इघर ध्यान गया । और जे. एल. जनी ट्रष्ट फण्ड इन्दौर • भार्या पाणु सुत पील्हा भार्या पाहुणी प्रणति नित्यं ने पूर्ण सहायता दी जिससे यह संग्रहालय मागे बढ़ा मौर (२) सं० १२२८ वर्षे फाल्गुन शुक्ल ५ श्री माथुग्मघे उसने थोड़े से समय में अपूर्व मामप्री इसमें एकत्रित कर पडिताचार्य श्रीधर्म तस्य शिष्य पाचार्य ललितकीति डाली। भाज इस संग्रहालय में करीब ३००-४०० के (३) ६०॥ सं० १२१० वर्ष वैशाख शुक्ला १ शुक्र श्री प्राचीन विम्बों और अवशेषो का संग्रह है। जो जैन समाज माथुरसघे ल्वायवासे(?)कुमारसेन ? शिष्यः वधू भरी की ही नहीं लेकिन मालव प्रदेश की एक स्वणिम निधि जस हसता जयकर कारितं । मानी जाती है। बाज इस संग्रहालय से सैकड़ों शोष (४) सं० १२२२ जेष्ठ शुक्ला ७ वुधे श्री खडे रक गच्छे छात्र प्रेरणा पा रहे है। और देश के बड़े बड़े विद्वानों ने साः गोसल भार्या प्रासा गुण श्री मदन श्री तग..." निरीक्षण करके बहुमूल्य सम्मतियां प्रदान की हैं। ...श्री........"प्रतिष्ठिताः यह भी उल्लेखनीय है कि इसी संग्रहालय में वद- (५) संवत् १२३० माघ शुक्ला १३ श्री मूलसघे प्राचार्य नावर से बहुत सी प्राचीन मूर्तियां लाई गई हैं। और भद्राराम-नागयाने भार्या जमनी सुत साधु सवहा तस्य इन मूर्तियों के लेखो से इन स्थानों से संबंधित इतिहास भार्या रतना प्रणमति नित्यं घांघा वीलू वाल्ही साधू । पर काफी प्रभाव पड़ता है। वदनावर एक ऐतिहासिक (६) १०॥ संवत् १२२६ वैशाख कृष्ण ७ शुक्र ग्रहदास स्थल है । प्राप्त सामग्री से पता चलता है कि किसी समय बद्धनापुरे धीशांतिनाथ चैत्ये सा: भवन सा-गोसल ठः में इस स्थान का नाम वर्द्धमानपुर था। इस वर्द्धमानपुर कड़देवादि कुटंब सहितेन निज गोत्र देत्या श्रीप्रक्लुमके संबंध में श्रद्धेय प्रेमी जी ने जैन इतिहास नामक पुस्तक नायाः प्रतिकृतिः कारिता: श्रीकूलचंद्रोपाध्याय प्रति. में बर्द्धमानपुर यही है होने में शका प्रकट की है। और ष्ठितः गुजरात के वड्ढमान स्थान को वर्धमान माना है। लेकिन (७) स. १२३४ वर्षे माघ सुदी ५ बुधे श्रीमन् माथुर सधे वहां उन्होंने लिखा है कि हरिवंशपुराण मे जिनसेन स्वामी पंडिताचार्य धर्मकीतिः शिष्यः ललितकीतिः बर्द्धमान ने एक दोस्तटिका वस्ती का उल्लेख किया है वह नहीं पुरान्वये सी-प्रामदेव भार्या प्राहिणीः सुत राणसाः मिलती। मैंने इसके सबंध मे खोज की। इसी बदनावर दिगम सा: याका सा: जादह साः राण भार्या माणिकके पास एक दोत्रिया नाम का स्थान है। जहाँ दो नदियों सुत महण किज कुले बालू सा. महण भार्या रोहिणीके तट मिलते हैं। प्राचीन दोस्तटिका का अपभ्रंश ही प्रणमति नित्यं । माज का दोत्रिया है। फिर जिस शातिनाथ चैत्यालय में संवत् ११२२ माघ शुक्ला हरा दिनैश्च प्रोह वर्द्धन बैठकर जिनसेन स्वामी ने हरिवंशपुराण की रचना की है पुरे श्री सियापुर वास्तव्य पुत्र सलन दे. पा.-सेवा उस चैत्यालय की मति भी इस संग्रहालय में माज भी प्रणमति नित्यम् मौजूद है । इस पर विद्वानों को विचार करना चाहिए। इसी तरह अन्य भी लेख हैं जिनमें वर्षनापुर का ऐसा यह मालव प्रदेश है इसमें प्रगणित स्थान ऐसे हैं अपभ्रंश होकर वुदनापुर फिर वुदनावर का उल्लेख है। जिनकी खोज से जैन इतिहास को महत्त्वपूर्ण मोड़ मिल प्रब वह प्रचलित वदनावर के नाम से है। *
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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