________________
महावीर : एक विचार-व्यक्तित्व
जमनालाल जन
महावीर वज्ञानिक दृष्टि के प्रवर्तक थे। वैज्ञानिक घटनायो का प्राकार हो वैसा होता है, जैसी हमारा किमो बनाये या पूर्व निश्चित सत्य का अनुगामी नहीं वासना-प्राकाँक्षा होती है। हमारी प्रांखें लीला-प्रिय बोला। उसका सत्य सतत प्रवाहशील, प्रगतिशील पोर होती है। घटनामों में रग भरने में हमें मानन्द भाता है। निननन मायामों को प्रकट करने वाला होता है। यही रस पाता है। प्रत महावीर के जीवन के साथ भी घटसम्यक दष्टि है। सम्यकत्व-सम्पन्न माख ही ठीक-ठीक नाएं जोर देते है। दशन कर पाता है। उन्होन तो कहा कि बाहर की पाख
उनकी माता को जो कुछ स्वप्न दिखाई दिये, वे का भरोसा ही न करी, विवेक की प्रास्त्र खली रखो।
प्रतीक हैं महावीर के व्यक्तित्व को समझने के । ये स्वप्न ग्रथि ही बाधा है । प्रथि से छूटना ही मोक्ष है। प्रधा
महावीर के सम्पूर्ण और व्यापक व्यक्तित्व का सकेत देते मनुकरण या अनुममन सम्यक्तत्व नही है।
है। स्वप्नो मे उनकी मां हाथी, बैल और सिंह देखती है, ___ भगवान महावीर दीर्घ तपस्वी थे । उनकी तपस्या
सूर्य और चन्द्र देखती है, फूल और प्राग देखती है, जलकुछ वर्षों की या एकाघ जन्म की नही है । वे कई
कलश और मीन-युगल देखतो है; ये चीजें बताती हैं कि जन्मो तक स्वयं ही जूझते रहे हैं। इतनी लम्बी तपस्या
उनका व्यक्तित्व एक ओर जहाँ फूल की तरह कोमल मोर इतना लम्बा सघर्ष शायद ही किसी ने किया हो।
सुरभिमय था, वहाँ माग की तरह जाज्वल्यमान भी मनन्त उत्तार-चढ़ावो से होकर वे इस प्रन्तिम पड़ाव पर
था। चन्द्र की त ह शीतल था तो सूर्य की तरह प्रखर पहुँचे थे। उनके पास इतमा अनुभव सचित हो चुका था
भी था। गज की तरह बलिष्ठ था तो बैल की तरह कि उनका अन्तिम प्रारम स्तर अनन्त दर्शन और अनन्त
कर्मठ या और सिंह की तरह निर्भय था । ज्ञान में प्रखर, ज्ञान से सम्पन्न हो गया था। वे सम्पूर्ण सचराचर जगत्
करुणा में कोमल-इस प्रकार शान्ति और क्रान्ति का अनन्त पर्यायो के ज्ञाता.दृष्टा हो गए थे। वे किसी
एक जगह भाकर इकट्ठा हो गई थी। सागर की गहराई मादशं, किसी वल्पना और किसी गणित की धारणा से
और हिमालय की ऊचाई एक जगह मा गई थी। महाअभिभूत नहीं थे।
वीर का यह व्यक्तित्व दिनो-दिन चुपचाप वर्धमान होता वर्द्धमान महावीर का जीवन-घटना-बहुल नहीं है। गया। वर्धमान शब्द के साथ परिवार तथा गाँव-समाज घटनामों में उनके व्यक्तित्व को खोजना व्यर्थ है, नादानी की समदि जोड़ना बहत छोटी बात लगती है। है। ऐसी कौन सी घटना शेष थी जो अनन्त भावों में महावीर सम्पूर्ण सृष्टि के साथ एक रूप हो गये उनके साथ न घटी हो, लेकिन अब तो घटनाएं पीछे छूट थे। वे पूर्ण महिसक थे। उन्होंने जड़ और पशु जगत् गई थी। अब तो वे उस पथ के नेता थे , जहां उन्हें पहुँ- के साथ तादात्म्य अनुभव किया था। इस एकात्मता, चना था और जो उन्हे स्पष्ट दिखाई दे रहा था। पब तो समरसता के लिए वस्त्र बाधक ही हैं। महावीर की घटनाएं उनके लिए गढ़ी जा रही थी, मानो उनके व्यक्ति- नम्नता उनके ज्ञान का प्रग थी। चरित्र का अंग नहीं त्व को संपुट मे बन्द किया जा रहा था।
थी। एक स्तुति मे कहा ही है कि जो कुरूप, बेडौल और यह हमारी अपनी वासना मोर भाकांक्षा है कि हम वासना ग्रस्त होता है वही वस्त्राभूषण तथा मायुध घटनामो में व्यक्तित्व को देखते हैं, उसमें रस लेते हैं। रखता है, भाप तो सर्वांग सुन्दर हैं। सच तो यह है कि