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लोकभाषा प्रर्धमागधी और भगवान महावीर
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की माची भाषा में निबद्ध किया अर्थ किया जाना समु. का सार यही हुआ कि अर्धमागधी भाषा ऐसी एक भाषा चित नहीं है। चूर्णिकार के दूसरे प्रकार का अर्थ जो थी, जो मागधी तथा अन्य प्रान्तो को भाषाम्रो के मेल अर्धमागधी भाषा अनेक भाषामों के मेल से निष्पन्न हुई से निष्पन्न हई थी। उसी को भगवान महावीर ने अपने भाषामों का प्रर्थ करना ठीक ही है, क्योंकि भगवान उपदेश का माध्यम बनाया। उसे सभी लोग पासानी से महावीर की जन्मभूमि मगधदेश में होने से उनकी भाषा समझ लेते थे। अनेक भाषामों के मेल से बनने से ही का सम्बन्ध मगघदेश के साथ होना सर्वथा उचित है। भगवान की इस वाणी को शास्त्रो मे (सर्व भाषामयी) साथ ही साथ मगध के समीपवर्ती दूसरे-दूसरे प्रान्तों की कहा होगा। भाषामों के साथ मागधी का सम्पर्क होना भी स्वाभा• ग्रन्थों में भाषा की इस विशेषता को मगर जाति के विक ही है। इस तथ्य को हम लोग वर्तमान युग में भी देवताओं का प्रतिशय कहा गया है। अर्थात् उन देवो के देख रहे है। इसलिए अन्य प्रान्तों की भाषामों से मिश्रित द्वारा उसका परिणभन सर्व भाषामयी के रूप में कर मगधी भाषा ही अर्धमागधी होनी चाहिए।
दिया जाता था। इसलिए इस विज्ञान युग मे जिन यन्त्रों मार्कंडेय ने अपने प्राकृत व्याकरण मे शौरसेनी के द्वारा एक भाषा में कही हई बात को तत्काल भिन्नभाषा के निकटवर्ती होने के कारण मागधी ही अर्धमागधी भिन्न भाषामो मे अनुवादित करने वाले यन्त्रो की मिशाल है। ऐसा अर्धमागधी भाषा का लक्षण बताया है कि मगध दी जा सकती है। उन यन्त्रों की सहायता से सुनने वाले देश और शूरसेन देश की भाषा शौरसेनी के साथ संपर्क अपनी-अपनी भाषा में उसका प्राशय सरलता से समझ होने से अर्धमागधी भाषा की उत्पत्ति सम्भव है। लेते है। बल्कि अाजकल ऐसा यन्त्र भी तैयार हुआ है प्रियेर्सन के मत से मध्य प्रदेश (शूरसेन) और मगध के जिसके द्वारा प्राप दूसरे के मन की बात को जान सकते सभी प्रान्तों की भाषा ही जन अर्धमागधी है। एक मत हैं । अर्थात् वह यन्त्र मनःपर्यय ज्ञान का काम करता है। और लीजिए-क्रमदीश्वर ने अपने प्राकृत व्याकरण में बल्कि भगवान की वाणी की विशेषता को तीर्थ हर का महाराष्ट्री से मिश्रित मागधी भाषा को अर्धमागधी कहा। अतिशय भी कहा गया है। जो भी हो भगवान महावीर है। इवेताम्बरी जैन सत्रो की अर्धमागधी मे प्रय भाषायो के द्वारा लोकभाषा में प्रदत्त उपदेश का परिणाम यह की अपेक्षा महाराष्ट्री के लक्षण अधिक उपलब्ध होने के
हुमा कि व्यापक रूप से जनता पर उस उपदेश का प्रभाव कारण ही क्रमदीश्वर ने अपने व्याकरण मे ऐसा कहा
पड़ा, क्योकि सभी लोग उस उपदेश को ठीक से समझ
लेते थे । होगा। मगर उनकी राय से भी यही प्रकट होता है कि अन्यभाषामों से मिश्रित मागधी को ही मर्धमागधी कहते लोकभाषा मे उपदेश देने की भगवान महावीर की थे। मगध देश की भाषा मागधी थी यह बात निविवाद इस सर्वोपयोगी पद्धति को और पूज्य प्राचार्य एवं कवियों है। ऐसी दशा में प्राधे मगध की भाषा उससे भिन्न अन्य ने भी यथावत् प्रक्षुण्य रूप में अपनाया है। यही कारण कोई भाषा नहीं हो सकती, जिसको अर्धमागधी कहा जाए। है कि वे जहाँ गये वहां की भाषा सीख कर उसी मे उपइस परिस्थिति में प्रर्धमगध की भाषा को अर्धमागधी देश दिया और उसी में सर्वोच्य अथो की रचना की। कहना युक्ति सगत प्रतीत नही होता । इन सबों
-(वीर निर्वाण विचार सेवा के सौजन्य से)