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________________ कर्नाटक को गोम्मट मूर्तियां ले० प्राचार्य पं. के. भुजबलो शास्त्री कर्नाटक में गोम्मट की अनेक मूर्तियाँ हैं । चालुक्यों के पन समारोह में विजय नगर के तत्कालीन राजा द्वितीय समय में ई. सन् ६५० में निर्मित गोम्मट को एक मूर्ति देवराय उपस्थित थे। कार्कल एक सुन्दर राजधानी था बीजापुर के बादामी में है । कर्नाटक की वस्तु कला को ही। प्रब गोम्मटेश्वर की मूर्ति के कारण विशेष प्रसिद्ध विकास करने में प्रमुख सहयोग देने वाले तलकाह के गंग हो गया और जनों का एक तीर्थस्थल बन गया। मूर्ति राजामों के शासन काल मे गङ्गराज रायमल्ल सत्य- की दाहिनी और खुदे लेख में संस्कृत में अङ्कित है कि वाक्य के सेनापति व मत्री चामुण्ड राय द्वारा श्रवणबेल. शालिवाहन शक १३५३, ई० सन् १४३१.३२ में गोल में ई. सन १८२ में स्थापित विश्व प्रसिद्ध गोम्मट विरोधिकृत संवत् की फाल्गुन शुक्ला ११ बुधवार को, मति है । मैसूर के समीप गोम्मटगिरि में १४ फुट ऊंची कार्कल के भररसों के गुरु मसूर के हनसोगे देशी गण के एक गोम्मट मूर्ति है जो चौदहवी शदी मे निर्मित है। ललित कीति जी के प्रादेश से चन्द्रवश के भैरव राजा के इसके समीप ही कन्नबाड़ी (कृष्णराज सागर) के उस पुत्र वीरपाड्य ने इसे स्थापित किया। पार १२ मील दूरी पर स्थित बसदि होसकोट हल्ली में वेणर स्थित गोम्मट मूर्ति को वहाँ के समीप कल्याणी गङ्ग कालीन एक गोम्मट मूर्ति है जो १८ फुट ऊंची है। नामक स्थान के शिला से बनाया गया था । श्रवणबेस्गोल सर राज्य अन्वेषण विभाग ने हाल में इसका अन्वेषण मे चामडराय द्वारा स्थापित गोमा म किया। दक्षिण कन्नण जिले के काल मे ४२ फुट ऊची तिम्मण्ण अजिल ने अपनी राजाधानी में भी ऐसी ही एक एक गोम्मट मूर्ति है जिसे ई० सन् १५६२ मे वीर पाण्ड मूर्ति स्थापित करने का निश्चय किया और यह मूर्ति ने बनवायी थी। श्रवणबेलगोल के भट्टारक चारुकीति की खदवायी। शिल्पी के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है। प्रेरणा से तिम्मराज अजिल ने वेणूर मे ई० सन् १६०६ गोम्मट मति की दाहिनी ओर खुदे लेख में जो संस्कृत मे में पतीस फुट ऊंची एक गोम्मट मूर्ति स्थापित की थी। है, बताया गया है कि चामुण्डराय के वश के तिम्मराजने कर्नाटक की गोम्मट मूर्ति का निर्माण पहाड़ी शिला श्रवणबेलगोल के अपने गुरु भट्टारक चारुकीति के प्रादे. से हमा है। माज भी वह स्थान हम देख सकते हैं। शानुसार शालिवाहन शक १५२५ शोषकृत संवत के गहमति बनाने में बहुत समय लगा होगा। अनुमान है कि वार १ मार्च २६०४ को इसका प्रतिष्ठापन कराया। इस मूर्ति का वजन करीब ४०० टन है। मूर्तिकार का मूर्ति के बायी प्रोर के कन्नड पद्यों में भी यही बात रहिल. असली नाम प्रशात है। परन्तु इसमें सन्देह नहीं है कि खित है। तत्कालीन राजधानी वेणर प्रच्छी लत उन दिनों भनेक चतुर शिल्पी तुलु राज्य मे अर्थात भाज- थी। माज भी हम वहाँ राजमहल मादि के चिह्न देख कल के दक्षिण कन्नड व उत्तर कन्नड जिलो में थे। सकते हैं। कारकल की इस मूतिके निर्माण के सम्बन्ध में चन्द्रम कवि श्रवणबेलगोल के गोमटेश्वर इसके बारे में देखें। sauda सपने 'गोमेटेश्वर चरित' में बहुत कुछ लिखा है। उत्तराभिमुख स्थित यहाँ की यह मूर्ति विश्व की प्रसिद्ध विकी यह कृति मद्रास विश्वविद्यालय द्वारा प्रका- प्राश्चर्यजनक वस्तुमों मे एक है। लम्बे बड़े कान, लम्बी यद्यपि इसमें प्रत्युक्तियाँ है तथापि वास्तविक वाहें, विशाल वक्षस्थल, पतली कमर, सुगठित शरीर कों की कमी नहीं है। कार्कल के गोम्मटेश्वर प्रतिष्ठा प्रादि ने मूर्ति की सुन्दरता बढ़ाई है। मुख पर अपूर्व तेज
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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