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नयनार मन्दिर
ले. टी. एस. श्रीपाल अनुवादक : पं० बलभद्र जैन
मइलापुर (मद्रास) में त्रिवल्लुवर मन्दिर को सभी पाषाण मूर्तियां और शिलालेख बहुसंख्या में भूगर्भ से जानते हैं । यद्यपि यह मन्दिर आजकल त्रिवल्लुवर मंदिर प्राप्त हुए हैं जिनसे पता चलता है कि यह स्थान विद्वान कहलाता है, किन्तु बीस वर्ष पूर्व तक यह तैनार मन्दिर जनों का केन्द्र था। इस स्थान पर नल्लुल के भाषाकार के रूप में प्रसिद्ध था। नैनार शब्द का अर्थ जिन । मिलयनाथर अविरोधनाथर गुणवीर पडित रहते थे। सिलप्पादिकरम् में इलंगोवाडिगल मधुराइ कण्डं शीर्षक इसलिए यह कोई पाश्चर्यजनक बात नहीं है कि प्राचीन प्रध्याय का प्रारम्भ भी महत्प्रार्थना से करता है। मंग- मइलापुर के जैन मन्दिर मे थिरुक्कुरल के कर्ता का मंदिर लाचरण की टोका में अडयरप्पुनल्लार कहता है कि बन पाया था, उसमें थीवर के चरण चिह्न स्थापित किये अर्हत्मन्दिर का अर्थ नैनार मन्दिर है। प्राजकल भी यह थे और वे लोग उनकी पूजा करते थे। देखा जा सकता है कि कलुगु मलाई मे जैन मुनियों के जनों ने ही सर्वप्रथम अपने तीर्थङ्करों, प्राचार्यों और सम्बन्ध मे जो शिलालेख लिखे गये है। उमसे यह प्रद- मुनियों के चरण चिन्हों की स्थापना और पूजा की। शित होता है कि वे नयनार थे। येरूवडिकाई मे उप- तीर्थ डुरों के विशेष उल्लेखनीय चरण चिन्ह अब भी लब्ध शिलालेखों मे जैन मन्दिर को नयनार मन्दिर बत- कैलाश, चम्पापुरी, सम्मेद शिखर, पावापुरी और गिरनार लाया है। थिरुप्परित्तिकुन्नम् मन्दिर में शिलालेख है। मे मिलते है। तमिलनाडु मे थिरुकुरल के कर्ता प्राचार्य जिसमें तीर्थङ्करों को नयनार लिखा गया है । मिलाईनथर
कुन्दकुन्द के चरण चिन्हे उनकी जन्मभूमि कुन्दकुन्द पर्वत, ने नन्नूल व्याकरण की अपनी टीका में एक जैन विद्वान को पोन्नूर पहाड़ी मे अकलंक थीवर के चरण चिन्ह थिरुप्पप्रविननार लिखा है। कुछ प्राचीन शिलालेखों में जैन रमूल मे बावन मुनि के जिन काञ्ची में और गुणसागर के मुनियों और तीथंकरों को नैनार लिखा गया है। कोलि- चरण चिन्ह विजुक्कम में विद्यमान हैं। भद्रबाहु स्वामी यनूर (विलमुपुरय जेक्शन) मे जैन मन्दिर में एक और चन्द्रगुप्त मौर्य के चरण चिन्ह श्रवणवेलगोला मे पूजे लेख है जिसमे लिखा है 'स्वस्ति श्री नैनार मन्दिर' जाते। जोमानीसरी हातानी में ही पौर कलियनूर के दूसरे मन्दिर में लेख इस प्रकार उत्कीर्ण भारत मे उनकी यात्रा के स्मारिक हैं। इस परम्परा के हैं-"नल्लुर नैनार मन्दिर ।" इस प्रकार पहले जैन अनुसार प्राचीन मइलापुर के जैन थिरुकुरल के कर्ता के तीर्थंकरों को नैनार कहा जाता था।
चरण चिन्हों की पूजा करते थे और उन्हें थिरुवल्लुवर इस पृष्ठभूमि मे हम थिरुवल्लुवर मन्दिर अथवा नैनार मोर थिरुवल्लुवर थीवर इन नामों के साथ स्मरण मइलापुर में थिरुकुरल के कर्ता का इतिहास और उसके करते थे। इस पूजा माराधना में प्रजन लोग भी बड़ी उपनाम नैनार मौर थीवर के संबंध में कुछ जानकारी भक्ति पूजा से सम्मिलित होते थे। ये जब पूजा के लिए प्राप्त करने का प्रयत्न करे। थीवर का प्रथं जैन मुनि। जाते थे तब वे इस मन्दिर को बड़े प्रेम से नैनार मन्दिर मइलापुर में पहले नेमिनाथर का मन्दिर था। 'थेरूनुद्रन्- कहते थे। थति' नामक पुस्तक में नेमिनाथर की प्रशंसा में अनेकों एक दशक पहले प्रगर कोई थिरुवल्लुवर मन्दिर के गीतिकाएं हैं। मइलापुर में इस प्रकार की कविताएं, संबंध में पूछता था तो उस गली में मन्दिर के पास पास