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६. योगसार भाषा
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( भाव २ सं. १८९५) । (१८६२) ।
७. पंचास्तिकाय
८. वर्धमान पुराण
(१८९५) ।
६. भक्तामर स्तोत्रोत्पत्ति कथा |
१०. इष्टतीसी'।
११. वंदना जखडी ।
१२. चर्चा शतक |
१३. सरस्वती पूजा ।
१४. मृत्युमहोत्सव |
१५. पंचमंगल एवं पूजा | १६. दर्शनपाठ' 1
१७. रामचन्द्र चरित्र ।
१५. स्तुति।
१६. षटपाठ एवं ।
राजस्थान के जन कवि और उनकी रचनाएँ
२०. पद ।
बुधजन विलास
बुपजन विलास प्रकाशित हो चुका है। इसमें कवि द्वारा रचित भजनों का संग्रह है । बुधजन ने सगुण व निर्गुण दोनों ही स्वरूपो का चित्रण किया है। इन भजनो में विभिन्न राग-रागनियो का भी उल्लेख हुआ है । जिससे यह कहा जा सकता हैं कि कवि को शास्त्रीय संगीत का भी पूर्ण ज्ञान था, घोर वे ध्रुपद एवं ख्याल दोनों ही प्रकार की गायकी से परिचित थे । डा० कासली वाल के अनुसार - विलास एक मुक्तक संग्रह है जिसे पढ़ कर प्रत्येक पाठक प्रात्मदर्शन करने का प्रयास करता है ।
१. शास्त्र भंडार, बाबा दुलीचन्द भडार | २. शास्त्र भंडार, विजयराम का मन्दिर वे० सं० ७१ । ३. शास्त्र भंडार, मंदिर पाटोदी।
४. शास्त्र भंडार, मन्दिर यशोदानन्द जी २८७ ।
५. शास्त्र भंडार, पाटोदी वे० सं० १००६ । भंडार मंदिर श्री संधी जी २६० ।
६.
७. शास्त्र भंडार, मंदिर चौधरियों का वे० स० १०० । ८. शास्त्र भडार, पार्श्वनाथ वे० सं० ५३३ ।
९. आमेर शास्त्र भंडार तथा प्रत्य शास्त्र भंडारों में भी उपलब्ध है ।
१०. हिन्दी जैनपद संग्रह - डा० कासलीवाल पृ० १६० ।
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बघन विलास का एक पद दृष्टव्य हैकिंकर मरज करें जिन साहब, मेरो घोर निहारो, पतित उपारक दीन दयानिधि, सुन्यों तोरि उपगारो ।
मेरे चौगुन मति जावो, अपनो सुजस विचारो 1 कोटि बार की बात कहत हूँ यो ही मतलब म्हारो । जो सो भव लौली बमजन को दो सरन सहारो ॥
बुधजन के अब तक ३०० पद प्राप्त हो चुके हैं । इनमें एक से एक उच्चकोटि का पद है । माणिक चन्द्र
माणिक चन्द्र के विषय में केवल इतना ही ज्ञात हो सका है कि ये भावसा गोत्रीय खण्डेलवाल वैश्य थे । इनका रचनाकाल सं० १८०० था" । बाबा दुलीचन्द भंडार के वे० सं० ४३६ पर इन द्वारा रचित तेरहपंथ पच्चीसी, तथा १८३ पद प्राप्त हुए हैं। इनका एक पद दृष्टव्य है
जोगीया मेरे द्वारे दई कुमती मेरे पीऊ स्वपर छोडि पर ही नाचत
हंसी बनी दर्द को कंसी सील पई । संग रावत,
चकई ॥ वई ० ||१|| रत्नत्रय निजविधि विगाम के जोडत कर्म कई । रंक भये घर घर डोलत अब कैसी निरभई || २ || यह कुमति म्हारी जनम की परिनिपीय कोनो प्रायु भई पराधीन दुख भोगत भोनू, निज सुष विसरि गई ॥ ३॥ 'मानिक' सुमति धरणनित तो कृपा भई । विछुरे कंत मिलावटु स्वामी चरण कमल बलि गई ||४||
उदयचन्द्र
उदयचन्द्र जयपुर के रहने वाले थे। इनका जम्म लुहारिया गोत्रीय खण्डेलवाल वैश्य परिवार मे हुधा था । इनका रचनाकाल सं० १८६० बतलाया गया है" । इन्होने श्रावकाचार वचनिका" तथा कुछ पदों की रचना की है। इनके पद बड़ा तेरहपंथी मन्दिर जयपुर के पदसंग्रह ९४६ व ११८ पर हैं। उपलब्ध पदो की संख्या ९४ है । पद का नमूना यह है
११. वीरवाणी वर्ष १ क १५० ६ । १२. वीरवाणी वर्ष १, अंक १ पृ० ६ । १३. बही ।