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राजस्थान के जैन कवि और उनको कृतियां
उसी प्रकार इसे यदि जैनकृष्णायन या जैन महाभारत पं. दौलतराम प्रारम्भ में जयपुर के महाराणा कहा जाय तो कोई प्रत्युक्ति नहीं होगी। इस ग्रन्थ की सवाई जयसिंह के पुत्र माषसिंह के मंत्री थे। लेकिन भाषा ढूंढाडी है । ग्रन्थ में कुल ३६ सविया एव ५००० । फिर भी वे राज्य कार्य से समय निकाल कर गुरु-उपासना
तथा शास्त्र रचना किया करते थे। प्रेमीजी के शब्दों में पचपुराण
ये एक मोर तत्कालीन जयपुर मोर उदयपुर की राजनीति इसमें मुनि सुव्रतनाथ एवं उनके शासन में होने वाले के सूत्रधार थे और साहित्य साधक भी। उनकी रचनामों मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्र का वर्णन है । इसे कुछ विद्वानों से उनकी विद्वता भी स्पष्ट है। मस्कृत और हिन्दी दोनों मे रामपुराण भी कहा है।
भाषामो पर उनका समान अधिकार था। उनका गच चौबीसी स्तुति पाठ
हिन्दी की ममूल्य निधि है।' इस कृति मे प्राराध्य की महिमा का बखान व स्वय दौलतराम जी को निम्नलिखित रचनाएं हैके दोषों की अभिव्यक्ति की गई है। चौबीस तीर्थंकरों १. पुण्याश्रव वनिका (माद्रपद कृष्णा ५ स. १७७७) की स्तुति की गई है। भक्त अपने प्रागध्य से स्व-मुक्ति
२. क्रियाकोष भाषा (भा. शु. १२ सं. १७६५) की प्रार्थना करता है और हमेशा उनकी सेवा का अधि
३. अध्यात्म बारहखड़ी (फ ल्गुन शुक्ला २ सं. १७९८) कार चाहता है। एक पद दृष्टव्य है
४. वसुननन्दि श्रावकाचार टम्बा (स. १९०८) सुरनर ऐसी सेवा करंजी, चरन कमल की वोर ।
५. पपपुराण वनिका (माघ शु. ६ सं. १८२३) भंवर समान लग रहै जी, निसि वासर अरु और ॥
६.मादि पुराण (माश्विन कृष्णा ११ सं. १८२४) + +
+ चंद कर या वीनतो जो, सुणिज्यौं त्रिभुवनराई ।
७. पुरुषार्थ सिद्धयुपाय।
८. परमात्म प्रकाश वचनिका। जन्म जन्म पाऊं सही प्रभु तुम सेवा अधिकार ।।
६. हरिवंशपुराण वनिका (चैत्र शु. १५ स. १०२९) पं.बोलतराम
१०. श्रीपाल चरित्र । दौलतराम' बसवा के रहने वाले थे, परन्तु जयपुर मे
११. विवेक विलास। माकर बस गये थे। उनके पिता का नाम प्रानन्दराम था।
उपर्युक्त कृतियों मे प्रादि पुराण, पपपुराण, हरिवह जाति के कासलीवाल गोत्री खण्डेलवाल थे। अपने
वश पुराण, अध्यात्म बारहखड़ी, चौबीस दण्डक, विवेक प्रारम्भिक समय मे पं. दौलतराम जी को जैनधर्म में
विलास, छहढाला एव क्रियाकोष भाषा मादि इनके काम विशेष रुचि नहीं थी। लेकिन बड़े होने पर ये प्रागरा
प्रथ हैं। गये पोर वहाँ इनका सम्पर्क पं. भूधरदास, हेमराज, सभी काव्य ग्रन्थों मे 'अध्यात्म बारहखड़ी' नामक सदानन्द, बिहारीदास एव ऋषभदास से हुआ। ऋषभ
काव्यय उत्कृष्ट कोटि का है,ra महत्वपूर्ण तथा उपदेश से दौलतराम को जैनधर्म पर विश्वास मौलिक। इस ग्रंथ मे प्राठ परिच्छेद हैं। इसी प्रथम हमा और कालान्तर में यह विश्वास अगाध श्रद्धा के रूप
परिच्छेद मे 'सकार' दूसरे मे १६ स्वर, तीसरे में ..
में में परिणित हो गया।'
वर्ग', चौथे में 'च वर्ग', पांचवें में 'ट वर्ग', छठे में वर्ग', १. जैन साहित्य के इतिहास में दौलतराम नामके तीन सातवें मे ‘प वर्ग' तथा पाठवें परिच्छेद में पन्तःस्थ और
बिहानों का उल्लेख हमा है। इनमें एक पल्लावाल ४. बसवा का वासी यह अनवर जय को जामि । जातीय हाथरस के, दूसरे बूंदी के दौलतराम पाटनी
मत्री जयसुत को सही, जाति महाजन जानि ।। और तीसरे वसवा (जयपुर) रहने वाले थे। ५. हि. ज. सा. स. ... प्रेमी पृ. ४०-पण्याश्रव करा. २. हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास-पं. नाथूराम प्रेमी कोश की अन्तिम प्रशस्ति : पृ.६८।
पं. टोडरमल जी ने प्रधूरी छोड़ी उसे माघ शुक्ला २ ३. पुण्याश्रव टीका की अन्तिम प्रशस्ति ।
शनिवार स. १८२७ में पूरा किया।
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