________________
१२४, वर्ष २५, कि०३
भनेकान्त
अनुदान करते थे। इनके अतिरिक्त वहाँ रहते हुए बारह खड़ी करिये भया, भक्ति प्ररूप अनप। उन्होंने साहित्यिक कार्य भी किया। अनेक ग्रन्थों की अध्यातम रस की भरी, चर्चा रूप सरूप ॥ १० टीकाए भी बनाई और कुछ ग्रन्थो का निर्माण भी किया। ग्रंथ बहुत अच्छा है। कविता सुन्दर है, पर यह अभी उनके नाम इस प्रकार है -- अध्यात्म बारह खडी. वसुनदि तक अप्रकाशित है । दूसरा ग्रन्थ 'पन क्रिया कोश' नाम श्रावकाचार टवा टीका, क्रिया कोप, जीवघर चरित, का है। जिसमे गृहस्थ की ५३ क्रियामो का विवंचन श्रीपाल चरित, श्रेणिक चरित, तत्त्वार्थ सूत्र टब्बा टीका
किया गया है। यह ग्रन्थ भी पद्य बद्ध है। इसका रचना और सार समुच्चय टीका का निर्माण ।
काल स. १७६५ भाद्र पद शुक्ला द्वादशी मगलवार है। ___ अध्यात्म बारह खड़ी-यह एक पद्य बद्ध ग्रन्थ
' तीसरी कृति जीवघर चरित है जो पद्यात्मक खण्ड है जिसे उन्होने स० १७६८ मे बनाकर समाप्त किया
काव्य है। जिसे कवि ने सस्कृत स हिन्दी में रूपान्तर किया था।' इस ग्रन्थ की प्रशस्ति में उस समय के उदयपुर
है । इसम जोवधर कुमार का जीवन परिचय अकित किया निवासी कितने ही साधर्मी सज्जनो का नामोल्लेख किया
गया है । ग्रन्थ मे ७२५ पद्य है और जीवधर की जीवन गया है । पडित जी के इस प्रयत्न से तत्कालीन उदयपुर
गाथा को दोहा चौपाई, अरिल्ल, भुजग प्रयात और में साधर्मी सज्जन गोष्ठी और तत्त्व चर्चादि का अच्छा
वेसरी प्रादि विविध छदो मे गूथा गया है। ग्रन्थ पाँच समागम एव प्रभाव हो गया था । अत्म ह खडी की
अध्यायो में विभक्त है । जिनमे नगर वर्णन, विरह, मिलन प्रशस्ति मे दिये हुए साधर्मी मज्जनो के नाम इस प्रकार
और युद्धादि का सुन्दर सजीव वर्णन किया गया है । है-पृथ्वीराज, चर्तुभुज, मनोहर दास, हरिदास, बखता
यद्यपि जीवधर का चरित्र चित्रण विविध कवियो द्वारा वर दास, कर्णवास, और पडित चीमा। इन सबकी
सस्कृत, अपभ्र श और हिन्दी प्रादि भाषाओं में किया प्रेरणा एवं अनुरोध से उक्त ग्रथ की रचना की गई है।
गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ की भाषा सीधी-सादी है, किन्तु जैसा कि प्रशस्तिगत निम्न पद्यो से ज्ञात होता है
घटनाचक्र को बड़े ही सरल शब्दो मे व्यक्त किया गया उदियापुर में रुचिधरा कैयक जीव मुजोव ।
है। भाषा मे ढुढारी के माथ व्रजभाषा का मिश्रण है। पृथ्वीराज चतुभं जा श्रद्धा घरहि अतीव ।। ५
चरित नायक ने अपने खोए हुए राज्य को कैसे प्राप्त दास मनोहर अरहरी, द्वै वखतावर कर्ण।
किया ? और उसे प्राप्त कर कुछ समय भोग कर उसका केवल केवल रूप कों, राखै एकहि सर्ण।। ६
परित्याग किया कौर अन्नर बाह्य ग्रथि का परित्याग कर चीमा पंडित आदि ले, मन में धरिउ विचारि।
दिगम्बरी दीक्षा अगीकार की । और घोर तपश्चरण द्वारा बारह खड़ी हो भक्तिमय, ज्ञान रूप अविकार ।। ७
कर्म, शत्रुग्रो का विनाश कर अविचल स्थान प्रत किया। भाषा छंदनि मांहि जो, अक्षर मात्रा लेय ।।
ग्रन्थ का कथा भाग सक्षिप्त, सरल, सुन्दर और सजीव प्रभु के नाम बखानिये, समुझे बहुत सुनेय ।। ८
बन पड़ा है। इह विचार सब जना, उर धर प्रभु की भक्ति ।
कवि ने जीवन्धर की बाल्य लीला का उ: करते बोले दौलतराम सौ, करि सनेह रस व्यक्ति ।।
हुए उसकी बुद्धिमत्ता का दिग्दर्शन कराया है। बालक १. सवत् सत्रह सौ प्रढाणव, फागुन मास प्रसिद्धा। जीवन्धर अपने अन्य साथियों के साथ लाख की गोलियो शुक्ल पक्ष दुतिया उजयारा, भायो जगपति सिद्धा । ३० से खेल रहा था । वह प्रारम्भ से ही कुशाग्र बुद्धि और जब उत्तरा भाद्र नक्षत्रा, शुक्ल जोग शुभकारी। तत्काल उत्तर देने वाला था। उन्हे गोली खेलते देख बालव नाम करण त ब वरत, गायो ज्ञान बिहारी ।। ३१ उनसे एक साधु ने पूछा कि नगर कितनी दूर है ? उसका एक महरत दिन जब चढ़ियो मीन लगन तब सिद्धा। उत्तर कुमार ने बड़े ही सुन्दर शब्दो में दिया है :भगतिमाल त्रिभवन राजा कौं, भेंट करी परसिद्धा ॥ "एक दिवस या पर के पासा. (अध्यात्म बारह खडी)
कँवर करत है केलि किलासा।