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________________ ज्ञान दीप जलाओ मुनि श्री विद्यानन्द जलाने की धुन तो प्रायः बहुतों में है परन्तु जनाने का विवेक नहीं है । परिणामस्वरूप किसी का तन जल रहा है तो किसी का मन जल रहा है। किसी की शाति को भाग लगी है तो कोई अपन्तोष के प्रगारे उछाल रहा है। इनसे घोर चाहे जो कुछ हो, प्रालोक प्राप्ति नहीं हो सकती । भाग छुट्टी घर लागी माज सम्पूर्ण राष्ट्र असन्तोष की भागमें दहक रहा है। विश्वास की प्रांधी उसके मानसिक प्राकाश को धूलघूसरित कर रही है । प्रजा और राजा (शासित शासक ) एक दूसरे के मनोभावों को जानकर भी उपेक्षा से पारस्परिक हितों पर श्राघात करते हैं। एक चोर से प्रान्दोलन चलता है, दूसरी भोर से दमनचक्र प्रवर्तित हो जाता है । आन्दोलनकर्ताओं को विश्वास है कि सरकार उग्रप्रचण्ड एवं विशाल प्रदर्शनों द्वारा ही समझायी जा सकती है । विश्व के राजनीतिक मंच पर मध्यस्थता का दर्प रखने वाले भारतीय प्रशासक अपने घर में मध्यस्थ वृत्ति का पाठ भूल गये है और गुरुकुलों की मर्यादा को श्रेष्ठ शालीन नागरिश्व से विभूषित करने वाले छात्र धोर स्नातक अपने अन्तेवासी धर्म को अथवा विद्या ददाति विनयम विद्या विनय की जन्मदात्री है. इस उत्तम पाठ को विस्मरण की गुहा में बन्द कर चुके हैं। कबीर के शब्दों मे -- भाग छुई घर लागी प्रर्थात् इस घर को आग लग गई घर के चिराग से, अपने हाथ में जिस मशाल को पथ देखने के लिए हुए है, उसी से अपने चारों मोर के वातावरण को जलाते चल रहे है । जलाइये ! वसे नही, विकार - लोग बसों, ट्रामों, मकानों, दुकानों को अग्नि दिवा रहे हैं, धनी राष्ट्रीय सम्पदा के साथ होली खेल रहे हैं। संगठन, मताधिकार का दुरुपयोग कर रहे हैं, स्वतन्त्रता - के शब्दों पर स्वच्छन्द वृत्ति की स्याही पोत रहे है । मानवता का मर्दन करारमा लिख रहे है । विश्व-दर्शकों के समक्ष अपने आपको स्वकृत कुचेष्टा से हास्यासपद बना रहे हैं। अपनी माँग की उपप्रथा पूर्ति के लिए जब प्रदर्शन करते हुए लोग तोड-फोड़ करते है तब ऐसा लगता है कि वे अपने ही गों को नोच रहे हैं। जब वे किसी व्यक्तिगत श्रथवा राष्ट्रीय सम्पत्ति को स्वाहा करते है तो प्रतीत होता है। कि कोई उन्मादग्रस्त अपने ही भ्रमों पर स्थिरिट डालकर आत्मदाह कर रहा है, क्योंकि प्राक्रोश को प्रकट करने का यह प्रकार अस्वस्थ है यह प्रक्रिया बीभत्स है ये रग दूषित है क्योकि इन चेष्टाष्टात समूहका हार्दिक भाव समाविष्ट है और ये चेष्टाएं विकृत है, अतः कहा जा सकता है कि यह विरोध स्वस्थ नहीं है । विरोध करने की दिशा में जैन परम्पागत पवित्र साबको को महात्मा गांधी ने हिंसक सत्याग्रह, मौन, उपवास, सविनय अवज्ञा आदि साधुवृत्ति के प्रयोग किये हैं, हिसात्मक उपायों का अवलम्बन कभी नहीं लिया । स्वतन्त्र राष्ट्र के नागरिक यदि अपने साथ ही बर्बर भाचरण करें तो अन्य लोग उनके साथ भाचार के उन्ही मानदन्डो को अपनाने लगेगे । एक जलाने के प्रसंग को ही लें। सूर्य जलता है, चन्द्र जलता ग्रह-तारे, ग्रग्नि स्फुलिंग सभी अपने-अपने सामर्थ्य के धनुसार जलते है, परन्तु तिमिर को अन्धकार को यों अपने ही प्रकाश में खड़े हुए मनुष्य को अन्धा नहीं करते । तेजस्वी का सहज धर्म जलाना हो सकता है, परन्तु वे प्रशुचि तथा बाधक तत्वों को ही जलाते है । इस प्रकार का यह जलाना ग्रात्मशुचिकारक है। कोई भी किसी बस को जलाये, इससे अच्छा है वह अपने अन्तरंग प्रसं तोषमूलक अधिकार को जलाये ज्योति की धनि की उपासना तो अन्धकार परिहार के हेतु है प्रपने में तिमिर
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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