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१२६ वर्ष २५, कि..
अनेकान्त
२. गाय कुमार चरिउ-मूल लेखक, महाकवि पुष्प- तानों के लिये नय विषयक सामग्री एक स्थान पर मितरे : दन्त, सम्पादक अनुवादक हा हीरालाल जैन, प्रकाशक में सुविधा हो गई है। और उमसे नयोंके सम्बन्ध में विशेष भारतीय ज्ञानपीठ वी. ४५-४७ कनॉट प्लेस न्यू देहली-१। जानकारी मिलती है । अनुवाद प्रच्छा पौर सुगम है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में नागकुमार का चरित अंकित किया सम्पादक ने ४० पृष्ठ की अपनी महत्वपूर्ण प्रस्तावना गया है जिनका चौबीस कामदेवों की गणना मे में नय चक्र पर अच्छा प्रकाश डाला है। पौर प्रन्थ कर्ता अन्तर्भाव है। नागकुमार ने पूर्व जन्म में श्रुतपंचमी के व्रत माइल्ल घवल के रचना काल पर प्रकाश डालते हुए नय का अनुष्ठान किया था, उसी के पुण्य फल के परिणाम के सम्बन्ध में अच्छा विवेचन किया है। प्रस्तावना पठ. स्वरूप वे कामदेव हुए। नागकुमार का जीवन परिचय नीय है । इस महत्त्वपूर्ण रचना के लिए विद्वान सम्पादक अत्यन्त रोचक और प्रिय रहा है। इसी से संस्कृत प्राकृत और उत्तम प्रकाशन के लिए भारतीय ज्ञानपीठ दोनों ही पौर अपभ्रंश भाषा के ग्रन्थों में उनकी जीवनगाथा प्रकित धन्यवाद के पात्र हैं। स्वाध्याय प्रेमियों को ग्रन्थ मंगाकर करने का विभिन्न ग्रन्थकारों ने प्रयास किया है। पढ़ना चाहिए। प्रन्थ । परिच्छेदों में निबद्ध है। डा. हीरालाल जी
४. रत्न करण्ड भावकाचार-(सस्कृत हिन्दी टीका जैन समाज के सम्माननीय विज्ञान हैं। उन्होंने प्रस्तन ग्रन्थ सहित)-मूल का प्राचार्य समन्तभद्र, सस्कृत टीकाकार का हिन्दी अनुवाद, संस्कृत टिप्पण, शब्दकोष और विस्तृत प्रभाचन्द्र, हिन्दी रूपान्तर कार एवं सम्पादक पं पन्नालाल अंग्रेजी-हिन्दी प्रस्तावना के साथ समलंकृत किया है। साहित्याचार्य, प्रकाशक डा० दरबारी लाल कोठिया मंत्री,
प्रस्तावना में ग्रन्थ का मागोपांग अध्ययन प्रस्तुत वीर-सेवा-मदिर ट्रस्ट, १११२८ दुमराव बाग कालोनी, किया गया है। डा. हीरालाल जी ख्यातिप्राप्त विद्वान वाराणसी ५, पृष्ठ सख्या २७५ मल्य सजिल्द एक प्रति हैं। उन्होंने साहित्य-सेवा का महान कार्य किया है। उनकी का८) रुपया। यह कृति विश्वविद्यालयों के पनठक्रम में रखे जाने के योग्य प्रस्तुत ग्रन्थ एक श्रावकाचार है जिसमें प्राचार्य है। इससे यह ग्रन्थ अपभ्रश भाषा के अध्येता विद्यार्थियों समन्तभद्र ने सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र के लिए तो उपयोगी है ही, अन्य पाठकों के लिए भी का वर्णन करते हुए श्रावक धर्म का प्रच्छा वर्णन किया पठनीय है । डा. साहब ने अपभ्रंश भाषा की समृद्धि में जो है। इस ग्रन्थ पर प्रभाचन्द्र की एक सस्कृत टीका है, योगदान दिया है, इसके लिए वे समादरणीय हैं। भार- जिसमें पद्यों का सामान्यार्थ दिया हुआ है और कहीं-कहीं तीय ज्ञानपीठ का यह प्रकाशन सुन्दर है। मंगाकर अवश्य कुछ विशेष विवेचन भी मिलता है। व्रतों में प्रसिद्ध होने पढ़ना चाहिए।
वालों की कथाएं भी टीकाकार ने दी हैं। ३. नयचक्र-मूल कर्ता माइल्ल घवल, सम्पादक
सम्पादक जी जैन समाज के प्रसिद्ध विद्वान तथा अनेक प्रनवादक पं. कैलाशचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री। प्रका-
ग्रंथों के टीकाकार और सम्पादक है। प्रापने प्रस्तुत टीका
RTET और rue .. शक भारतीय ज्ञानपीठ हेड ग्राफिस बी. ४५-४७ कनांट
का हिन्दी अनुवाद किया है, और टीका के मन्तव्य को प्लेस नई दिल्ली, पृष्ठ सं० ३२६ मूल्य १५ रुपया।
स्पष्ट करने के लिये विशेषार्थों की योजना की है। विशेप्रस्तुत ग्रन्थ में सम्पादक ने माइल्ल धवल के द्रव्य
षार्थ लिखते समय उन्होंने टीकाकार की मान्यता को पुष्ट स्वभाव नयचक्र का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया है। और विशेषार्थों द्वारा उम के विषय को स्पष्ट करने का प्रयत्न
किया है। परन्तु मूल ग्रन्थकार की मान्यता से उसका किया है। दोहों में रचे हुए द्रव्य स्वभाव प्रकाश को माइल्ल
सामंजस्य नहीं बैठता । प्राचार्य समन्त भद्र की मान्यता में घवल ने गाथाबद्ध किया। यह रचना देवसेन के मल नय- सम्यग्दृष्टि कुलिंगी वन्दनीय नहीं है । उसका स्पष्ट निषेध चक्र से बहुत अधिक परिमाण को लिए हुए है। है और सम्पादक की भी निजी मान्यता ऐसी नही है। प्रतः
सम्पादक ने परिशिष्ट नं०१ मे देवसेन की पालाप उन्हें स्पष्ट करना चाहिए था कि यह मान्यता टीकाकार पद्धति का हिन्दी अनुवाद दिया है। पौर परिशिष्ट न०२ की है, मलकार की नही है मस्त ग्रन्थ उपयोगी है, स्वामें प्राचार्य विद्यानन्द द्वारा श्लोक वार्तिक में दिये हुए नय व्याय प्रेमियों को मंगा कर अवश्य पढ़ना चाहिए। विवरण का भी हिन्दी अनुवाद दे दिया है । जिससे मध्ये
-परमानन्द शास्त्री: