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________________ लोकभाषा अर्धमागधी और भगवान महावीर प्राचार्य के. भुजबली जैन प्रथों से यह सिद्ध हो चुका है कि भगवान् महा- ने अपना उपदेश अर्धमागधी भाषा में दिया था। यद्यपि वीर के माता-पिता रानी त्रिशला और राजा सिद्धार्थ थे। उनके समय में धर्म की भाषा को ही अपने-अपने उद्देशो ये दोनों २३वें तीर्थकर पार्श्वनाथ के अनुयायी थे । महा- का माध्यम बनाया था। ये दोनों धर्म-प्रवर्तक किसी वीर के पिता कृण्डग्राम के शासक थे और माता त्रिशला भाषा विशेष पर मोहित नही थे। उनकी केवल यही लिच्छवि कुल के प्रशासक, राजा चेटक की विदषी एवं भावना थी कि शिक्षित-प्रशिक्षित, नीच-उच्च, गरीबरूपवती पुत्री थी। भगवान महावीर के पित-मातृ दोनो अमीर सभी लोग अपने धर्म को जाने और उसका अनु. ही कुल लोकतंत्र के प्रेमी थे। महावीर के ज्ञात सरण करें। उनकी दृष्टि में भाषा विशेष के प्रयोग का (नात) गोत्रज होने के कारण ही बौद्ध ग्रथों मे उन्हें नात महत्व नहीं था पुत्र कहा गया है। ऊपर कहा गया है कि भगवान महावीर के उपदेशो उपर्युक्त कुण्डग्राम (वैशाली) मगध देश के अन्त का माध्यम अर्धमागधी भाषा थी । इस अर्धमागधी भाषा गंत था। वहाँ की लोकभाषा मागधी थी; किन्तु प्राचीन का अर्थ भिन्न-नि विद्वानों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से जैन सूत्र ग्रंथों से विदित होता है कि भगवान् महावीर किया है। सोलहवी शताब्दी के ग्रथकार श्रतसागर सूरि के मतानुसार भगवान् महावीर की भाषा का प्राधा पावश्यक है। प्रतः दीपोत्सव के पालोक पर्व पर लोगों भाग मगधदेश की भाषा, अर्थात् मागधी भाषा का रूप को चाहिए कि वे अपना प्रसन्तोष जलाए, तुच्छ वृत्तियों था और भाषा भाग अन्य सर्व भाषाओं का रूप था। की पाहुति दें, मनाचार को इन्धन बनायें, राष्ट्रीय एकता (षट प्राभत टीका ०६६)। सातवीं शताब्दी के चू की मशाल प्रज्ज्वलित करें तथा अन्तःकरण मे ज्ञानदीप कार श्री जिनदास गणी महत्तर ने निशीथ ची में की प्रखण्ड ज्योति का माह्वान करें। अर्धमागधी भाषा का अर्थ दो प्रकार से किया है, "जैसे मात्म-दर्शन की शुभ वेला मगहद्धविसयभासाणिबद्धं प्रद्धमागह, अट्ठारस देसी यह पर्व असामान्य है। भगवान् तीर्थकर परमदेव भासाणिययं प्रद्धमागहं इसमे प्रथम प्रकार का अर्थ प० महावीर की परिनिर्वाण स्मृति का ज्योतिःस्तम्भ है। वेचरदास जी ने मगध देश की प्राधी भाषा में जो निबद्ध निर्जराज्वाला में कोन्धनों की माहुति का पवित्र दिन है, वह अर्घ मागधी है यह अर्थ किया है (जैन सा० सं० हैं। केवलज्ञान से उद्भाषित है । यह द्यूतक्रीडा की नहीं, भाग १, ५४)। मात्मदर्शन की सुवेला है । बाहर के प्रदीप लौकिक निर्वाण परन्तु इसी का अर्थ पं० हरगोविन्ददास जी ने अपने मंगलोत्सव के प्रतीक हैं और माभ्यन्तर ज्ञानदीप प्रात्म- पाइप्रसद्दमहण्णव के उपोद्घात के पृष्ठ २७ मे मगध देश चेतना के प्रबद्ध प्रतीहार । भवन की देहली पर घरा हुआ के अर्घ प्रदेश की भाषा मे जो निबद्ध हो, वह अर्धमागधी, प्रदीप जैसे बाह्य तथा प्रभ्यन्तर प्रगण को समान रूप से किया है। इसका अभिप्राय यह हुमा कि मगध देश पालोकित करता है, वैसे तीर्थकर भगवान महावीर के के मांग की जो भाषा है वह अधमागधी है । उक्त जिनपवित्र परिनिर्वाण-स्मरण मे मनाया जाने वाला यह दीप दास महत्तर का प्राशय भी यही होगा, क्योंकि मगधार्थ पर्व सर्वत्र मालोकमय हो। विषय भाषा निबद्धं का अर्थ मगध देश के भर्घप्रदेश की -वीर निर्वाण विचार सेवा के सौजन्य से भाषा में निबद्ध किया जाना असगत है। मगध देश
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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