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चन्द्रावती का जैन पुरातत्व
मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी (शोषछात्र)
राजस्थान के सिरोही जिले में पाबू रोड से सग- है, जिन्होंने न केवल उक्त स्थल की सूचना दी, परन् उस भग ६ किलोमीटर दूर स्थित ऐतिहासिक स्थल चन्द्रा- स्थल तक जाने का कष्ट भी किया। बती में सम्प्रति जैन व हिन्दू मूर्तियां खुले माकाश के
एक तीर्थकर चित्रण (नं०सी०१४५, ३० इंच नीचे बिना सूची-पत्रों (धनवटे लाग्ड) के अव्यवस्थित रूप ४१८ इंच) में जिनका केवल साधारण पासन पर में बिखरी पड़ी है और उनकी सुरक्षा हेतु मात्र दो ध्यान मुद्रा में होना काफी पाश्चर्यजनक है.योंकि रक्षकों को नियुक्त किया गया है। चन्द्रावती स्थित सभी
समकालीन जिन मूर्तियों में, जैसा कि स्वयं चन्द्रावती हिन्दू व जैन मन्दिर पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं और उन को पन्य जिनमूर्तियां भी प्रष्टव्य है. तीथंकरों को मन्दिरों का शिल्प वैभव मात्र ही सम्प्रति व्यवस्थित सिंहासन पर पासीन चित्रित किया गया है। तीर्थकर, संग्रह के रूप में प्रविष्ट है। परमार शासकों के काल में जिनकी पहचान लांछन के प्रभाव में सम्मव नही है,के निर्मित समस्त मंदिरों की संगृहीत मूर्तिया ११वीं-१२वीं पासन के नीचे कमल दण्डों को उत्कीर्ण गया किया है। शती की कलाकृतियां हैं प्रारम्भ में यह स्पष्ट कर देना वक्षस्थल में धीवत्स से चिम्हित तीर्थकर की केश रचना उचित ही होगा कि चंद्रावती के जैन मतियों से सम्बन्धित गुच्छकों के रूप में निर्मित होकर पर उष्णीष के रूप में प्रस्तुत लेख में अष्टदिक्पालों के चित्रणों को सम्मिलित पाबद्ध है। तीर्थकर के शीर्ष भाग के ऊपर पिछत्र प्रदनहीं किया जा सका है, क्योंकि सभी मूर्तियों बिना शिंत है, जो दण्ड से युक्त है। रथिका में स्थापित मूलसुची-पत्रों में स्थित होने की वजह से सम्प्रति अष्टदिक्पाल
नायक के मस्तक के दोनों मोर दो प्रशोक वृक्ष की मूर्तियों के सम्बन्ध में यह निर्णय कर पाना असम्भव है पार
पत्तियां प्रदर्शित हैं। इस चित्रण के दूसरे भाग में चतुकि कोन सी मूर्ति जैन मंदिर, मोर कोन सी हिन्दू मंदिर
र्भुज दिक्पाल वायु की त्रिमंग मुद्रा में बड़ी प्राकृति पर उत्कीर्ण पी। मष्टदिक्पाल मतियों के सम्बन्ध में भेद
उत्कीर्ण है। वायु की ऊवं दोनों भुजामों में ध्वज स्थित कर पाना इसलिए भी सम्भव हो गया है। क्योंकि दोनों
है, पौर निचली बायीं में लटकता कमण्डलु प्रदर्शित है। धर्म सम्प्रदायों में दिक्पालों के मन में वाहनों व मायुषों
निचली दाहिमी भुजा भग्न है । वायु के दाहिने पाश्व में के चित्रण में अत्यधिक समानता प्राप्त होती है। फलतः
वाहन हिरन को मूर्तिगत किया गया है। करण मुकुट व प्रस्तुत मेख में केवल तीर्थकर कुछ अन्य चित्रणों,
अन्य सामान्य प्राभूषणों से सुसज्जित वायु के वाहिने जिनकी निश्चित पहचान सम्भव हो सकी है, को ही
पावं में एक स्त्री सेविका बड़ी है, जिसकी वाम भुवा में सम्मिलित किया गया है। संग्रहालय में बिखरी कुल १०
चामर स्थित है और दाहिनी मजा कटि पर माराम कर मूर्तियों में एक के अतिरिक्त सभी तीर्थंकरों का चित्रण
रही है। रथिका में स्थापित मारुति के दोनों छोरों पर करती है। यह भी ज्ञातव्य है कि श्वेत संगमरमर में
व्याल व मकर मुख चिषित है। बिना परिकर के उत्कीर्ण निर्मित सभी मूर्तियां काफी खण्डित है। उल्लेखनीय है
तीर्थपुर की एक अन्य कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ी मारुति कि चंद्रावती की समस्त जैन मूर्तियाँ अप्रकाशित है जिनका हर
में (न० सं० २३५, २१-४ इन्चxe-३ इञ्च) तीर्थ
बांधों के नीचे का भाग खण्डित है। तीचंगुर मध्ययन लेखक ने स्वयं उस स्थल पर जाकर किया है। उष्णीष वलम्ब कर्ण से युक्त है। लेखक माउन्ट माबू संग्रहालय के अध्ययन का मामारी अब हम तीन ऐसी तीर्थकर भूतियों का अध्ययन