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राजस्थान के जैन कवि और उनकी कृतिया
के जैन विद्वानों से सम्पर्क करने से यह विदित हुआ है कि मिथ्यात्वखण्डन नाटकसाहिबराम जयपुर के ही रहने वाले थे। जयपुर में रहने इस ग्रन्थ की रचना पोष सुदि ५ सं० १८२१ को का एक अन्य प्रमाण उनके पदो की जयपुरी भाषा है। हुई थी। इस काव्य मे कवि ने तेरहपथ का खण्डन किया अब तक इनके पद ही उपलब्ध हो सके है। इन पदो मे है। यह उनका मौलिक ग्रन्थ है जिसमे १४२३ छंद हैं। ६० पदो का संग्रह बड। तेरहपंथी मन्दिर के शास्त्र भडार बुद्धि विलास
में तथा कुछ पद ग्रामर शास्त्र भण्डार के वे० सं० २२६० धार्मिक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से यह अन्य महत्वपूर्ण ' में पद हैं । इनका एक पद उदाहरणार्थ दृष्टव्य है- है । इसकी रचना मागशीर्ष शुक्ला १२ स. १८२७ मे समझि प्रोसर पायो रे जिया ।
हुई ।' ग्रन्थ का प्रारम्भ मंगलाचरण से किया गया है ते परकू निज मान्यों यातं पापा कू विसरायोरे ॥१ तदुपरान्त देश वर्णन के अन्तर्गत कवि परिचय देते हुए गल विचि फांसी मोह को लागी इन्द्रिय सुत ललचायौरे ॥२ जयपुर राज्य का ऐतिहासिक वर्णन बहुत ही सुन्दर ढग से भ्रमति अनादि गयो प्रेसही, प्रजहूं मोर न पायो रे॥३ किया है । ग्रन्थ के मूलतः दो भाग है। प्रथम मे मगला. करत फिरत परको चिन्ता तू नाहक जन्म गंवायो रे ॥४ चरण स्वर्ग नरक वर्णन, नृपवश तथा नगर उत्पत्ति वर्णन जिन 'साहिब' की वाणी उरपरि शुध मारग दरसायोरे॥५ प्रादि है एवं दूसरे भाग मे नीतिसार ग्रन्थ का पद्यानुवाद बखतराम
है जिसमे जैन धर्म का ऐतिहासिक वर्णन, संघ उत्पत्ति बखतराम शाह का जन्म चाटसू (चाकसू-जयपुर)
भट्टारक पट्टावली, श्रावक उत्पत्ति अनेक सूक्तिया तथा मे हुआ था। इनके पिता का नाम प्रेमराज था । जय
अन्त मे अपनी (कवि) लघुता बताते हुए ग्रन्थ समाप्त पुर नगर का लश्कर जैन मन्दिर इनकी साहित्यिक गति.
किया गया है। कवि के स्वयं के शब्दो मे ग्रन्थ का प्रमुख विधियों का केन्द्र था। इन के समय में जयपुर मे धार्मिक
उद्देश्य विविध शास्त्रो के अनुसार जिन धर्म की चर्चा सुधार पान्दोलन चल रहा था जिसके नेता महापण्डित है। टोडरमल जी थे । इस प्रकार ये टोडरमल के समकालीन जयपुर के बाजारों मे सुन्दर चोपडे, चौक तथा थे। बखतराम शाह स. १८४२ से १८४५ तक जयपुर उनमे कुण्ड प्रादि बनाकर उनमे नहर से पानी लाए जाने राज्य के दीवान भी रहे।' उस समय इन्होने जयपुर तथा एव उस मीठे पानी को जनता द्वारा उपयोग में लाए जाने अपातपुरा में जिन मन्दिरो का निर्माण भी कराया।
का कितना सुन्दर चित्रण कवि ने इन पक्तियो मे किया वखतराम शाह की निम्नलिखित रचनाए उपलब्ध है१. मिथ्यात्व खंडन नाटक'।
चौपरि के कीन्हें हैं बजार, बिचि विचि बनाये चोक चार। २. बुद्धि-विलास।
स्याये नेहरि बाजार मांहि, बिचि में बेबे गहरे रबाहि ।। ३. पद।
चौकनि में कॅडरचे गंभीर, जगपीवत तिनको मधुर नीर ।। १. यह ग्राज्ञा पाई बखतराम गोत है साह चाटस ठाम । इस ग्रन्थ में १५२६ पद्य हैं। भाषा ढूंढारी है। दोहा पहित कल्याण ते बिनती कीन,
चौपाई, सोरठा, छप्पय तथा कुण्डलिया प्रादि छदो का यन कोई ग्रंथ रच नवीन ।। -बुद्धिविलास प्रयोग हुआ है। २.हिन्दी पद सग्रह-डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल पृ.१६१ ७. मिथ्यात्व खडन नाटक-छ. स. १४०७ । ४. राजस्थान के जैन भडारों की सूची-भाग ३ (भूमिका) ,
1) ८. सवत अठारह सतक, ऊपरि सत्ताईस । ४. शास्त्र भडार बाब दुलीचन्द वि. स, ५७७ एवं प्रामेर
मास मगसिर पखि सुकल तिथि द्वादसी लहीस ॥ शास्त्र भंडार के वि. सं. २०३९ ।
-बुद्धिविलास ५. आमेर शास्त्र भडार वि. स. १८८१ (यह काव्य रा. ६. वरन्यो बुद्धि विलास यह, ग्रन्थादिक अनुसार ।
प्रा. वि. प्र. जोधपुर से प्रकाशित भी हो गया है। है जिन धर्म अनूप की, चर्चा यामे सार ॥११॥ ६. भामेर शास्त्र भंडार।
-बुद्धि विलास