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१०.२५, कि. ४
अनेकान्त
लाग्यो तुम चरणन लार, अब तो मोहि तारो। मेरे साईब तो मोहि तारो।
ग्रन्थ में दोहा, छप्पय, सोरठ। एवं सवैया छद मुख्य कोष लोभ म्हारी गैलन छडित प्रति ही सतावत भार। रूप से प्रयुक्त हुए हैं। ग्रन्थ की कुछ पक्तियाँ दृष्टव्य हैं दीन जानकर दयाजी घरोगे, हरोजी मेंरा दुःख भार। जिनमें कवि ने ब्रह्म की अनन्यता बताते हुए कहा है कि कृपा यह तुम्हारी होय, 'उदय' जब ही उतरे भव पार ॥ उसे छोड़कर अन्य कोई भी मार्ग अपनाना व्यर्थ हैमनोहर लाल
सर्व देव नित नव, सर्व भिक्षक गुरु मान । मनोहर लाल (दास) सांगानेर के रहने वाले थे।
सर्व सासतरि पर्द, धर्मत धर्म न जाने । खण्डेलवाल इनकी जाति थी। इन्होंने 'धर्म परीक्षा'
सर्वतीरय फिरिणाव, नामक ग्रन्थ मे अपना परिचय इस प्रकार दिया है
परब्रह्मको छोडि प्रान मारग को ध्यावं। कविता मनोहर खडेलवाल सोनी जाति,
इह प्रकार जो नर रहै इसी भांति सो पा लहैं । मूल संधी मूल जाको सांगानेर बास है।
प्रचरिज पुत्र वेश्या तणो कहो बाप कासों कहें । कर्म के उदय ते घामपुर में बसन भयो,
चिन्तामणि मान बावनीसब सो मिलाप पुनि सज्जन को दास है।
इस ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति वधीचन्द के मन्दिर व्याकरण छंद अलंकार कछु पढ्यो नाहि,
के शास्त्र भडार के वेष्टन नं० १०१७ में निबद्ध है। इस
ग्रन्थ में वणित कवि की विचारधारा निगुणवादी सन्तों भाषा में निपुन तुच्छ बुद्धि को प्रकास है।
से मिलती-जुलती है । जिस प्रकार कवीर, सुन्दरदास, दादू बाई दाहिनी कछू समझे संतोष लिये,
मादि सन्त कवि ब्रह्म को अपने भीतर ही देखने की जिनकी बुहाई जाक, जिनही की मास है।
सलाह देते हैं उसी प्रकार मनोहरदास ने भी शरीर में कवि मनोहरलाल के सम्बन्ध मे इससे अधिक परिचय
रचय रहने वाले निरंजन के ध्यान करने की बात कही है
सेवा मन्तः साक्ष्य या बहिक्ष्यि के प्राधार पर उपलब्ध नहीं
बर्मु धम्म सब जगु कहै, मर्म न कोई लहेत । है। इनकी निम्नलिखित रचनाए हैं
अलख निरंजन ज्ञानमय, इहि तनु मध्य रहेत । १. घमं परीक्षा (सं० १७०५)।
धम्म धम्मजग कहै मर्म नर थोडा बूमह । २. ज्ञान चितामणि (माघ शुक्ला ८ स०१७२८)। ब्रह्म बस तनु मध्य मोह पटल वृग सुषमा। ३. चिन्तामणिमग्न बाबनी।
नकु गुरु केटा वचन एह कज्जल करि भंजन । ४. सुगुरु शोष।
हृदय कमल जे नय सुमति अंगुल किया मंजन । ५. गुणठाणागीत।
जिम मोह पटल फट्टइ सरयल दृष्टि प्रकास पुरंत प्रति । बम परीक्षा
श्रीमान कहै मति माग लौ हौं धर्म पिछावण एह गति ।।३५ इसकी रचना सं० १७०५ में हुई। यह प्राचार्य १. सुमुनि पमित गति जान, सहस कीर्ति एवं कही। अमितगति रचित सस्कृत के प्रन्य 'धर्म परीक्षा' कथा का या में बुषि प्रमान भाषा कोनी जोरि के।
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