________________
राजस्थान के जैन कवि और उनकी कृतियाँ
डा. गजानन मिष एम. ए. पी-एच. डी., प्रार. ई एस.
मुशालचन्द काला
अद्यावधि कवि की निम्नलिखित रचनाएँ उपलब खुशालचन्द के पूर्वज टोडारायसिंह के निवासी थे। हैं :वहाँ से वे व्यापारिक दृष्टि से सांगानेर में माकर बस गये
१. हरिवंश पुराण' वैसाख शुक्ला ३ सं. १७८०) ।' यहीं (सांगानेर) में इनका जन्म हुमा। इनके पिता
२. यशोधर चरित्र' (कार्तिक शुक्ला ६ सं. १७९१) का नाम सुन्दर तथा माता का नाम अभिघा था इनके
३. पद्मपुराण' (स. १७८७) गुरु पं. लक्ष्मीदास थे।' जो क्षमावान, ज्ञानवान और
४. व्रत कथाकोश' (२४ कथानों का संग्रह, १७८७) विवेकवान थे। ऐसे उत्तमकोटि के विद्वान के पास रह कर
५. जम्बू स्वामी चरित्र । सुगालचन्द ने विद्या प्राप्त की थी। शिक्षा ग्रहण के उप
६. धन्यकुमार चरित्र। राम्त ही वे दिल्लीके पास जयसिंहपुरा (नई दिल्ली) मे रहने
७. सद्भासितावली (श्रावण शुक्ला १४ सं. १७६४) मग गये थे। उन दिनों जयसिंहपुरा सभी प्रकार से अच्छा
८. उत्तर पुराण' (मार्गशीर्ष शुक्ला १० सं. १७६९) स्थान था। यहीं वे गोकुलचन्द के सम्पर्क मे पाये। इन्हीं
६. सिद्धों की भारती। की प्रेरणा से उन्होंने अनेक काव्यों की रचना की। अपनी
१०. चौबीस स्तुति पाठ । रचनामों में कई स्थानों पर उन्होंने इसका उल्लेख किया
११. वर्द्धमान पुराण । है।'खुशालचन्द की जाति खण्डेलवाल तथा गोत्र काला
१२. शान्तिनाथ पुराण ।
१३. पद।
हरिवंश पुराण१. उत्तर पुराण भाषा के अन्त मे कवि परिचय ।
जैसा कि पूर्व पृष्ठों में लिखा जा चुका है कि कवि २. मोर सुणो पागे मन लाय, मैं सुन्दन को नन्द सुभाय। ने इस पुराण का पद्यानुवाद गोकूलचन्द की प्रेरणा से सिंहतियामभिधा मम भाय,
जयसिंहपुरा में किया। सभी रचनाओं के संवत् देखने से ताहिकूखिमें उपजो प्राय।।
विदित होता है कि यह कवि को प्रथम रचना है। जिस चंद खुशाल कहै सब लोक, भाषा कीनी सुणत प्रशोक
प्रकार पद्मपुराण को जैन रामायण कहा जाता है कि -प्रशस्ति संग्रह (व्रत कथा कोश) पृ० २५७ - ३. पंडित भये नाम तहां लखमीवास ।
१. शास्त्र भडार, जैन मन्दिर पाटौदी जयपुर के वि. सं. चतुर विवेकी श्रुतज्ञान • उपाय के ॥
३२७ पर इसकी प्रति उपलब्ध है। तिने पास मैं भी कछु मलासो प्रकाश भगे।
२. वही, वे. स. १०४६ । फेरिमें वस्यो जिहानाबाद मध्य मायके ।
३. वही। ४. प्रशस्ति संग्रह (व्रत कथा कोश) पृ० २५६ छद २ ।
४. वही। ५. सहर मध्य इक वणिकसाह सुखानन्द जान ।
५. शास्त्र भन्डार, बाबा दुलीचन्द वे. सं. ३३४ । ताके गेह विर्ष रहे, गोकुलचन्द सुजान ॥
६. वही, वि. स.७४। तिनके लिंग मैं जाऊ सदा पर्दू सुशास्त्र सुभाय ।
७. मामेर शास्त्र भण्डार वे. स. १५५०। जिनको वह उपदेश ले भाषा ग्रंथ बनाय ॥
८. शास्त्र भण्डार, गोधों का मदिर, वे. सं. १५५० । -हरिवंश पुराण
६. शास्त्र भण्डार, ठोलियों का मन्दिर जयपुर गुटका 1. हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि-हा. प्रेमसागर संख्या १२४ एवं वधीचन्द के मन्दिर मे भी उपचम्म
जन पृ० २३४ ।