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________________ मालव भूमि के प्राचीन स्थल व तीर्थ सत्यंधर कुमार सेठी, उज्जैन मध्य प्रदेश बनने के पहले उज्जैन और उसके प्रास- इस प्रांत मे कुछ ऐसे भी स्थल है जिनको जैनों ने पास का बहु प्रदेश महामालव के नाम से प्रसिद्ध था। तीर्थों के रूप में माना है। जैसे बड़वानी (बावन गजा प्राचीन साहित्य मे मालव भूमि की समृद्धि के सम्बन्ध मे जी) सिद्धवर कट, ऊन (पावा गिरि) ममी पाश्वनाथ काफी उल्लेख है। मालव भूमिका जैन मस्कृति से हजारो वनाड़िया और जामवेर । आज भी जैन समाज में इनकी वर्षों का सम्बन्ध है और इसके अचल में कितने ही जैन मान्यता है और लाखो की संख्या मे जैन समाज वहां सतों ने जन्म लेकर इस भूमि को पवित्र किया है । व जाकर श्रद्धा के सुमन समर्पित करती है। कितने ही महापुरुषो का इस क्षेत्र मे विहार हुआ है लेकिन जैन समाज के पास इन तीर्थों का कोई प्रामाजिनके कारण से यह भूमि पावन तीर्थों के रूप में प्रसिद्धि णिक इतिहास नही है जिससे भारतीय इतिहास की दृष्टि को प्राप्त हुई है। में इनका महत्व हो। यह एक निश्चित बात है कि जैन जिस तरह दक्षिण भारत जैनो के लिए गौरव पूर्ण धर्म एक प्राचीन धर्म है । उसका साहित्य विशाल है। हो रहा है। उससे कही अधिक मालव भूमि का इतिहास स्थापत्य और कला के विकास में इसका महान् योगदान जैनो के लिए गौरव पूर्ण है। इस भूमि पर अनेक जैन है। फिर भी जैन समाज ने अपने इतिहास को देश के जनेतर राजाम्रो ने राज्य किया है। प्रवन्ति के सकमाल महान् विद्वानों के सामने लाने का कोई प्रयास नहीं म जैन मतान्ट किया, जिससे वह लोगो की दृष्टि में प्रागे नहीं बढ़ सका रहा है। भद्रबाह श्रुतकेवली भी इसी भूमि पर विशाल बल्कि वह पिछड़ गया और विश्व में उसके सबंध में गलत मुनि संघ के साथ पधारे थे और शिप्रा नदी के उपवन में धारणाएँ बन गई। ठहरे थे । उनके मंगल विहार से यह भू भाग अलंकृत हुया इतिहास के क्षेत्र में हम हमेशा ही जीवित रहे इसके है। इस कारण इस स्थान की महत्ता प्रसिद्ध है। मातव लिए हमारे पूर्वजों ने महान् गौरव पूर्ण कार्य किये हैं। प्रदेश के प्रत्येक कण मे जैन सस्कृति की गंज है और जिनकी दूरदर्शिता का ही यह परिणाम है कि उन्होने उसका प्राचीन वैभव प्राज भी स्थापत्य और कला के नाम भारत के कोने-कोने मे हर पहाड और जगल मे स्थापत्य से जीवित है। इस प्रदेश मे ऐसा कोई शहर जगल पोर को जन्म दिया और उनको तौथा का रूप देकर हमें गौरव पहाड नहीं जहा पर जैनों की ऐतिहासिक निधि मन्दिर शाली बनाया-लोकन । नियमित शाली बनाया-लेकिन आज के जैनों ने इनके सरक्षण और मूतियों के रूप में खण्डित व प्रखडित अवस्था में के लिए कोई प्रयास नहीं कियाबिखरी हुई न पड़ी हो। ये ऐतिहासिक सामग्रिय प्रमा- मालव प्रान्त में हमारा प्रसिद्ध क्षेत्र सिद्धवर कट णित करती हैं कि इस प्रांत में एक समय ऐसा था जब है। निवाणका है। निर्वाणकांड में यह उल्लेख है कि रेवा नदी के तट जैन धर्म काफी विशाल रूप में था। इसी भूमि ने महान् पर पर यह क्षेत्र है और उसमें बतलाया गया है कि यहाँ दो पर यह क्षत्र ह' निग्रंथ मुनि सिद्धसेन दिवाकर महा मानव मान तुंग प्राचार्य __ चक्रवर्ती और दश काम कुमार मुक्ति को गये हैं । लेकिन महाविद्वान धनंजय कवि प्रादि को जन्म दिया है और हमे पाज भी यह मालूम नहीं कि कौन से दो चक्रवर्ती मन्तिम श्रुतकेवली भगवान् भद्र बाहुकी भी विहार भूमि भोर दश काम कुमार यहां से मुक्ति गये । यही महा मालव रहा है। मुझे तो वर्तमान सिद्धवर कूट जहाँ पर है वह स्थान मुक्ति
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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