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- १३२, वर्ष २५, कि०३
प्रनकान्त
अन्य व्यंजनों से प्रारम्भ होने वाले छद है। सम्पूर्ण ग्रथ मन्दिर में बैठ कर काव्य रचना किया करते थे। भद्रार में ५००० छंद है।
रकों के गुरु कहे जाते थे। इस प्रकार उन्होने केशरीसिंह व भक्तिरस का यह सर्वश्रेष्ट ग्रथ माना जाता है। इस देवाब्रह्म को भिन्न-भिन्न तो माना है लेकिन इन्होने जिस ग्रन्थ में उन्होंने राम की वन्दना करते हुए उन्हें सर्वव्या- 'सम्मेद शिखर विलास' का रचयिता केशरी सिंह को पक माना है। वे प्रात्मा तथा परमात्मा जिनेन्द्र) का माना है वह सत्य नहीं है। 'सम्मेद शिखर विलास' के एक मानते हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु एव महेश तीनो के दर्शन रचयिता देवाब्रह्म ही थे लेकिन मल ग्रन्थ का अर्थ केशरी जिनेन्द्र में करते हैं। इस प्रकार उनका दृष्टिकोण सिंह ने देवाब्रह्म को समझाया था। इसीलिए ग्रन्थ के उदार है।
अन्तिम पद्यो म केशरीसिंह का नामोल्लेख हमा है। देवात कवियो की तरह उन्होने भी प्राडम्बर] का ब्रह्म तो जयपर के ही रहने वाले थे।' खण्डन करते हुए लिखा है कि मूड मुडाने से कुछ भी
देवाब्रह्म की निम्नलिखित रचनाएं उपलब्ध हैनहीं होता अपितुपातमराम की सेवा से ही सब कुछ
१. सम्मेद शिखर विलास । सम्भव है
१. विनती सग्रह। ...मंड मुंडाये कहा, तत्व नहिं पाव जोलौं । मुनि को उपदेश सुन, मुक्ति जु नदि तोगी।
३. पद सग्रह। मल मूत्रावि भरघो देह कबहूं नहि शुद्धा ।
३. सास बहू का झगड़ा। शुद्धो प्रातमराम ज्ञान को मूल प्रबुद्धा ।।
देवा ब्रह्म की रचना का एक पद दृष्टव्य है
जगतपति तारोला महाराज । देवा ब्रह्मदेवाब्रह्म बहुत अच्छे कवि हुए है। लेकिन अभी
विरद विचारोला महाराज ॥ तक ये प्रकाश मे नही पा सके । जहाँ कहीं इनका नामो
मैं अपराध अनेक किया जो, माफ करो गुणराज ।
और देव या सब हो देख्या, खेद सहो बिनकाज ।। ल्लेख हुपा है वही इनके नाम के आगे प्रश्न सूचक चिम्ह लगा हुआ है। अभी नई खोजों से इनकी अनेक कृतियाँ 'देवाब्रह्म' चरणां चित ल्याव, सेवग करिहित कान ।। तथा पद सामने मा गये हैं। देवाब्रह्म के १००० पद साहिब राम
पर्याप्त प्रयत्न करने के पश्चात भी साहिबराम के पामेर शास्त्र भण्डार, जयपुर में उपलब्ध है। इन पदो की संख्या से ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ये सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी नहीं मिल सकी है। जयपर कितने वडे कवि हुए होगे।
२. वीरवाणी-भंवरलाल न्यायतीर्थ का लेख । देवाब्रह्म मे ब्रह्मा' शब्द उपाधि सूचक है जो उनके ३. श्री लोहाचरज मुनि धर्म विनीत है। ब्रह्मचारी होने की बात घोषित करता है। उनका असली तिन कृत घत्ता बन्ध मुग्रथ पुनीत है ।। । माम 'देवजी' था। कामताप्रसाद जैन ने देवाब्रह्म एव ता अनुमार कियो सम्मेद विलास है। • केशरी सिंह के सम्बन्ध में प्रश्नसूचक चिन्ह लगाकर एक देव ब्रह्मचारी जिनवर को दाम है ।। . , शंका उपस्थित कर दी है। उन्होने केशरी सिंह कृत केसगसिंह जान, रहै लसकरी देह । - सम्मेद शिखर विलास का भी उल्लेख किया है। श्री पडित सब गुणजन या को अर्थ बताइयो । भवरलाल न्यायतीर्थ ने भी सम्मेदशिखर विलास एवं
-सम्मेदशिखर विलास देवाब्रह्म
४. शास्त्र भडार, गोधो का मन्दिर में उपलब्ध है। वर्द्धमान पुराण की भाषा वनिका के लेखक का नाम
५. शास्त्र भंडार वधीचन्द मन्दिर गुटका न. ५४ । केशरीसिंह ही बताया है। उन्होने देवाब्रह्म का उल्लेख ही
६. भामेर शास्त्र भण्डार तथा वधीचन्द मन्दिर में ४९३ नहीं किया है उनके अनुसार केशरीसिंह जयपुर के लश्कर ।
पद उपलब्ध है। ..हिन्दी जैन साहित्य का सक्षिप्त इतिहास-कामता ७. शास्त्र भडार, ठोलियो का मन्दिर मे वे. सं. ४३८ प्रसाद पृ. १६५।
पर है।