SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्नाटक की गोम्मट मुर्तियां व अपार शान्ति प्रस्फुटित है घुटनो तक बाबी बनाई है। कहो गई। दक्षिण कन्नर जिले के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान के उनमें भयानक विषधर सर्प दिखाये गये है। दोनो टांगो और धर्मस्थल के दिवगत धर्माधिकारी श्री रलवर्म हेगडे की बाहुमों पर माधवी लताए फैली है। तो भी अटल ध्यानाव- इच्छा से उनके पुत्र वर्तमान धर्माधिकारी श्री वीरेन्द्र स्थित मुख-मुद्रा है। यह मूर्ति सचमुच तप का अवतार है। हेग्गडे कार्कल में एक बड़ी गोम्मट मति बनवा रहे हैं। यहाँ का दृश्य वस्तुत: भव्य व दिव्य है। सिंहाहन यह मूर्ति कार्कल की पुरानी मूर्ति के समान वजन की एक खिले कमल के प्राकार मे है । ीि न अपने अपूर्व होगी। राष्ट्रप्रशस्ति विजेता शिल्पी इसे बना रहे हैं । प्रयत्न मे पूर्ण सफलता पाई है। सारी दुनिया में प्रापको कर्नाटक की इन सुन्दर मतियो को देख महाराष्ट्र व कही भी ऐसी मनि नही मिलेगी। बड़े बड़े पश्चिमी उत्तर भारत के गोम्मट भक्तों ने अपने यहां भी ऐसी विद्वानों ने इस मूर्ति की शिल्पकला की खूब प्रशसा की मूर्तियां स्थापित करने का विचार किया और पारा है। इतने भारी व कठिन पत्थर पर चतुर शिल्पी ने (बिहार), बम्बई, बाहुबली देहली प्रादि स्थानों में जयपुरके अपनी जो निपुणता दिखाई है उससे भारतीय वास्तु- श्वेत सगमरमर की मूर्तियां बना कर स्थापित की गई हैं। शिल्पियों की चातुरी प्रदर्शित हुई है। ५७ फीट ऊंची कर्नाटक के बाहर की उन मूर्तियों में पारा में स्थित मूर्ति इम मूर्ति के निर्माण के एक हजार वर्ष बाद भी उसमे ही प्रथम है। यह जयपुर में बनाई गई और रेल द्वारा कोई परिवर्तन नही हुआ है। यहाँ के एक विशाल पत्थर पारा लाई गई। इस सुन्दर मूर्ति को श्रीमती नेमसुन्दरी को काट कर यह मुर्ति बनाई गई है। नामक श्रद्धालु जैन महिला ने 'जन बाला-विश्राम' नामक अब तक कर्नाटक की पुरानी गोम्मट मूर्तियों की बात कन्या विद्यालय के उद्घाटन मे स्थापित करवाया है।* साहित्य-समीक्षा १. पुरुदेव चम्पू-लेखक महाकवि अहंद्दास, (सस्कृत नई-नई कल्पनाओं, श्लेष, विरोधादि अलंकारों के पुट ने हिन्दी टीका सहित), सम्पादक अनुवादक-प० पन्नालाल इसके गौरव को बढ़ा दिया है । ग्रन्थ की भाषा पौर भाव जैन साहित्याचार्य, प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ वी० प्रौढ़ है। कवि प्रहंदास की इस रचना पर किस-किस का ४५.४७ कनॉट प्लेस नई दिल्ली। पृष्ठ सख्या ४६४, प्रभाव अंकित है इसका सम्पादक ने तुलना द्वारा स्पष्टीसाइज २२४२६ । मूल्य सजिल्द प्रति का २१) रुपया । करण किया है। उससे ज्ञात होता है कि कवि पर बाण प्रस्तुत ग्रंथ चम्पू का काव्य है, इसमे प्रथम जैन तीर्थ भट्ट की कादम्बरी और हरिचन्द की दोनों कृतियोंकर प्राविनाथ या पुरुदेव का रचित गद्य पद्य मे वर्णित जीवधर चम्पू और धर्मशर्माभ्युदय का प्रभाव रहा है। है। कथावस्तु की दृष्टि से यह काव्य विशेष महत्त्वपूर्ण विद्वान सम्पादक ने मूलग्रन्थ के श्लिष्ट और क्लिष्ट है। क्योकि पुरुदेव का जीवन परिचय प्रत्यन्त रोचक मोर पदों में छिपे हुए प्रथों को सस्कृत टीका द्वारा उद्घाटित उपदेशप्रद है। इन्ही पुरुदेव (ऋषभदेव) के पुत्र भरत किया है। और सरस हिन्दी अनुवाद द्वारा उसे सुगम और चक्रवर्ती पोर बाहुबली के जीवन चरित भारतीय सांस्क ग्राह्य बना दिया है । सम्पादक का यह प्रयास पभिनन्दतिक इतिहास के उज्ज्वल निदर्शन है। इन्ही भरत के नीय है। उनका साहित्यिक प्रेम भी सराहनीय है। इससे नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा है। विद्याथियो के प्रतिरिक्त अन्य पाठक उससे लाभ उठा पंथ मे दश स्तवक है जिनमें ३ स्तवको मे भगवान मादि- सकेंगे। नाथ पौर उनके पुत्र भरत तथा बाहुबली का चरित्रचित्रण भारतीय ज्ञानपीठ का यह प्रकाशन उसके अनुरूप किया गया है। ग्रन्थका कथानक सुन्दर एव सरस है, काव हा है इसके लिए उसके संचालक गण विशेष धन्यवाद मे ससे पौर भी रोचक बनाने का प्रयत्न किया है। कविने के पात्र है।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy