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________________ रयणसार-आचार्य कुन्दकुन्द की रचना डा० देवेन्द्रकुमार शास्त्री भारतीय अध्यात्म जगत् में प्राचार्य कुन्दकुन्द एक केवल समझी ही नहीं जाती थी, वरन् प्रांध्र कलिंग देश अमर रत्न थे। उनका दीक्षा नाम पद्मनंदी था। वे कोन्ड- के सामान्य लोग भी उस समय इसी प्राकृत का प्रयोग कुण्डपुर के निवासी थे। ब्रह्म श्रुतसागर ने षट्पाहुड टीका में करते थे। इस युग की रामतीर्थम् की जो मिट्टी की सीलें उनके पांचों नामों का उल्लेख किया है अर्वाचीन पढावली मिली हैं और भमरावती के शिलालेख भी इस प्राकृत से में भी उनके नामों का उल्लेख मिलता है- साम्य रखते है मेरी समझ में यह युग ईसा की प्रारम्भिक प्राचार्यः कुन्दकुन्दाख्यो वक्रग्रीवो महामतिः। प्रथम या द्वितीय शताब्दी होना चाहिए। "भाषा की एलाचार्यो गद्ध-पिच्छश्च पद्मनन्दी वितन्वते ॥४॥ दृष्टि से विचार करने पर यह कथन पूर्णत: सत्य प्रतीत एक अन्य पट्टावली के अनुसार भा० कुन्दकुन्द का होता है । क्योंकि भाचार्य कुन्दकुन्द की रचनाओं में जन्म वि० संवत् ४६, पौष कृ. अष्टमी को हमा था। वे प्रयुक्त प्राकृत पौर परवर्ती रचनामों की प्राकृत में कई केवल ११ वर्ष तक घर में रहे। उन्होंने ३३ वर्ष की प्रकार के अंतर परिलक्षित हैं । उनका निर्देश करना प्रस्तुत अवस्था मे जिनदीक्षा धारण कर ली थी। वे ५१ वर्षों निबन्ध का विषय नहीं है । किन्तु उसका सारांश यही है तक प्राचार्य पट्ट पर रहे। 'उनकी आयु ९५ वर्ष, १० मास कि भाषागत अध्ययन के आधार पर हमार विच और १५ दिन की थी। प्राचार्य कुन्दकुन्द का समय ईसा की प्रथम शताब्दी है। समय-तत्वार्थ सूत्र के कर्ता उमास्वाति का नाम भी शक संवत् ३८८ में उत्कीर्ण मर्करा के तामपत्र मे कोण्डग्रिद्ध पिच्छाचार्य था। एक जगह उन्हें कून्दकुन्द का कुन्दाम्वय की परम्परा के छह पुरातन प्राचार्यों का शिष्य भी लिखा है । वे उन्हीं के प्रन्वय में हुए है। इससे उल्लेख मिलता है । डा. ए. चक्रवर्ती ने भी 'पञ्चास्तिस्पष्ट है कि (उमास्वाति) या उमास्वामी प्राचार्य कुन्द- काय" को प्रस्तावना में यहा समय मान कुन्द के बाद मे हुए । सभी पट्टावलियों में उमास्वाति का (देखिये, श्र• शि०) ५४ । जन्म संवत् १०१ कार्तिक शुक्ल अष्टमी कहा गया है। रचनाएं-श्री जुगल किशोर मुख्तार ने प्राचार्य इनकी प्रायु ८४ वर्ष, ८ मास पोर ६ दिन की बतलाई गई कुन्दकुन्द का २२ कुन्दकुन्द की २२ रचनामों का उल्लेख किया है, जो इस है। इन दोनों के समयोल्लेख से यह निश्चित है कि प्रकार है-१. प्रवचनसार, २. समयसार, ३. पंचास्तिकाय प्राचार्य कुन्दकुन्द उमास्वाति के पूर्ववर्ती हैं। ४. नियमसार, ५. बारस-प्रणुवेक्खा, ६. दसणापाहुड, श्रवणवेल्गोल के शिला लेख सं० ४० में इनका नाम ७. चारित्रप हुड, ८. सुत्तपाहु, ६. बोधपाहुड ११. मोक्ख "कोण्डकुन्द" मुनीश्वर कहा गया है । "कोंडकुन्दपुर" के पाहुड, १२. लिंगपाहुर, १३. शीलपाहुड, १४. रयणसार निवासी होने के कारण इनका नाम 'कुन्दकुन्द" प्रचलित १५. सिद्धभक्ति, १६. श्रुतभक्ति, १७. चारित्रभक्ति, हुप्रा, बताया जाता है। शेषगिरि राव ने अपने लेख "८ १८. योगि (पनगार) भक्ति, १६. प्राचार्य भक्ति, एज माव कुन्दकुन्द" में विस्तार पूर्वक लिखते हुए कहा २०. निर्वाणभक्ति, २१. पंचगुरु (परमेष्ठि) भक्ति, है-"मेरे पास तमिल साहित्य में मोर लोक बोली में २२. योस्सामि थुदि (तीर्थकरभक्ति)। इस बात के अनेक प्रमाण हैं कि जिस प्रकार की प्राकृत पंचास्तिकायप्रवचनसार-प्रपनी सभी रचनामों मे में प्राचार्य कुन्दकुन्द ने अपने ग्रन्थ निबद्ध किए हैं वह से "प्रवचनसार" को सम्भवतः सबसे पहले रचा था।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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