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________________ व्यवहार नीति के अगाध स्रोत-जातक एवं धम्मपद डा० बालकृष्ण 'अकिंचन भगवान बुद्ध के जन्म से सम्बन्धित कथानों को विधवा स्त्री नग्न होती है, चाहे उसके दस भाई क्यों न जातक कहते हैं। जातकों के हिन्दी रूपान्तरकार, भदन्त हों।" (जातक प्रथम ११७६७) । "वह जीत मच्छी पानन्द कौशल्यायन के अनुसार इतिहास, भूगोल, समाज जीत नहीं, जिस जीत से फिर हार हो । वही जीत अच्छी शास्त्र, मनोरंजन, धर्म एवं राज्य व्यवस्था से सम्बन्धित जीत है, जिस जीत से फिर हार न हो।" (जातक, प्रथम मान पथाह मात्रा में जातकों में एकत्रित है। व्यवहार भाग ११७७०)। "जो एक (मादमी) सहस्रों जनों को एवं नीति सम्बन्धी तो ऐसी कोई बात शेष नही रह लेकर संग्राम में सहस्र जनों को जीत लेता है और एक जातीयोबीवन साफल्य के लिए मावश्यक हो और सिर्फ अपने को जीतता है तो अपने पापको जीतने वाला जातकों में विद्यमान न हो । भारतीय साहित्य के विशिष्ट ही उत्तम सग्राम विजेता है।" विवेचक श्रीयुत विन्टरनिट्स महोदय ने जातकोय कथा (जातक, प्रथम भाग ११७७०) सामग्रीको सात वर्गों में विभाजित किया है । उन्होंने भा जातियों का सम्मिलित रहना श्रेयस्कर है, भरण्य व्यावहारिक नीति को पृथक वर्ग में रखा है। वस्तुतः में उत्पन्न होने वाले वृक्षों तक का भी। क्योंकि महावृक्ष यही जातकों का प्रधान विषय है। कहानी के साथ मह तक को अकेले खड़े होने पर, हवा उड़ा ले जाती है।" स्वपूर्ण शिक्षा को पचबद्ध कर दिया गया है। ये पद्य प्राकृत (जातक, प्रथम भाग (१८७४) । "जिस प्रकार फूल के प्रिय गाथा में हैं। किसी-किसी जातक में ये वर्ण या गन्ध को बिना हानि पहुँचाये भ्रमर रस को गाथाएं बही पटपटी और सहसा विश्वास न करने वाला लेकर चल देता है, उसी प्रकार मुनि गांव में विचरण व्यवहार नीति का भी उपदेश करती हैं, यथा करे।" (जातक, प्रथम भाग १८७)। "सात कदम अविश्वास करने योग्य में विश्वास न करे। विश्वास साथ चलने से (भला प्रादमी) मित्र हो जाता है, बारह करने योग्य में भी विश्वास न करे । विश्वास करने से भय (दिन) साथ रहने से 'सहायक' हो जाता है, महीना भाषा उत्पन्न होता है, जैसे मगमाता से सिंह को हुमा । महीना (साथ रहने से) 'जाति' (रिश्तेदार) हो जाता है प्रर्थात जो नित्य प्रति परिश्रम करने वाला न हो. पौर इससे अधिक (साथ) रहने से अपने जैसा (मात्म उनकी गृहस्थी नहीं चलती। दूसरों को न ठगने वाले समान) भी हो जाता हैं । (जातक, प्रथम भाग १९८३) की भी गृहस्थी नहीं चलती। दण्ड को त्याग देने वाले "मारोग्यता जो कि परम लाभ है (सर्वप्रथम) उसकी को गृहस्थी भी नहीं चलती...।" "लोक में स्त्रिया प्र- इच्छा; शील (सदाचार), ज्ञान वृक्षों का उपदेश; (बहु) साध्वी होती हैं। उनका कोई समय नहीं होता, जैसे- श्रुतता, धर्मानुकूल माचरण मनासक्ति ये छ: मथं (उन्नति) दीपक की शिखा सबको जला देने (खा लेने) वाली होती के प्रमुख द्वार हैं। है. वैसे ही वह रागानुरक्त तथा प्रगल्म नहीं है..." "वे (जातक, प्रथम माग १९८४) माया है. मरीच है, शोक है, राम हैं, उपद्रव है, कठोर है, इस प्रकार हम देखते हैं कि जातकों की गाथाएं बंधन है, मृत्यु-पाश हैं और गुह्य प्राशय हैं। जो मनुष्य प्रत्यन्त उपयोगी हैं। संस्कृत नीति कवियों ने भागे चल उनका विश्वास करे, वह नरों में प्रथम है।" "बिना पानी कर इनके विषय, भाव, भाषा शैली इत्यादि सभी उपके नदी नग्न होती है, बिना राजा के राष्ट्र नग्न होता है। करणों का प्रभूत मात्रा में उपयोग किया है।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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