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जैन संस्कृति के प्रतीक मौर्यकालीन अभिलेख
डा० पुष्यमित्र जैन एम. ए. पो. एच. से.
मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य भारत के पर स्थापित किया जाता है। प्रतः उसका निर्माण धर्म सर्वप्रथम सम्राट थे। वह जैनधर्म के अनुयायी थे। अब चक्र प्रवर्तन की स्मति में कराया गया प्रतीत नहीं होता है। ऐतिहासिक तथ्यों के प्राधार पर भी प्रमाणित हो चुका । वास्तविकता यह है कि जैन मान्यतामों के अनुसार है। इनके पश्चात् इस देश में विन्दुसार और सम्प्रति तो भगवान महावीर का चिह्न सिंह है और केवल ज्ञान के प्रारम्भ से अन्त तक जैन धर्म के अनुयायी रहे। परन्तु पश्चात् तीर्थकर चतुंमुखी प्रतीत होने लगते हैं । इसके कलिंग' युद्ध तक जैन धर्म में प्रास्था रखने के पश्चात् अतिरिक्त जब वे विहार करते हैं तो धर्म चक्र उनके प्रशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया। राजतरंगिणी में भी भागे-मागे चलत। प्रतः सारनाथ का सिंह चतुष्टय
का स्पष्ट उल्लेख है कि अशोक जैन धम का और धर्म चक्र भगवान महावीर के धर्म प्रचारार्थ विहार अनुयायी था। उसने अनेक स्तूपों का निर्माण कराया तथा
का स्मरण दिलाते हैं । सांची के सिंह चतुष्टय पर धर्मवितस्तात्रपुर के धर्मारण्य विहार में एक बहुत ऊँचा जिन
चक्र नहीं है । वह उनके समवशरण में विराजमान होने मन्दिर बनवाया। मौर्य सम्राटों ने शिला खडों पर अनेक
का प्रतीक है । पाटलिपुत्र के खनन कार्य में वषभ चतुष्टय अभिलेखों को उत्कीर्ण कराया। इनका ऐतिहासिक तथा
प्राप्त हुपा है। यह (मान) स्तम्भ का शीर्ष भाग है जो सांस्कृतिक दृष्टि से बड़ा महत्व है।
कि भगवान ऋषभदेव और भगवान महावीर के द्योतक सारनाथ-इस स्तम्भ के शीर्ष भाग मे सिंह चतुष्टय हैं। अतः महावीर से सम्बन्धित होने से सारनाथ स्तम्भ पर धर्म-चक्र स्थापित था । अब ये दोनो सारनाथ के पुरा- जैन संस्कृति का प्रतीक है । जहाँ तक इसके अभिलेख का तत्त्व सग्रहालय में सुरक्षित है । इसके सबन्ध में इतिहास- प्रश्न है, वह जैन और बौद्ध दोनों पर ही समान रूप से कारों का अभिमत है कि यहां (सारनाथ) पर भगवान लागू होता है। बुद्ध ने साना सर्वप्रथम धर्मोपदेश देकर पांच व्यक्तियों
ग्यारह लघु अभिलेख-गुर्जरा, मास्की, रूपनाथ, को अपना शिष्य बनाया और इस प्रकार धर्म चक्र प्रवर्तन
सहसराम, ब्रह्मगिरि, सिंहपुर, गोविमठ प्रहरौरा, वैराट का कार्य प्रारम्भ किया।' प्रत: सिंह चतुष्टय पर स्थापित धर्म चक्र उसी स्मृति का प्रतीक है । परन्तु यह तक युक्ति विषय है। "ढाई वर्ष पौर कुछ अधिक समय हुमा, मैं सगत नहीं है क्योकि गिरनार त्रयोदश अभिलेख मे भगवान
प्रकाश रूप मे उपासक था । परन्तु मैंने अधिक पराक्रम बुद्ध को हस्ति के रूप में स्मरण किया गया है.।' यदि नहीं किया। एक वर्ष और कुछ अधिक समय हुमा, जब सारनाथ स्तम्भ का धर्म चक्र भगवान बुद्ध के धर्म चक्र मैंने संघ' की शरण ली, तब से अधिक पराक्रम करता हूँ प्रवर्तन की स्मृति में कराया गया होता, तो उसे सिंह चलु. इस काल में जम्बू द्वीप में जो देवता मिश्र थे, वे मिश्र ष्टय के बजाय बुद्ध के प्रतीक हस्ति मथवा हस्ति चतुष्टय किए गए, पराक्रम का यही फल है।" इन में गुजरा १. कलिंग युद्ध राज्याभिषेक के माठवें वर्ष हुमा था
पौर मास्की मे प्रशोक तथा शेष मे प्रियदर्शी का उल्लेख
मार मास्को २. राजतरंगिणी पृ० ८ ।
है। इससे विदित होता है कि प्रशोक के लिए भी प्रिय३. डा० राजवलि कृत प्रशोक प्रभिलेख ए०१३ . दर्शी का प्रयोग होता था और ये समस्त अभिलेख उसी ४. वही पृ० २१॥
५. जैन और बौद्ध संघ ।