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________________ भाषा की उत्पत्ति विकास भाषा विकास को महती देन है। मे कुछ के नामों व रचनामों की तालिका इस प्रकार हैं:जैन, क्षपण, श्रमण अर्थात् इत्यादि शब्द-सब संस्कृत व्याकरण ग्रंथ-'न्यास (प्रभाचन्द्र), 'कातंत्रव्या. मूलक है। दिगम्बर और श्वेताम्बर शब्द भी स्पष्टतया करण'-प्रपरनाम 'कौमार व्याकरण' (शर्ववर्म)-'शब्दासंस्कृत भाषा के ही है। जीव प्रजीव, मानव, बंध, नुगामन' (हेमचन्द्र), 'प्राकृत व्याकरण' (त्रिविक्रम), संवर, निर्जरा और मोक्ष ये जो सात पदार्थ जैनों के यहाँ रूपसिद्धि (दयापाल मुनि), शब्दार्णव (पूज्यपाद स्वामी) प्रमुख तत्त्व माने गये और इन्ही की विवेचना जैन दर्शन . इत्यादि....। का मुख्य अंग है यह भी संस्कृत शब्द संग्रह के ही हैं। कोश-पथ-त्रिकांडशेष, नाममाला (धनञ्जय), 'शाकटायन-व्याकरण' जैन विद्वान का रचा हुआ है। अभिधान चिन्तामणि, भनेकार्थ संग्रह, मादि (हेमचन्द).! 'लह-शाकटायनस्यैव', 'व्योलंघु प्रयत्नतर:-शाकटायनस्य', 'पुराण'-महापुराण, पद्मपुराण, पाण्डवपुराण, हरिपाणिनि सूत्र है । इस सूत्र से सिद्ध है कि 'शाकटायन' की वंशपुगण, त्रिषष्ठि शलाका पुरुष महापुराण प्रादि प्रादि स्थिति पाणिनि के पूर्व थी। शाकटायन-व्याकरण के प्रय कर गद्य-ग्रंथ, गद्य चिन्तामणि, तिलकमंजरी इत्यादि । टीकाकार यक्षवर्माचार्य ने प्रन्थ की प्रस्तावना मे स्पष्ट पद्य-ग्रंथ-वराङ्ग चरित, पाश्र्वाभ्युदय, पार्श्वनाथ चरित, चन्द्रप्रभ चरित, धर्मशर्माभ्युदय, नेमिनिर्वाण काव्य, स्वीकार किया है कि -शाकटायन जैन थे: जयन्त चरित, राघवाण्डवीय (उप नाम द्विसमान काव्य), स्वस्ति श्रीसकलज्ञानसाम्राज्यपदमाप्तवान्, त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित, यशोधर चरित, क्षत्र चूड़ामहाधमण सङ्घाधिपतियः शाकटायनः ॥१॥ एक: शब्दाम्बुषि बुद्धि मन्दरेण प्रायम्य य:, मणि, मुनिसुव्रत काव्य, बाल भारत, बाल रामायण, स यश: धियं समद्दधे विश्वं व्याकरणामृतम् ।।२।। नागकुमार काव्य और अन्य प्रथ ... स्वल्पमन्यं सुखोपायं सम्पूर्ण यदुपक्रमम्, _ 'चम्पू -- जीवन्धरचम्पू, यशस्तिलकचम्पू, पुरुदेव चम्पू ... शब्दानशासनं सार्वमहच्छासनवत्परम् ॥३॥ 'मलकार प्रथ'-वाग्भट्टालंकार, अलंकार चिन्तामणि, तस्यातिमहती वृत्ति सहृत्येयं लघीयसी, ग्रलकार निलक, काव्यानुशासन, इत्यादि इत्यादि ... सपूर्ण लक्षणा वृत्ति वक्यते यक्षवर्मणा ॥४॥ प्रर्थात्-सकलज्ञान-साम्राज्यपदभागी श्री शाकटायन 'नाटक'-विक्रान्तकौरव, अंजनापवनंजय, ज्ञान सूर्योदय मादि ... ने,-जो कि जैन-समुदाय के स्वामी थे-अपने ज्ञानरूपी "चिकित्सा अथ'-अष्टांगहृदय, मंद्राचल से (संस्कृत) शब्दरूपी सागर को मथ डाला गणित-(खगोल व फलित ज्योतिष ग्रन्थ) गणित और व्याकरणरूपी अमत को यशरूपी लक्ष्मी सहित प्राप्त किया। यह महाशास्त्र जो कि प्रर्हत् भगवान के शासन सारसंग्रह, त्रिलोकसार, भद्रबाहु संहिता, जम्बू द्वीप के समान है-सर्वसाधारण के लिए हितार्थ सम्पूर्ण सगम प्रज्ञप्ति, चन्द्र प्रज्ञप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति इत्यादि इत्यादि पौर सक्षिप्त रीति से लिखा गया है। यह लघु एव सरल दर्शन-न्याय ग्रंथ-तत्त्वार्थवात्तिक, तत्त्वार्थ श्लोक टोका जो इस ग्रन्थ की (अमोघ वृत्ति नामक) वृहद टीका वात्तिक, प्रष्टसहस्री, प्रमाण परीक्षा, माप्त परीक्षा, पत्र है-के माघार पर रची गई है और व्याकरण के सर्व परीक्षा, परीक्षामुख, प्रमेयकमलमार्तण्ड, न्यायविनिश्चयागुणों से अलंकृत है । यक्षवर्माकृत है। लकार, न्यायकुमुदचन्द्र, प्रमेयरलमाला, स्यावाद रत्नाकर, देवनन्दि पूज्यपाद का जैनेन्द्र व्याकरण प्रति प्रसिद्ध न्यायदीपिका। हिन्दीममरकोश के रचयिता जैन कोशकार 'भमरसिंह' हमारी राष्ट्र-भाषा का प्रारम्भिक रूप कैसा था ? थे। यह महाविद्वान थे, संस्कृत-साहित्य के माठ जगद्वि- वह किन-किन सांचों में ढलकर पाज इस रूप में विद्यमान ख्यात वैयाकरणों मे से थे। जैनों द्वारा रचे प्राचीन ग्रंथों है, यह जानना प्रत्येक साहित्य-प्रेमी के लिए प्रति भाव. मन
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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