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५० दौलतराम कासलीवाल
१२५ लाखतनी गोली करिवाला,
शक्ला द्वितीया गुरुवार के दिन समाप्त किया था। खेलत है रस रूप रसाला ॥
___ चौथी कृति श्रीपाल चरित है। इस चरित की रचना बोले कुवर सबै इह जाने,
उदयपुर में हुई, किन्तु अथ के सामने न होने से उसके बालक चेलक पंथ पिछाणें। सम्बन्ध मे कुछ लिखना शक्य नही है। यद्यपि ग्रन्थ में तू अति वृद्ध ज्ञान न तोकों,
राजा श्रीपाल का चरित वणित है । कितो दूर पूर पंछत मोकों।
पांचवी कृनि तत्त्वार्थ सूत्र की रवा टीका है, यह तरुवर सरवर वाग विसाला,
सामने न होने से परिचय नहीं दिया जा सकता। वहरि देखिये खेलत बाला।
छठवीं कृति सार समुच्चय की टीका है, यह कुलतहां क्यों न लखिये पुर नीरा,
भद्राचार्य के ग्रंथ की टीका है । यह ग्रथ देखने में नही संसै कहा राखिये वीरा ।।
शाया और अब सामने नही है। ज्यों लखि धूम अगनिह्व जाने,
श्रेणिक चरित सातवी कृति है। जिसमे भगवान तो बालक लखि पर परवानै ।" महावीर और गौतम बुद्ध के समकालीन मगध सम्राट
श्रेणिक बिम्बसार का जीवन परिचय दिया गया है, इस ग्रंथ में कथानक के साथ कवि ने धार्मिक सिद्धान्तों
समय यह ग्रन्थ भी मेरे सामने नही है, अत: उसके सबंध का भी अच्छा परिचय दिया है। जीवन्धर कुमार का हर
मे अभी विचार करना सम्भव नहीं है । जीवन अनेक घटनामो से परिपूर्ण है, उनमें कितनी ही
सवत १८१० मे ब्रह्म रायमल्ल जी उदयपुर में घटनाए कौतुहलपूर्ण है, फिर भी उन्होने उन पर विजय
आपसे मिलने गए थे। तब वे पडित जी की सास्कृतिक प्राप्त कर जीवन का उच्चादर्श स्थापित किया है । इसी से
लगन से बड़े प्रसन्न हुए थे । पाठवी कृति वसुनन्दिधावइनका जीवन परिचय संस्कृत, अपभ्रश और हिन्दी भाषा
काचार की टव्वा टीका है, जिसे कवि ने उदयपुर में पे लिखा गया है । कवि को जीवघर का यह काव्य लिखने
निवास करते हुए सेठ बेल जो सागवाड़ा के अनुरोध से के लिए काला डेहरा के चतुर्भुज अग्रवाल, पृथ्वीराज
स. १८१८ में बनाकर समाप्त किया था। इसकी एक और सागवाडा निवासी सेठ बेल जी क्वड ने बनाने की
प्रति दीवान जी कामा के मदिर के शास्त्र भडार मे सुरप्रेरणा की थी। और कवि ने उसे स० १८०५ आषाढ़
क्षित है। उसमे उसका रचना काल सवत १८१८ दिया
हमा है।' पडित दौलतराम जो इसके पश्चात् किसी १. तब वोलियो अग्रवाल। वासी काला डहरको।
समय उदयपुर से जयपुर मा गये जान पड़ता है। क्योकि चतुर चतुरभुज नाम चरची प्रथ पथ सिव सहर को।
सवत् १५०६ या १८०७ मे जयसिंह जी के सुपुत्र माधव जो ह है गिरथ अनूप देश भाषा के माही, बांचं बहुतहि लोक लोक या महि ससे नाही। २. अठारहस, जु पच प्राषाढ़ सुमासा । सब ग्रथ को वर्णन पावै तो यह जीवंघर तनी,
तथि दोइज गुरुवार पक्ष सुकल जु तुम भासा ॥ अवसिमेव करनी सुरिभाषा प्रथीराज इह भनी ।
-जीवघर चरित्र प्रशस्ति सुनी चतुरमुख बात मोहि दौलत उर धरी,
३. उदयापुर में कियो बखान, दौलतराम मानन्दसुत जान। सेठ बेल जी सुघर जाति हूँमड हितकारी।
बाच्यो श्रावक वृत्त विचार, वसुनन्दी गाथा अविकार।। सागवाड है वास श्रवण की लगन घनेरी,
बोले सेठ बेल जी नाम, सुन नृपमत्री दौलत राम । तब साधरमी लोक घरै श्रद्धा श्रुत केरी।
टबा होय जो गाथा तनो, पुण्य ऊपजे जियको घनो। तिन ने प्राग्रह करि कहि फनि दौलत के मन बसी, सूनिकै दौलत वैनसुवन, मन भरि गायो मारग जैन । संस्कृत ते भाषा कीनी इह कथा है नौ रसी ।।
-टव्वा टीका प्रशस्ति -जीवघर चरित प्रशस्ति ४. देखो, ग्रन्थ सूची पंचम भाग पृ. १६२ ।